अभी एक सप्ताह भी नहीं हुआ जब पंजाब प्रांत की एक अहमदिया मस्जिद को पुलिस ने एक कट्टरपंथी गुट की धमकी में आकर अहमदिया मस्जिद की मीनारें तोड़ी थीं। अब कट्टरपंथी सुन्नी गुट का वह अहमदिया विरोधी अभियान सिंध तक पावं पसारता जा रहा है। कराची में एक अहमदिया मस्जिद को तोड़े जाने की ताजा घटना इसी तरफ इशारा करती है।
कराची में मजहबी उन्मादियों ने अहमदिया समुदाय की मस्जिद पर हमला बोलकर उसे तोड़ डाला। सुन्नी कट्टरपंथी अहमदियाओं को मुस्लिम मानते ही नहीं हैं। कराची में तोड़ी गई अहमदिया मस्जिद बहुत प्राचीन बताई गई है। पाकिस्तान बनने से पहले से वह वहां मौजूद है। हालांकि अहमदिया समुदाय स्वयं को मुसलमान ही मानता है, लेकिन पड़ोसी इस्लामवादी पाकिस्तान उन्हें मुसलमान नहीं मानाता है। 1974 में वहां के संविधान में हुए संशोधन के बाद से अहमदिया सुन्नियों के विपरीत, मुसलमान नहीं माने जाते और उन्हें वे अधिकार भी प्राप्त नहीं हैं तो बहुतसंख्यक सुन्नियों को सहज उपलब्ध हैं। अहमदिया वहां अल्पसंख्यक की श्रेणी में आते हैं।
एक दिन पहले जो अहमदी मस्जिद तोड़ी गई है वह कराची के एक प्रमुख स्थान पर बनी हुई है। मस्जिद में तोड़फोड़ करने के अलावा मजहबी उन्मादियों ने उसकी दीवारों पर काला रंग पोत कर उसे बदसूरत करने की कोशिश की है। इस घटना से आहत जमात-ए-अहमदिया ने प्रशासन से इस मामले पर गंभीरता से जांच करने की अपील की है। जमात के प्रवक्ता आमिर महमूद का कहना है कि 24 जुलाई को दोपहर बाद उन्मादियों की भीड़ मस्जिद में घुस आई। वे अपने साथ हथौड़े आदि लेकर आए थे जिनसे उन्होंने मस्जिद की मीनारें ही नहीं तोड़ी बल्कि साथ लाए काले रंग से दीवारों को भी भद्दा कर दिया।
आमिर महमूद के अनुसार, इस साल अभी तक अहमदिया समुदाय की मस्जिदों को यह 11वीं बार धावा बोलकर तोड़ा गया है। ये हमले गत जनवरी से ही जारी हैं। बीच बीच में किसी मस्जिद को निशाने पर लेकर उन्मादियों की एक भीड़ आती है और तोड़फोड़ करके गायब हो जाती है। अभी जिस बैत—उल—मुबारक मस्जिद पर यह नफरती कार्रवाई की गई है, उस इसी स्थान पर कई दशकों से स्थित है। ऐसे सभी मामलों को पुलिस का परोक्ष समर्थन जैसा दिखता है। क्योंकि, इन घटनाओं के अपराधियों को पकड़ा ही नहीं जाता। पुलिस खुद कट्टरपंथी गुट टीएलपी के दबाव में रहती है। इस उन्मादी गुट ने अहमदिया मस्जिदों को तोड़े जाने का एक अभियान ही छेड़ा हुआ है, अहमदिया समुदाय को धमकी देते पोस्टर चिपकाए गए हैं।
पाकिस्तान में अल्पसंख्यक अहमदियों की बैत—उल—मुबारक मस्जिद शाह फैजल थाने के अंतर्गत आती है। वहां की पुलिस के अनुसार, मस्जिद पर हुए उस हमले में मुश्किल से चार—पांच लोग ही सम्मिलित थे। उनमें से कुछ हेलमेट से चेहरा ढके हुए थे। वे सीढ़ी लगाकर मस्जिद के गुंबदों तक पहुंचे और तोड़फोड़ करने लगे।
स्थानीय पुलिस का एक बयान साफ संकेत करता है कि उस हमले को उसका मूक समर्थन प्राप्त था। पुलिस का कहना है कि अहमदी समुदाय की उस मस्जिद पर ‘बिना इजाजत के एक गुंबद बना था’। वे लोग इसे ही तोड़ने आए थे, और इसे तोड़कर भाग खड़े हुए। पुलिस ने एक और हैरान करने वाला बयान दिया कि ‘पुलिस की तरफ से बार बार कहने के बाद भी अहमदिया समुदाय ने कोई लिखित शिकायत दर्ज नहीं कराई’। लेकिन जमात का कहना है कि उन्होंने फौरन इस बारे में पुलिस को पूरी जानकारी दी थी और शिकायत भी दर्ज कराई थी। जमात ने मजहबी उपद्रवियों के सीसीटीवी फुटेज भी पुलिस को दिए हैं। शिकायत में दर्ज है कि मुस्जिद की इमारत यहां 1948 में बनी थी, बाद में 1955 में उसकी मीनारें बनाई गई थीं।
अहमदियों के संदर्भ में 1974 में संविधान में किए गए संशोधन में बताया गया है कि किसे मुस्लिम माना जाएगा, किसे नहीं। यानी उसमें मुस्लिम और गैर-मुस्लिम को परिभाषित किया गया है। लिखा है कि ‘पैगंबर मोहम्मद की कही भविष्यवाणी ही आखिरी है उसमें जो भरोसा नहीं करता उसे मुसलमान नहीं माना जा सकता है’। इस संशोधन में कहा गया है कि “कादियानी या लाहौरी समुदाय के लोग(खुद को ‘अहमदी’ कहने वाले) गैर-मुस्लिम हैं’। फिर 1984 में एक अध्यादेश लाया गया जिसमें है कि अहमदियाओं की इबादतगाहों को ‘मस्जिद’ न कहा जाए, वे अपने मत का प्रचार भी नहीं कर सकते।
इसी कानून की आड़ में पाकिस्तान में सुन्नी कट्टरपंथी अहमदियाओं पर अत्याचार करते आ रहे हैं और पुलिस उनके पाले में खड़ी रही है। यहां तक कि अदालतों से भी अहमदिया समुदाय के लोगों को पूर्वाग्रह के चलते अधिकांश मामलों में न्याय नहीं मिलता।