भारत के मणिपुर प्रदेश में गत करीब चार महीने पहले उपजा हिंसक तनाव अब शांत है और जनजीवन सामान्य होता जा रहा है। पिछले कई दिनों से वहां से हिंसा या आगजनी की कोई खबर न आना संतोष की बात है। लेकिन 3 मई को इस हिंसा के भड़कने के पीछे क्या कारण रहे, इसे लेकर देश के अनेक सरकारी—गैरसरकारी संगठनों ने अध्ययन करके अपना—अपना निष्कर्ष सामने रखा है। कई रिपोर्ट बताती हैं कि इसमें मणिपुर में तेजी से कन्वर्जन कर रहा चर्च और नशीले पदार्थों पर राज्य सरकार की सख्ती से नाराज कूकी तत्वों ने राज्य सरकार को हटाने के लिए हिंसा और आगजनी का तांडव रचाया था। इसी क्रम में अमेरिका के थिंक टैंक ने भी इस विषय में अपनी एक रिपोर्ट रखी है जिसमें कहा गया है कि वह हिंसा पांथिक कारणों से नहीं बल्कि जनजातियों में उपजाए गए अविश्वास की वजह से हुई थी। अमेरिका स्थित इस थिंक टैंक फाउंडेशन फॉर इंडिया एंड इंडियन डायस्पोरा स्टडीज ने मणिपुर हिंसा का अपने स्तर पर अध्ययन किया और निष्कर्ष में लिखा कि वहां जनजातीय समुदायों में आपसी अविश्वास, आर्थिक स्थिति पर असर पड़ने का भय, ड्रग्स, उग्रपंथ तथा कुछ ऐतिहासिक घटनाएं इस हिंसा की जिम्मेदार रही हैं।
भारत से जुड़े विषयों पर खास नजर रखने वाले टैंक फाउंडेशन फॉर इंडिया एंड इंडियन डायस्पोरा स्टडीज ने अपनी इस रिपोर्ट में स्पष्ट लिखा है कि भारत के मणिपुर राज्य में हुई इस हिंसा में किसी तरह की विदेशी दखल होने की बात का पूरी तरह नकारा नहीं जा सकता है। थिंक टैंक की रिपोर्ट आगे कहती है कि मणिपुर में शांति व्यवस्था बनाए रखने के लिए राज्य और केंद्र की सरकारों, दोनों ने अपने अंतर्गत सभी संसाधनों का प्रयोग किया है। हालांकि रिपोर्ट आम धारणा कि जनजातियों में चर्च द्वारा भेद और तनाव पैदा किया जा रहा है, को नकारती है, लेकिन यह जरूर मानती है कि जनजातीय समुदायों में पांथिक आधार पर ध्रुवीकरण बेशक है। लेकिन उस ध्रुवीकरण का इस हिंसा में कोई हाथ होने के साक्ष्य नहीं दिखे हैं। थिंक टैंक का मानना है कि मणिपुर में हिंसा जनजातीय समुदायों में बंटवारे और बहुत पहले से चले आ रहे आपसी अविश्वास का हाथ रहा है।
इस रिपोर्ट ने उस आशंका को और पुष्ट किया है कि इस हिंसा की आड़ में उग्रपंथी और विद्रोही गुट एक बार सक्रिय हुए। अफीम और हेरोइन का कारोबार करने वाले नशे के माफियाओं ने हिंसा में अपना पैसा झोंककर उसे हवा दी। इसमें किसी विदेशी दखल की संभावना को नकारा नहीं जा सकता। इस बात की आशंका भारत के भी कई विशेषज्ञों को है कि मणिपुर में सरकारी जमीन पर नशे की खेती करने वाले तस्कर और माफिया राज्य सरकार के इसके विरुद्ध कड़े कदम उठाए जाने से नाराज थे इसलिए वे उपद्रव करके बीरेन सिंह सरकार को अपदस्थ कराने की फिराक में थे। उन्हें चर्च का कथित साथ मिला और मैतेई समुदाय, जो वहां प्राचीन काल से ही बहुसंख्यक है, उसे वहां से उखाड़ने का पूरा खाका तैयार किया गया। इसी के अनुसार, 3 मई 2023 को इंफाल में चर्च की तरफ से एक ‘शांति मार्च’ के आयोजन की आड़ में विद्रोही कूकी संगठनों को कथित संकेत दिया गया कि वे उपद्रव मचाने को तैयार रहें।
अमेरिकी थिंक टैंक की रिपोर्ट बताती है कि इधर पिछले कुछ हफ्तों से मणिपुर में हिंसा और प्रदर्शनों में कमी देखने में आ रही है, लेकिन वहां अविश्वास का माहौल अब भी बना हुआ है। हिंसा की वजह से बेघर हुए लोग अभी भी अपने घरों को लौटने में असहज महसूस कर रहे हैं। मणिपुर में शांति कैसे आए और आपसी विश्वास कैसे कायम हो, इस बारे में थिंक टैंक का मानना है कि आपस में बातचीत, समुदायों के बीच विश्वास बहाली के साथ ही राहत तथा पुनर्वास के काम तेजी से करने होंगे। इस संस्था का ने बताया कि वे यह रिपोर्ट अमेरिका के नीति निर्माताओं और अन्य संबंधित संस्थाओं के साथ साझा करेंगे।
उल्लेखनीय है कि मणिपुर में बहुसंख्यक और वहां के प्राचीन काल से मूल निवासी माने जाने वाले मैतेई समुदाय को आरक्षण देने के न्यायालय के प्रयासों के विरुद्ध प्रदर्शनों की आड़ में हिंसा का तांडव रचा गया था। अपुष्ट आंकड़ों के अनुसार, 3 मई को शुरू हुई हिंसा में अभी तक सौ से ज्यादा लोग मारे गए हैं, हजारों लोगों को घर छोड़कर भागना पड़ा है।