भारत की ख़ुफ़िया एजेंसी RA&W के पूर्व स्पेशल सेक्रेटरी GBS सिद्धू ने खालिस्तान के मुद्दे पर बोलते हुए कहा कि ‘ऑपरेशन भिंडरांवाले’ की शुरुआत और इसका प्रबंधन 1, अकबर रोड स्थित प्रधानमंत्री आवास में बैठे कुछ नेता कर रहे थे, जिनमें ज्ञानी जैल सिंह, संजय गाँधी, कमलनाथ और इंदिरा गाँधी शामिल थीं। उन्होंने जानकारी दी कि ये सब 1978 के मध्य में शुरू हुआ, जब ज्ञानी जेल सिंह और संजय गाँधी ने अकाली दल और जनता पार्टी के बीच तनाव पैदा करने की साजिश रची।
उन्होंने इसके लिए ‘एक हाईप्रोफाइल’ संत को अपनी तरफ से भेजने की बात कही। उनकी साजिश थी कि वो कथित संत अकाली दल की नरम नीतियों पर कुछ बोलेगा, जवाब में जनता पार्टी की तरफ से भी प्रतिक्रिया आएगी और अंततः दोनों एक-दूसरे से रिश्ता तोड़ लेंगे। यानी, कॉन्ग्रेस ने हिन्दुओं को डराने के लिए भिंडरांवाले को पैदा किया और खालिस्तान जैसे मुद्दे को जन्म दिया, जिससे देश की एक बड़ी जनसंख्या ये सोचने लगे कि देश की अखंडता को खतरा है।
उन्होंने बताया कि कमलनाथ ने उस समय कट्टर सिख संतों की भर्ती करने की बात कही थी। उन्होंने बताया कि पुलिस-प्रशासन से लेकर सभी लोग भिंडरांवाले को ‘सर/जनाब’ कहते थे। उसे एक बड़ा आदमी बनाया गया। उन्होंने बताया कि इंदिरा गाँधी ये कहती थीं कि उनकी हत्या हो सकती है, लेकिन उन्हें इसकी कोई चिंता नहीं है।
GBS सिद्धू ने बताया कि उस दौर में उन्हें कनाडा में भी भेजा गया था, उस दौरान उन्हें पता चला कि वहाँ सिर्फ दो ही लोग थे जो खालिस्तान की बातें करते थे। 1979 में भारत लौटने के बाद जब उन्हें रॉ में भेजा गया, तब इसकी अलग से कोई इमारत तक नहीं थी। उन्होंने बताया कि इसी दौरान सिख कट्टरवाद और ISI के संबंधों की जाँच के लिए रॉ का एक नया विभाग दिसंबर 1980 में बनाया गया, जबकि उस समय ऐसा कोई मामला आया ही नहीं था।
इसके बाद संजय गाँधी और जेल सिंह जैसों ने खालिस्तान को मुद्दा बनाने की ठानी। इस दौरान सिद्धू को रॉ के नए ब्रांचों के लिए प्रस्ताव तैयार करने को कहा गया, अमेरिका-यूरोप में उन जगहों पर जहाँ सिखों की जनसंख्या ज्यादा थी। जबकि कनाडा में जब वो थे तो उन्हें 2 लोगों के अलावा खालिस्तान का कोई नामोंनिशान नहीं मिला। उन्होंने बताया कि उन्हें बाद में पता चला कि उनका इस्तेमाल हो रहा है। उन्होंने ये भी बताया कि भिंडरांवाले को गिरफ्तार करने के लिए भी पूरी साजिश रची गई थी।
उन्होंने बताया, “कॉन्ग्रेस ने अकाली दल से बातचीत की योजना बनाई, ताकि उन्हें ऐसा लगे कि समस्या का समाधान किया जा रहा है। 26 दौर की बातचीत चली, जिनमें से कुछ में इंदिरा गाँधी भी शामिल हुई। संजय गाँधी ने 1985 से पहले का चुनाव भिंडरांवाले-खालिस्तान मुद्दे पर जीतने की योजना बनाई। 1982 के मध्य के बाद हमें सूचना मिली कि इंदिरा गाँधी की जान खतरे में है। भिंडरांवाले स्वर्ण मंदिर में शिफ्ट हो गया था। उसे गिरफ्तार करने की साजिश भी ऐसे रची गई, जैसे वो बहुत बड़ा व्यक्ति था और उसे पकड़ना आसान नहीं था।”