ज्ञानवापी पर परिसर में एएसआई की 56 सदस्यी टीम परिसर के एक-एक हिस्से का बारीकी से जांच कर रही हैं। तीनों गुंबदों की निर्माण शैली और उसके ऊपर की गई रंगाई-पुताई के नमूने कलेक्ट किए गए हैं। गुंबदों के ढांचे की लंबाई-चौड़ाई व ऊंचाई को मैप के माध्यम से दस्तावेजों में अंकित किया गया है। लाइट डिटेक्शन एंड रेजिंग जिसे लिडार कहते हैं। इस विधि का प्रयोग करके छिपी वस्तुओं का भी पता किया जा रहा है। टीम आज पश्चिमी दीवार, गुंबदों और तहखानों की जांच करेगी। अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन ने बताया कि पूरी प्रक्रिया वैज्ञानिक पद्धति पर आधारित है।
रडार तकनीक के लिए आईआईटी कानपुर के विशेषज्ञों की टीम सर्वे में आज शामिल हो सकती हैं। दो टीमें गुंबदों और उसके नीचे के मुख्य हॉल में तो एक टीम ने व्यास तहखाने में जांच की कमान संभाल रही है। एएसआई विशेषज्ञों ने सीढ़ी लगाकर गुंबदों के ऊपर जाकर नाप-जोख के साथ वैज्ञानिक पद्धति से जांच की। गुंबदों के अंदर और पश्चिमी दीवारों पर बनी कलाकृति, धार्मिक चिह्नों और बनावट की जांच के लिए कॉबिनेशन सेंट वर्नियर प्रॉजेक्टर मशीन का उपयोग किया गया।
ज्ञानवापी में पश्चिमी दीवार से लगे हुए मलबे के साथ ढेरों पत्थर जमीन पर पड़े मिले हैं। इन पत्थरों पर भी कमल, पत्तों, त्रिशूल, डमरू जैसी आकृति नजर आई है। सर्वे टीम ने इनकी तस्वीरों का मिलान पश्चिमी दीवार पर मिली आकृतियों के साथ किया। यह आपस में मिलती-जुलती लगती हैं। पत्थर के टुकड़े भी दीवार का हिस्सा जैसे ही लगते हैं। बहरहाल, पत्थरों के टुकड़ों की जांच की जा रही है।