इजराइल-हमास युद्ध खतरनाक अंजाम की ओर आगे बढ़ने लगा है. दोनों ओर से जारी हमलों और विनाशलीला को देखते हुए रक्षा मामलों के जानकारों ने भारत को विशेष तौर पर अलर्ट किया है और नीतियों में सुधार की चेतावनी दी है. रक्षा विशेषज्ञों का कहना है आज के हालात को देखते हुए भारत को वैसी गलती नहीं करनी चाहिए, जैसी इजराइल और रूस जैसे देशों ने की है. जानकारों का कहना है अपनी रक्षा नीतियों में खामियों की वजह से ही आज इजराइल और रूस खतरनाक अंजाम को भुगत रहे हैं.
आर्टिलरी के पूर्व महानिदेशक लेफ्टिनेंट जनरल पीआर शंकर का कहना है आज इजराइल-हमास युद्ध को लेकर दुनिया दो ध्रुवों में बंटी हुई है. कई नेता इजराइल की जवाबी कार्रवाई का समर्थन कर रहे हैं तो कुछ फिलिस्तीन के मुद्दे का समर्थन कर रहे हैं. उनके मुताबिक भारत को आज अपनी दो रक्षा योजनाएं मसलन अग्निवीर और सक्रिय युद्ध में महिलाओं की भूमिका को लेकर सचेत होना चाहिए.
अग्निवीर योजना को लेकर सवाल
लेफ्टिनेंट जनरल पीआर शंकर ने रूस-यूक्रेन और इजराइल-हमास युद्धों का नजीर देते हुए कहा कि भारत को 2022 में शुरू की गई अग्निवीर योजना में बदलाव किया जाना चाहिए. उन्होंने इस योजना के तहत चार के कार्यकाल को नाकाफी बताया है.
पीआर शंकर का कहना है हमने रूस- यूक्रेन तथा इजराइल-हमास के युद्धों में देखा है कि रूसी सेना यूक्रेनी सैनिकों पर काबू पाने में सक्षम नहीं थी, वैसे ही इजराइली सेना हमास के आतंकवादियों से निपटने में असमर्थ है.
4 साल का कार्यकाल पर्याप्त नहीं
उनका कहना है अग्निवीर योजना के कार्यान्वयन का मतलब होगा युवा, कम प्रशिक्षण और अनुभवहीन सैनिकों को आगे की पंक्ति में तैनात किया जाना जबकि अनुभवी अधिकारी मुख्यालय में तैनात रहेंगे, इससे सेना कमजोर होगी. उनके मुताबिक खतरनाक हालात में चार साल से कम अनुभव वाले नए जवान गंभीर परिस्थितियों में प्रभावी ढंग से निपटने में सक्षम नहीं होंगे.
8 साल हो अग्निवीर का कार्यकाल
इसी के साथ उनका ये भी कहना है कि युद्ध में टेक्नोलॉजी को ही सबसे अहम नहीं मान लेना चाहिए. अगर ऐसा होता तो रूस और इजराइल अब तक बहुत बेहतर स्थिति में होते लेकिन उन्होंने अनुभवी सेना को पीछे रखा. यह उनकी सबसे बड़ी गलती थी. हमें रूस और इजराइल की गलतियों से सीखना चाहिए.
पीआर शंकर का कहना है अग्निवीर योजना की हमें सख्त जरूरत है, लेकिन चार साल के लिए नहीं, बल्कि यह सात-आठ सालों का होना चाहिए.
सक्रिय युद्ध में महिलाओं की भूमिका
पीआर शंकर का कहना है कि पुराने दिनों में भी महिलाएं सक्रिय युद्ध में हिस्सा लेती थीं, लेकिन उन दिनों युद्ध के नियम अलग थे. आज का युद्ध बिना किसी नियम का होता है. महिला सशक्तीकरण की बात जरूरी है लेकिन बाहरी समाज की तरह यहां भी महिलाओं को भेदभाव से गुजरना पड़ता है.
उनका ये भी कहना है कि मैं महिलाओं के साहस या उनकी क्षमताओं पर सवाल नहीं उठा रहा बल्कि उनकी उचित तैनाती के बारे में सलाह देना चाहता हूं. हमारा कहना है कि महिला अधिकारियों को युद्ध से जुड़े दूसरे कार्यों में लगाएं अग्रिम मोर्चे पर नहीं.
तोपखाने में महिलाओं की तैनाती सही
उनका कहना है कि मैं महिलाओं को तोपखाने में शामिल किए जाने का समर्थन और सराहना करता हूं लेकिन अग्रिम मोर्चे पर उनकी तैनाती को लेकर गहराई से सोचने की जरूरत है. इसे इजराइल के हालात से समझा जा सकता है. आज हमास के आतंकवादियों ने इजराइली सेना की महिला अधिकारियों के साथ जो किया है, यह किसी से छुपा नहीं है. क्या हम इसे बर्दाश्त कर सकेंगे?