पाकिस्तान दुनिया का इकलौता देश होगा जिसके सत्तारूढ़ नेता खुलकर कहते हैं कि आतंकवाद उसकी ‘नीति का हिस्सा’ है और ‘आतंकवादियों को समर्थन देना जारी रखेंगे’। दुनिया के विभिन्न हिस्सों में अपने यहां चल रहे जिहादी प्रशिक्षण शिविरों से आतंकवादियों भेजकर जो देश अपनी पीठ थपथपाता रहा है आज वह अपनी ऐसी ही नीतियों और रवैए की वजह से भूखों मरने को विवश है और खुद को ‘आतंकवाद से पीड़ित’ बता रहा है। कुछ ऐसा ही ‘पीड़ित’ बताया होगा पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल मुनीर ने ईरान के हुक्मरानों को। क्योंकि अभी दो दिन के दौरे पर तेहरान गए मुनीर के वहां से रवाना होने से पहले जो साझा बयान जारी किया गया है, उसमें कहा गया है कि पाकिस्तान और ईरान मिलकर ‘आतंकवाद का मुकाबला’ करेंगे।
भारत के पड़ोसी इस्लामी देश ने जिन जिहादियों को पोसा है वे अपने हथियारों का मुंह पाकिस्तान की तरफ मोड़ने में दो बार नहीं सोचते हैं। वहां बलूचिस्तान के उग्रपंथी गुटों ने ‘जालिम’ हुक्मरानों और उनकी सेना की नाक में दम किया हुआ है। उस प्रांत में सेना और पुलिस वालों को लगातार निशाना बनाया जा रहा है तो अफगानिस्तान से सटे क्षेत्रों में जिहादी गुट टीटीपी पाकिस्तान की सरकार और जनता को चैन नहीं लेने दे रहा है। मीडिया में आए समाचारों के अनुसार, बलूचिस्तान में एक ही दिन में दो हमलों में 12 लोगों की जान जाने के बाद पाकिस्तान कांप गया है और उसके गुस्से के निशाने पर वही तालिबानी हैं जिनको कथित तौर पर उसी ने बढ़ाया है।
जिस अफगानिस्तान में पाकिस्तान की कथित मदद से जिहादी तालिबान कुर्सी पर चढ़े बैठे हैं अब मजहबी उन्मादियों के देश को उन्हीं से खतरा दिखने लगा है। इस खतरे से निपटने के लिए पाकिस्तान ने उस कट्टर शिया देश का दामन थामने का फैसला किया है जिसके यहां हिजाब विरोधी आंदोलन की वजह से कानून—व्यवस्था खुद चरमराई हुई है!
अब ये दोनों कट्टर इस्लामी देश ने मिलकर इस ‘कट्टर इस्लामी जिहादी खतरे’ का सामना करने वाले हैं। जनरल असीम मुनीर के तेहरान से रवाना होने से पहले जो साझा बयान जारी किया गया उसमें इस बारे में कहा गया है। कहा गया है कि ये दोनों देश मिलकर सीमाओं की चौकसी के नए तरीके ढूंढने की कोशिश करेंगे। ऐसा आतंकवाद की चुनौती को टक्कर देने के लिए किया जाएगा।
पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में अभी गत सप्ताह ही एक दिन में हुए दो जबरदस्त आतंकी हमलों की वजह से पाकिस्तान दहला हुआ है। इस हमले में उसके 12 सैनिक हलाक हुए थे। पहले कभी किसी आतंकी हमले में इतने सारे फौजी एक साथ नहीं मरे थे। पाकिस्तान मानता है कि उसके विरुद्ध ये हमले अफगानिस्तान में बैठे तालिबान करा रहे हैं। उसने यह बात सार्वजनिक रूप से कही है कि तालिबान के नेता पाकिस्तान पर चोट करने की हरकतों को शह दे रहे हैं। खासकर तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) वाले, जिनका संचालन अफगानिस्तान की जमीन से हो रहा है।
अफगानिस्तान का पड़ोसी और खुद को उसका ‘आका’ समझने वाला पाकिस्तान टीटीपी की हरकतों की वजह से तालिबान से नाराज रहा है, दोनों के बीच तीखी नोकझोंक होती रही है। बीच में कभी कभी मुल्ला—मौलवियों की तरफ से संघर्षविराम का शगूफा छोड़ा जाता है जो कामयाब नहीं होता। पाकिस्तान सरकार की तरफ से दबी जबान में आरोप भी लगाए जाते रहे हैं कि एक जिहादी गुट आईएस-खुरसान को छोड़ दें तो बाकी के सभी जिहादी गुटों को तालिबान की शह मिली हुई है। पाकिस्तान ने तालिबान के विरुद्ध बेहद तीखे शब्दों का इस्तेमाल करने से भी गुरेज नहीं किया है।
हाल में पाकिस्तान में फौज की तरफ से बयान तक जारी किया गया कि टीटीपी अफगानिस्तान में सुरक्षित पनाह पाए हुए है, उसे वहां से अपनी हरकतें करते रहने की छूट मिली हुई है। इस्लामी देश पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने भी सीधा आरोप लगाते हुए कहा कि तालिबान अपने पड़ोसी और दोस्त देशों के लिए अपनी जवाबदेही की अनदेखी कर रहा है। ख्वाजा ने कहा कि तालिबान दोहा शांति समझौते से साफ परे जा रहा है। लेकिन ऐसे हालात ज्यादा लंबे वक्त नहीं चलने दिए जाएंगे।
कुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि पाकिस्तान के सब्र का बांध टूट रहा है। पाकिस्तान सरकार और फौज यह जताने में संकोच भी नहीं करती। पाकिस्तान मीडिया में भी ऐसे बयान छपे है कि टीटीपी गुट काबुल में बैठी तालिबान सरकार का सबसे नजदीकी मददगार बना बैठा है। संभवत: इसी वजह से पाकिस्तान सरकार अपने यहां हो रहे जिहादी हमलों के लिए तालिबान पर खुलकर आारोप लगा रही है। मुनीर का तेहरान जाना और इस तरह का समझौता करना यही दिखाता है कि जिहादी सोच का पाकिस्तान ‘जिहादी’ हरकतों से परेशाना है।