छत्तीसगढ़ में नक्सलवाद के खिलाफ चल रही सरकार की सख्त नीतियों और प्रभावी पुनर्वास योजनाओं के बीच लगातार नक्सली सरेंडर कर रहे हैं। इन्हीं में से एक पूर्व नक्सली नेता गांधी टेटे उर्फ कमलेश उर्फ अरब ने हाल ही में नारायणपुर में आत्मसमर्पण कर अपने साथियों से भी हथियार डालने की अपील की है। टेटे करीब दो दशक तक माओवादी आंदोलन से जुड़े रहे, लेकिन अब उनका कहना है कि यह आंदोलन पूरी तरह से अपने लक्ष्य से भटक चुका है और सरकार की मजबूत नीतियों के सामने नक्सलवाद का टिकना अब नामुमकिन है।
गांधी टेटे से बातचीत में कहा, “मैं बाकी सभी नक्सलियों से कहना चाहता हूँ कि वे सरेंडर कर दें। हमने सालों लड़ाई लड़ी, लेकिन हम अपने मकसद से कहीं पास भी नहीं पहुँच सके। सरकार की सख्त नीतियों और सुरक्षा बलों की कार्रवाई ने अब नक्सल आंदोलन को कमजोर कर दिया है, और आगे इसका कोई भविष्य नहीं है।” उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि संगठन के भीतर कोई ठोस रणनीति नहीं बची है और अब यह केवल नाम के लिए ही चल रहा है।
#WATCH | Narayanpur, Chhattisgarh | Gandhi Tate alias Kamlesh alias Arab, former Marh Division Committee Member, says, "… The main reason why I left the party was because the party will cease to exist because of the 2026 deadline decided by the Central and the State… https://t.co/VuwzWAF1vM pic.twitter.com/TSEp9JOxpl
— ANI (@ANI) November 4, 2025
टेटे ने संगठन की अंदरूनी कमजोरियों पर भी खुलकर बात की। उन्होंने कहा कि माओवादी नेतृत्व ने अपने ही सदस्यों पर कई पाबंदियाँ लगा रखी थीं — बच्चों को स्कूल जाने की अनुमति नहीं थी, मोबाइल फोन का इस्तेमाल सख्त मना था और बाहरी दुनिया से पूरी तरह दूरी बनाए रखनी पड़ती थी। “हमें बेसिक सुविधाओं से वंचित रखा गया था। जिंदगी बेहद कठिन थी और धीरे-धीरे लोग संगठन से मोहभंग महसूस करने लगे,” उन्होंने कहा।
इसी तरह, एक अन्य पूर्व नक्सली सुकलाल जुर्री उर्फ डॉ. सुकलाल ने भी अपने अनुभव साझा किए। उन्होंने 2006 में नक्सली संगठन जॉइन किया था और लंबे समय तक माओवादी ‘मार्ह डिवीजन’ में मेडिकल प्रैक्टिशनर और डिविजनल कमिटी (DVC) मेंबर के रूप में काम किया। इस साल 20 अगस्त को उन्होंने नारायणपुर एसपी के सामने सरेंडर किया। सुकलाल ने बताया, “जंगल में रहते हुए मुझे नक्सली लीडर्स ने मेडिकल ट्रेनिंग दी थी। मैं ग्रुप में डॉक्टर की तरह इलाज करता था, यहाँ तक कि कई बार सदस्यों की नसबंदी जैसी प्रक्रियाएँ भी करनी पड़ती थीं।”
#WATCH | Narayanpur, Chhattisgarh | Suklal Jurri alias Dr Suklal, says, "… I surrendered on 20 August 2025 before the Narayanpur SP… I joined the Naxal organisation in May 2006. I was taught medical practice in the forests by Naxalites. Back when I was a student, I was… https://t.co/VuwzWAF1vM pic.twitter.com/Swp92wHsOe
— ANI (@ANI) November 4, 2025
अधिकारियों के अनुसार, केवल पिछले दो महीनों में ही लगभग 110 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया है, जिनमें 52 महिलाएँ और 58 पुरुष शामिल हैं, जिनकी उम्र 18 से 50 वर्ष के बीच है। सरेंडर करने वालों को अब विभिन्न व्यावसायिक प्रशिक्षण (वोकेशनल ट्रेनिंग) प्रोग्रामों में शामिल किया गया है ताकि वे नई जिंदगी की शुरुआत कर सकें और समाज की मुख्यधारा में वापस लौट सकें।
सरकार के अनुसार, ये पुनर्वास योजनाएँ केवल सुरक्षा दृष्टि से नहीं बल्कि एक सामाजिक रणनीति का हिस्सा हैं, जिनका उद्देश्य है कि नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में विकास और रोजगार के अवसर बढ़ाकर लोगों को हिंसा के रास्ते से दूर लाया जा सके। गांधी टेटे और सुकलाल जैसे सरेंडर किए हुए नेताओं की अपीलों से स्पष्ट है कि अब नक्सल आंदोलन अपनी वैचारिक और संगठनात्मक पकड़ खो चुका है और “लाल आतंक” के अंत की दिशा में तेजी से कदम बढ़ रहे हैं।
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