महाराष्ट्र (Maharashtra) की सियासत में आज सबसे बड़ा सवाल यही है कि कैसे भतीजे अजित पवार (Ajit Pawar) ने अपने ही चाचा शरद पवार (Sharad Pawar) का सियासी टाइम खराब कर दिया. दूसरी तरफ ये भी पूछा जा रहा है कि एकनाथ शिंदे (Eknath Shinde) के नेतृत्व वाली सरकरा में अजित पवार की एंट्री से क्या शिंदे की सीएम की कुर्सी को खतरा है. इस पर बीजेपी ने अपना रुख साफ कर दिया है. केंद्रीय मंत्री नारायण राणे ने कहा कि 2024 तक एकनाथ शिंदे ही सीएम बन रहेंगे. इस बारे में विपक्षी जो भी दावा कर रहे हैं वो झूठे हैं. आइए जानते हैं कि अजित पवार ने इतना बड़ा कदम क्यों उठाया और इसकी क्या वजहें हैं.
बता दें कि अजीत पवार ने एक झटके में मराठा छत्रप शरद पवार की सियासत को बदल दिया. कल तक जिसे महाराष्ट्र की सियासत का चाणक्य कहा जाता था, वो भतीजे के दांव से अकेला खड़ा नजर आ रहा है. हालांकि, अजीत पवार के बीजेपी से नजदीकी की बातें 2019 से ही कही जा रही हैं जब उन्होंने कुछ घंटों के लिए बीजेपी की फडणवीस सरकार के साथ हाथ मिलाया था. लेकिन बड़े बदलाव के कयास पार्टी के 25वें स्थापना दिवस में हुए बदलावों के बाद से लगने लगे थे.
10 जून को हुए इन बदलावों में शरद पवार ने बेटी सुप्रिया सुले और प्रफुल्ल पटेल को कार्यकारी अध्यक्ष बनाया था लेकिन भतीजे अजीत पवार को कोई जिम्मेदारी नहीं दी गई थी. अजीत पवार के बारे में कहा गया था कि वो पहले से ही महाराष्ट्र में पार्टी को संभाल रहे हैं. पार्टी ने नए पदाधिकारियों को महाराष्ट्र में कोई भूमिका नहीं दी. इसलिए अजीत पवार की भूमिका में कोई बदलाव नहीं हुआ.
इसके एक महीने के अंदर ही अजित पवार के समर्थकों के साथ एकनाथ शिंदे सरकार में शामिल हो जाने से सवाल उठने लगा है कि क्या NCP में साइडलाइन होने पर बागी हुए अजित पवार? तो क्या, पार्टी की नई रूप रेखा में नई जिम्मेदारी न मिलने से नाराज थे अजित पवार? हालांकि, अजित पवार ने उस वक्त हुए बदलावों का स्वागत किया था लेकिन ताजा बदलावों से साफ है कि उन्होंने अपना वक्त आने का इंतजार किया.
कहा जा रहा है कि महाराष्ट्र सरकार में शामिल होने की रणनीति अजित पवार के घर हुई उस बैठक में बनी, जिसके बारे में शरद पवार को ज्यादा कुछ पता नहीं चल पाया और वो आखिरी तक इस बारे में अनजान ही रहे. हालांकि शिंदे सरकार में बतौर उपमुख्यमंत्री शामिल होने के बाद हुई प्रेस कॉन्फ्रेंस में अजीत पवार ने दावा किया कि उन्हें पार्टी में सभी का आशीर्वाद हासिल है
इसमें कोई शक नहीं है कि सरकार में शामिल होने के अजीत पवार के कदम में पार्टी के वरिष्ठ नेताओं की सहमति है. प्रफुल्ल पटेल, शरद पवार के सबसे खास साथी माने जाते हैं लेकिन इस बार राजभवन में हुए शपथ ग्रहण कार्यक्रम से लेकर प्रेस कॉन्फ्रेंस तक में वो अजित पवार के साथ नजर आए. लिहाजा अजित पवार की बगावत की एक और वजह गिनाई जाने लगी है. इस वजह के सूत्र 23 जून को पटना में हुई विपक्षी दलों की बैठक से जुड़े हैं. दावा किया जा रहा है कि राहुल गांधी के नेतृत्व में विपक्षी एकता से नाराजगी है? इस बगावत की बड़ी वजह बनी. मसला जब राहुल गांधी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी में किसी एक को चुनने का आया तो अजीत पवार ने नरेंद्र मोदी को चुना.