असम के मुख्यमंत्री हिमंत विश्व सरमा ने अवैध विदेशियों को राज्य से बाहर निकालने के लिए एक बड़ी घोषणा की है। उन्होंने कहा है कि राज्य सरकार अब अप्रवासी (असम से निष्कासन) अधिनियम, 1950 को लागू करेगी, जिससे जिला उपायुक्त (DC) को यह अधिकार मिल जाएगा कि वह किसी व्यक्ति को विदेशी घोषित कर उसे राज्य से निष्कासित कर सके। अब इस प्रक्रिया के लिए फॉरेनर ट्रिब्यूनल की जरूरत नहीं पड़ेगी।
हिमंत सरमा ने यह बात सोमवार को असम विधानसभा के एक विशेष सत्र में कही। उन्होंने कहा कि यह कानून 1 मार्च 1950 से अस्तित्व में है और अब भी वैध है। सुप्रीम कोर्ट ने भी अपने हालिया फैसले में इस अधिनियम की वैधता की पुष्टि की है। इस कानून के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति भारत के बाहर से असम में आया है और उसका यहां रहना राज्य या देश के आम नागरिकों या अनुसूचित जनजातियों के हितों के लिए हानिकारक है, तो उसे असम से बाहर निकाला जा सकता है।
मुख्यमंत्री ने बताया कि पिछले कुछ हफ्तों में 330 लोगों को बांग्लादेश वापस भेजा गया है। ये सभी वे लोग हैं जिन्हें फॉरेनर ट्रिब्यूनल ने विदेशी घोषित किया था। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि यह कानून उन लोगों पर लागू नहीं होगा जो धार्मिक उत्पीड़न के चलते भारत आए हैं।
सरमा ने सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले का हवाला भी दिया जिसमें नागरिकता कानून की धारा 6A को वैध ठहराया गया था। इस धारा के तहत, 24 मार्च 1971 को कट-ऑफ तारीख माना गया है, यानी जो लोग इसके बाद असम में आए हैं, वे नागरिकता के हकदार नहीं हैं।
हालांकि, फॉरेनर ट्रिब्यूनलों पर पूर्व में मनमानी, पक्षपात और दस्तावेजों की मामूली कमियों पर भी लोगों को विदेशी घोषित करने के आरोप लगे हैं। कई परिवारों ने आरोप लगाया कि उनके परिजनों को बिना सूचना के बांग्लादेश भेज दिया गया। इस पर सरमा ने सफाई दी कि सभी कार्रवाइयां सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के अनुरूप की गई हैं, जिसमें 4 फरवरी को अदालत ने राज्य सरकार से हिरासत केंद्रों में बंद विदेशी नागरिकों को वापस भेजने की प्रक्रिया शुरू करने का आदेश दिया था।
अंततः, यह फैसला असम की जनसंख्या संरचना और सामाजिक-आर्थिक संतुलन बनाए रखने के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है। विभाजन के बाद से असम में बड़ी संख्या में बांग्लादेशी प्रवासी आए हैं और यह कानून राज्य सरकार को ऐसे प्रवासियों के खिलाफ सख्त कदम उठाने का कानूनी आधार प्रदान करता है।