पूरी दुनिया की निगाहें इस साल के 2025 के नोबेल शांति पुरस्कार पर टिकी हुई थीं, और आखिरकार शुक्रवार, 10 अक्टूबर 2025 को नॉर्वेजियन नोबेल समिति ने इसका ऐलान कर दिया। इस वर्ष का यह प्रतिष्ठित पुरस्कार वेनेजुएला की विपक्षी नेता मारिया कोरिना मचाडो (María Corina Machado) को उनके देश में लोकतांत्रिक अधिकारों की रक्षा और अधिनायकवाद के खिलाफ संघर्ष के लिए दिया गया है। यह घोषणा पूरी दुनिया के लिए आश्चर्यजनक तो रही ही, साथ ही इसने अमेरिकी पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की उम्मीदों पर भी पूरी तरह पानी फेर दिया है।
ट्रंप लंबे समय से इस पुरस्कार को पाने की कोशिशों में जुटे हुए थे। उन्होंने बार-बार खुद को “शांति के लिए काम करने वाला नेता” बताया था और दावा किया था कि उन्होंने कई देशों के बीच संघर्षों को समाप्त करने में भूमिका निभाई है। लेकिन नॉर्वेजियन समिति ने इस बार उनके सभी दावों को दरकिनार करते हुए वेनेजुएला में लोकतंत्र की बहाली के लिए संघर्षरत मचाडो को यह सम्मान देकर स्पष्ट संदेश दिया कि यह पुरस्कार केवल प्रचार या प्रभाव से नहीं, बल्कि वास्तविक संघर्ष और जनसेवा के लिए दिया जाता है।
नोबेल समिति ने अपने आधिकारिक बयान में कहा कि मारिया कोरिना मचाडो ने वेनेजुएला के नागरिकों के लोकतांत्रिक अधिकारों को प्रोत्साहित करने, न्यायपूर्ण शासन की स्थापना और तानाशाही से लोकतंत्र की ओर शांतिपूर्ण संक्रमण के लिए लगातार साहस और दृढ़ता दिखाई है। उनके नेतृत्व में चल रहे आंदोलन ने न केवल देश में बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी लोकतांत्रिक मूल्यों को मजबूत करने की प्रेरणा दी है।
इस वर्ष शांति पुरस्कार के लिए कुल 338 उम्मीदवारों — जिनमें व्यक्ति और संगठन दोनों शामिल थे — को नामांकित किया गया था। नोबेल पुरस्कार के नियमों के अनुसार, इन नामांकनों की सूची अगले 50 वर्षों तक गोपनीय रखी जाएगी।
हर वर्ष की तरह, विजेता को 10 दिसंबर को, यानी अल्फ्रेड नोबेल की पुण्यतिथि के अवसर पर आयोजित होने वाले भव्य समारोह में सम्मानित किया जाएगा। पुरस्कार के रूप में विजेता को 11 मिलियन स्वीडिश क्रोनर (लगभग 10.3 करोड़ भारतीय रुपये) की राशि दी जाती है, साथ ही 18 कैरेट का गोल्ड मेडल और एक डिप्लोमा भी प्रदान किया जाता है।
इस निर्णय से यह संदेश गया है कि विश्व शांति और लोकतंत्र के लिए सच्चे समर्पण, साहस और निस्वार्थ प्रयास ही सर्वोच्च सम्मान के पात्र हैं। मचाडो की जीत उन सभी लोगों के लिए प्रेरणा है जो अपने देश में स्वतंत्रता, न्याय और लोकतंत्र के लिए संघर्ष कर रहे हैं। वहीं, डोनाल्ड ट्रंप के लिए यह एक करारा झटका साबित हुआ है, जो लगातार खुद को नोबेल शांति पुरस्कार का सबसे योग्य उम्मीदवार बताते रहे थे।
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