ज्ञान की देवी – माँ सरस्वती की आराधना के दिन. यानी वसंत पंचमी को. इस स्टोरी में हम विश्व पुस्तक मेले की कुछ खास बातें आपको बताएंगे. बच्चों से लेकर बड़ों तक, हिंदी से अंग्रेजी सेक्शन में खास क्या है. आइये यहां सरसरी तौर पर जानें. सबसे पहले कुछ बुनियादी बातें. किताबों का ये मेला लगा कहां है. कैसे आप यहां पहुंच सकते हैं. कितने रूपये टिकट के लग रहे हैं. दिल्ली का प्रगति मैदान – जो अब भारत मंडपम हो चुका है. सुप्रीम कोर्ट मेट्रो के स्टेशन के ठीक पास में स्थित इस भव्य जगह पर 1 से लकर 9 जनवरी तक किताबों का कुंभ लगा हुआ है. पिछले पांच दशक से भारत सरकार का नेशनल बुक ट्रस्ट (एनबीटी) किताबों और संस्कृति को पढ़ने-सहेजने का सिलसिला आयोजित करता आया है. विश्व पुस्तक मेले में आप दिन के 11 बजे से रात्रि 8 बजे तक कभी भी जा सकते हैं. बड़ों के लिए टिकट की कीमत बीस रूपये जबकि बच्चों के लिए महज 10 रूपये है.
पुस्तक मेले में इस तरह पहुंचे
अगर आप मेट्रो से यात्रा कर रहे हों तो आपके लिए सुप्रीम कोर्ट स्टेशन सबसे नजदीक रहेगा. विश्व पुस्तक मेले के आयोजनकर्ता सुप्रीम कोर्ट मेट्रो स्टेशन से फ्री शटल भी उपलब्ध करा रहे हैं. इसके अलावा आप भैरो मंदिर पार्किंग, नेशनल स्टेडियम (गेट नंबर 4), नेशनल गैलरी ऑफ मॉडर्न आर्ट के बस स्टॉप के नजदीक से फ्री शटल का इस्तेमाल कर सकते हैं. ये सभी गाड़ियां आपको प्रगति मैदान के गेट नंबर चार पर ले जाएंगी. यहां से आप टिकट खरीदकर किताबों के कुंभ में डुबकी लगा सकते हैं. ध्यान रहे, ये विश्व पुस्तक मेले का 32वां संस्करण है. चूंकि, ये साल भारत और रूस की रणनीतिक साझेदारी का 25वां साल है, रूसी साहित्य का विश्व पुस्तक मेंले में इस बार बोलबाला है.
रूसी साहित्य का बोलबाला
इस साल एक देश के तौर पर रूसी साहित्य विश्व पुस्तक मेले के केंद्र में है. रूसी लेखक – टॉलस्टॉय, दोस्तोव्सकी और चेखोव – जिन्होंने न जाने कितनी ही पीढ़ियों को जीने की तमीज सिखालाई, उनके किताबों का हिंदी अनुवाद खूब खरीदा जा रहा है. भारत मंडपम के हॉल नंबर चार में 1 हजार रूसी किताबें उपलब्ध हैं. इनमें बच्चों के लिए तस्वीरों से भरी मनोंरंजक किताब से लेकर पर्यटन और अनुदित किताबें भी खूब सारी हैं. हिंदी गीतकार इरशाद कामिल के कविताओं की किताब – नज्मों का मौसम यहां रूसी भाषा में भी उपलब्ध है. इसी तरह, 1965 में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित रूसी साहित्याकार मिखाइल शोलोकोव की किताब को आपको यहां से जरूर खरीदना चाहिए.
गीताप्रेस पर लोग ही लोग
भारत मंडपम के हॉल नंबर 2, 3, 4, 5 और 6 में मुख्य तौर पर प्रकाशक और किताब हैं. हॉल नंबर दो में भारतीय भाषाओं के प्रकाशकों की किताबें हैं. अगर आप आध्यात्मिक और हिंदू धर्म से जुड़ी किताबें खरीदना चाहते हैं तो यहीं गीताप्रेस आपको मिल जाएगा. बस थोड़ा समय लेकर जाइयेगा. यहां लोगों के सर से सर टकरा रहे हैं. पुस्तक ले भी लिए अगर तो पेमेंट करने में काफी समय लग सकता है. ये शनिवार और रविवार की स्थिति थी. हो सकता है कि, सोमवार से शुक्रवार के बीच लोग कुछ कम हों. क्योंकि ये वर्किंग डे होता है.अगर आप हिंदी-उर्दू-भोजपुरी या दूसरे भारतीय भाषाओं के रसिया हैं तो आप हॉल नंबर दो और तीन के किताब संसार में गुम हो जाएंगे.
हिंदी की किताबें यहां मिलेंगी
आपको यहां से लौटने का मन नहीं करेगा. यहां राजकमल, वाणी, हिंदी युग्म, राजपाल एंड संस जैसे दिग्गज प्रकाशक समूह तो हैं हीं. साथ ही, यहां एक लेखक मंच भी बना हुआ है, जहां किताबों के लेखक-पाठक एक दूसरे से आपको संवाद करते दिख जाएंगे. हो सकता है कि जिनकी आप किताब लेने गए हों, वे आपको खुद ही अपनी किताब पर बात करते और अपको अपना साइन किया हुआ किताब खुद से देते मिल जाएं. मेरे लिए कम से कम ऐसा ही रहा. छबीला रंगबाज का शहर – दिलचस्प हिंदी कहानियों का संग्रह लिखने वाले दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर प्रवीण कुमार मुझे मिल गए और अपनी एक और किताब – वास्कोडिगामा की साइकिल पढ़ने के लिए देते गए.
अंग्रेजी के प्रकाशक ज्यादा
हॉल नंबर चार में अंतर्राष्ट्रीय – मिसाल के तौर पर सऊदी अरब, नेपाल, जर्मनी के प्रकाशक अपनी किताबों के साथ हैं. अगर आप अंग्रेजी भाषा में कोई किताब खरीदना चाहते हैं तो आपको हॉल नंबर पांच में होना चाहिए. पेंगुइन के स्टॉल से किताब लेने के लिए शनिवार और रविवार – दोनों दिन लंबी-लंबी कतारें दिखीं. यहीं बगल में हार्पर कॉलिंस और रूपा पब्लिकेशंस जैसे दिग्गज समूह के भी स्टॉल लगे हैं. सबसे ज्यादा अंग्रेजी ही के प्रकाशक विश्व पुस्तक मेले में जुटे हैं. अंग्रेजी के 337 प्रकाशकों की तुलना में हिंदी के प्रकाशक आधे हैं. 153 हिंदी के प्रकाशकों के अलावा उर्दू के 20, पंजाबी के 6, संस्कृत और ओडिया के 4-4, बंगाली के तीन, मैथिली, सिंधी और मलयालम के दो-दो प्रकाशक मौजूद हैं.