अफगानिस्तान में गैर मुस्लिम नाममात्र के रह गए हैं। लेकिन इन्हें भी तालिबानी शासन में कठोर पाबंदियों का सामना करना पड़ रहा है। हिंदू-सिख महिलाओं को बुर्का और नकाब पहनने को मजबूर किया जा रहा है। सार्वजनिक तौर पर वे त्योहार भी नहीं मना सकते हैं।
रेडियो फ्री यूरोप/रेडियो लिबर्टी (RFE/RL) की रिपोर्ट से अफगानिस्तान में गैर मुस्लिमों की दयनीय स्थिति सामने आई है। इसमें बताया गया है कि तालिबानी कब्जे के बाद ही अंतिम यहूदी परिवार को देश छोड़कर भागना पड़ा था। अब हिंदू और सिख परिवार मुट्ठी भर बचे हैं। लेकिन ये भी कठोर प्रतिबंधों का सामना कर रहे हैं।
अफगानिस्तान में अब हिंदू और सिखों की जनसंख्या नाम मात्र ही बची हुई है। वहीं अब तालिबान उनके त्योहार मनाने पर प्रतिबंध और मुस्लिमों की तरह कपड़े पहनने को लेकर मजबूर कर रहा है। ऐसे में लोगों के पास अफगानिस्तान छोड़कर वापस भारत लौटने के अलावा कोई और रास्ता नहीं बचा है।
हिंदू-सिखों को मुस्लिमों की तरह दिखने, उनकी तरह कपड़े पहनने को मजबूर किया जा रहा है। अफगानिस्तान की राजधानी काबुल में भी सिखों की संख्या बहुत कम रह गई है। काबुल में रहने वाली फरी कौर का कहना है, “मैं अपने मन से कहीं भी बाहर नहीं जा सकती। जब मैं बाहर जाती हूँ तब मुझे मुस्लिमों की तरह पकड़े पहनने के लिए मजबूर किया जाता है। तालिबान नहीं चाहता कि मैं सिख की तरह दिखूँ।”
साल 2018 में जलालाबाद में हिंदुओं और सिखों को निशाना बनाकर किए गए आत्मघाती हमले में फरी के पिता की मौत हो गई थी। इसके बाद उनकी माँ और बहनों समेत करीब 1500 सिखों ने अफगानिस्तान छोड़ दिया था। लेकिन वह अपने पिता का सपना पूरा करने के लिए अफगानिस्तान में ही रुक गईं। तालिबान के कब्जे के बाद भी सैकड़ों सिख अफगानिस्तान छोड़ चुके हैं। लेकिन फरी कौर कहीं नहीं गईं। लेकिन अब उनका कहना है कि तालिबानी शासन में हालात ऐसे हो गए हैं कि उन्हें अफगानिस्तान छोड़ना पड़ेगा। तालिबान के वापस लौटने के बाद से उन्होंने त्योहार नहीं मनाए हैं।
तालिबान के डर से अफगानिस्तान से भागकर भारत आए चाबुल सिंह और उनका परिवार अब दिल्ली में रह रहा है। चाबुल की तरह कई हिंदू, सिख परिवार अफगानिस्तान से भारत आ गए हैं। उन्हें अब यहाँ गरीबी का सामना करना पड़ रहा है। चाबुल ने बताया कि उन्हें परेशान होकर अफगानिस्तान छोड़ना पड़ा। वह अपने भाई और बेटे के साथ छोटे-मोटे काम कर जीवनयापन कर रहे हैं।
गौरतलब है कि तालिबान ने जब पहली बार (1996-2001 तक) अफगानिस्तान में कब्जा किया था तब भी उसने इसी तरह के प्रतिबंध लगाए थे। यहाँ तक कि उसने हिंदू और सिखों की पहचान के लिए उन्हें पीले बैज पहनने के लिए कहा था। मंदिर बनाने पर प्रतिबंध लगा दिया था। यही नहीं इस्लामिक आक्रांताओं द्वारा गैर-मुस्लिमों पर लगाया जाने वाला जजिया कर भी उसने हिंदू और सिखों पर थोप दिया था।
साल 2001 में अमेरिका ने अपनी सेना उतारकर तालिबान को उखाड़ फेंका था। तब हिंदुओं और सिखों की जिंदगी काफी हद तक ठीक हो गई थी। उन्हें कई प्रकार के अधिकार दिए गए थे। यहाँ तक कि संसद में सीटें भी मिलीं थीं। लेकिन अगस्त 2021 में तालिबान के दोबारा कब्जे के बाद एक बार भी अल्पसंख्यकों का जीवन दुश्वार हो गया है।