इजराइल और फिलिस्तीन में 11 दिनों से जारी जंग में अब तक दोनों ओर से चार हजार से ज्यादा लोगों की मौत हो गई है. फिलिस्तीन के 2800 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है तो इजराइल के 1400 लोगों की जान जा चुकी है. वहीं, 14 हजार से ज्यादा लोग घायल हैं. इजराइल के मुताबिक उसके 199 नागरिक हमास के कब्जे में हैं. संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक गाजा युद्ध में अब तक 10 लाख लोग विस्थापित हो चुके हैं. इस लड़ाई का असर भारत में भी हुआ है. कई राजनीतिक दल और संगठन जंग को लेकर अपने अपने तर्क देने में जुटे हैं. कोई इजराइल का सपोर्ट कर रहा है तो कोई फिलिस्तीन का.
इजाइल और हमास के बीच जंग 7 अक्टूबर को शुरू हुई, जब हमास ने अचानक इजराइल पर एक के बाद एक 5000 से ज्यादा रॉकेट दाग दिए. जवाब में इजराइल ने भी हमास पर गाजा में हवाई हमले शुरू कर दिए. देखते ही देखते यह संघर्ष खूनी जंग में तब्दील हो गया. जंग को लेकर दुनिया के तमाम देशों की प्रतिक्रियाएं सामने आने लगी. इस दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हमास के हमलों की निंदा की और कहा कि इस कठिन वक्त में भारत इजराइल के साथ खड़ा है. पीएम मोदी के ट्वीट के बाद राजनीति शुरू हो गई. विपक्ष ने पीएम मोदी पर निशाना साधना शुरू कर दिया.
‘जो हालात बने हैं, वह सिर्फ इजराइल की वजह से बने’
पीएम के ट्वीट के बाद कांग्रेस और असदुद्दीन ओवैसी की ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) ने फिलिस्तीन के समर्थन का ऐलान कर दिया. ओवैसी खुलकर हमास के समर्थन में खड़े हो गए. ओवैसी ने कहा कि इजराइल गाजा पट्टी पर हमेशा से फिलिस्तीनियों पर जुल्म करता रहा. वहां शरणार्थियों को मारा जा रहा है. इजराइल ने गाजा को जेल में बदल दिया.उन्होंने साफ कहा कि जो हालात बने हैं, वह सिर्फ इजराइल की वजह से बने हैं.
जंग के बाद भारतीय विदेश मंत्रालय ने जो बयान दिया है, वह भी समझने की जरूरत है. विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने कहा कि भारत फिलिस्तीन के संप्रभु और स्वतंत्र राज्य की स्थापना के लिए लंबे वक्त से अपने समर्थन में विश्वास करता है.इजराइल-फिलिस्तीन के मुद्दे पर भारत की ‘द्वि-राष्ट्र समाधान’ की नीति रही है. यानी विदेश मंत्रालय न तो इजराइल का विरोध किया और न फिलिस्तीन का. पीएम मोदी ने भी इसी तरह फिलिस्तीन के संगठन हमास के हमलों की निंदा की थी.
देश में फिलिस्तीन के समर्थन में विरोध प्रदर्शन
दोनों देशों में जंग शुरू होने के बाद भारत में तमाम राजनीतिक दलों और संगठनों ने फिलिस्तीन के समर्थन में रैली निकाली और विरोध प्रदर्शन किया. नॉर्थ से लेकर साउथ तक फिलिस्तीन के समर्थन में ही आवाज़ उठ रही हैं. चेन्नई में ‘तमिलनाडु मुस्लिम मुनेत्र कझगम’ ने फिलिस्तीन के समर्थन में नारेबाजी की. वहीं, कोलकाता में माइनॉरिटी यूथ फोरम के सदस्यों ने भी फिलिस्तीन का समर्थन किया. अगले ही दिन झारखंड की राजधानी रांची में मजदूर संगठनों ने फिलिस्तीन के समर्थन में प्रदर्शन किया और कहा कि भारत सरकार को दोनों देशों से शांति की अपील करनी चाहिए.
कश्मीर के राजनीतिक दल किस तरफ?
नेशनल कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला ने सीधे तौर पर तो किसी का नाम नहीं लिया, लेकिन उनका समर्थन फिलिस्तीन को था. फारूक अब्दुल्ला ने जंग को रोकने की वकालत की. उन्होंने कहा कि जंग हमेशा से बुरी होती है. इससे सभी का नुकसान होता है. हजारों बेगुनाह मारे जा रहे हैं, इससे जंग का समाधान नहीं हो सकता. यूएन हमेशा से फिलिस्तीन के मुद्दे का समाधान खोजने में विफल रहा है.
वहीं, जम्मू कश्मीर पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी की चीफ महबूबा मुफ्ती ने कहा कि दोनों देशों के बीच शांति कायम होनी चाहिए. पीडीपी अध्यक्ष ने एक्स (पहले ट्विटर) पर कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि दुनिया को इजरायल-फलस्तीन संघर्ष की ओर ध्यान देने के लिए इस तरह की मौत और विनाश की जरूरत पड़ रही है. उन्होंने का कि निर्दोष फिलिस्तीनियों की हत्या हो रही है. इसका समाधान करें ताकि शांति बनी रहे.