कलकत्ता हाई कोर्ट ने बुधवार (18 अक्टूबर, 2023) को किशोर लड़के-लड़कियों के यौन व्यवहार पर टिप्पणी की। कोर्ट ने कहा कि किशोर लड़कियों को दो मिनट के मजे के चक्कर में यौन अपराधों में उतरने के बजाय अपनी यौन इच्छाओं (सेक्स की इच्छा) पर नियंत्रण रखें और किशोर लड़कों को युवा लड़कियों, महिलाओं, उनकी गरिमा और शारीरिक सीमाओं के सम्मान का ध्यान रखने की बात कही।
दरअसल, हाई कोर्ट प्रोभात पुरकैत बनाम पश्चिम बंगाल राज्य के मामले में सुनवाई कर रहा था। इसी मामले में न्यायमूर्ति चित्त रंजन दाश और न्यायमूर्ति पार्थ सारथी सेन की खंडपीठ ने एक युवक को बरी करते हुए यह टिप्पणी की, जिसे एक नाबालिग लड़की से रेप के मामले में दोषी ठहराया गया था, जिसके साथ उसके ‘रोमांटिक सम्बन्ध’ थे।
बार एंड बेंच की रिपोर्ट के अनुसार, इसी मामले में हाई कोर्ट ने यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम (POCSO) पर चिंता व्यक्त की। हाई कोर्ट ने कहा कि किशोरों के बीच सहमति से बनाए गए यौन संबंधों को यौन शोषण से जोड़ा गया है और इसलिए कलकत्ता हाई कोर्ट ने अपने फैसले में 16 साल से अधिक उम्र के किशोरों के बीच सहमति से बनाए गए यौन संबंधों को अपराध की श्रेणी से हटाने का सुझाव दिया।
हाई कोर्ट ने कम उम्र में यौन संबंधों से उत्पन्न होने वाली कानूनी जटिलताओं से बचने के लिए भी किशोरों के लिए यौन शिक्षा की जरुरत पर जोर दिया। अपने फैसले में हाई कोर्ट ने यौन इच्छाएँ जागृत होने के कारणों और उस पर लगाम लगाने के महत्व को भी समझाया।
वहीं कलकत्ता हाई कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में यह भी कहा, “हमें कभी यह नहीं सोचना चाहिए कि केवल एक लड़की ही दुर्व्यवहार का शिकार होती है। क्योंकि लड़के भी दुर्व्यवहार का शिकार होते हैं। माता-पिता के मार्गदर्शन के अलावा, इन पहलुओं और रिप्रोडक्टिव हेल्थ और हाइजीन पर जोर देने वाली यौन शिक्षा हर स्कूल के पाठ्यक्रम का हिस्सा होनी चाहिए।”
कोर्ट ने बताया यौन इच्छाओं के जागृत होने का कारण
रिपोर्ट के अनुसार, कलकत्ता हाई कोर्ट ने कहा, “प्रमुख एंड्रोजेनिक स्टेरॉयड टेस्टोस्टेरोन हॉर्मोन है, जो मुख्य रूप से पुरुषों में वृषण (Testicle) और महिलाओं के अंडाशय (Ovaries) से और पुरुषों और महिलाओं दोनों में अधिवृक्क ग्रंथियों (Adrenal Glands) से थोड़ी मात्रा में स्रावित होता है। हाइपोथैलेमस और पिट्यूटरी ग्लैंड्स टेस्टोस्टेरोन की मात्रा को नियंत्रित करते हैं, जो मुख्य रूप से (पुरुषों में) सेक्स या कामेच्छा के लिए जिम्मेदार होता है।
इसका अस्तित्व शरीर में है, इसलिए जब संबंधित ग्रंथि उत्तेजना से सक्रिय हो जाती है, तो यौन इच्छा जागृत होती है। लेकिन संबंधित जिम्मेदार ग्रंथि का सक्रिय होना स्वचालित नहीं है। क्योंकि इसे हमारी दृष्टि, श्रवण, कामुक सामग्री पढ़ने और विपरीत लिंग के साथ बातचीत से उत्तेजना की आवश्यकता होती है। यौन इच्छा हमारी अपनी क्रियाओं से जागृत होता है।”
कलकत्ता हाई कोर्ट ने अपने फैसले में आगे यह भी कहा, “किशोरों में सेक्स सामान्य है लेकिन यौन इच्छा या ऐसी इच्छा की उत्तेजना व्यक्ति, शायद पुरुष या महिला, के कुछ कार्यों पर निर्भर होती है। इसलिए, यौन इच्छा बिल्कुल भी सामान्य और आदर्श नहीं है। अगर हम कुछ क्रियाएँ बंद कर देते हैं, तो यौन इच्छा की उत्तेजना सामान्य नहीं रह जाती, जैसा कि हमारी चर्चा में वकालत की गई है।” इसलिए, पीठ ने इस मुद्दे पर ‘कर्तव्य/दायित्व आधारित दृष्टिकोण’ का प्रस्ताव रखा और किशोर महिलाओं और पुरुषों दोनों के लिए कुछ कर्तव्यों का सुझाव दिया।
रिपोर्ट के अनुसार, कलकत्ता हाई कोर्ट ने कहा, “प्रमुख एंड्रोजेनिक स्टेरॉयड टेस्टोस्टेरोन हॉर्मोन है, जो मुख्य रूप से पुरुषों में वृषण (Testicle) और महिलाओं के अंडाशय (Ovaries) से और पुरुषों और महिलाओं दोनों में अधिवृक्क ग्रंथियों (Adrenal Glands) से थोड़ी मात्रा में स्रावित होता है। हाइपोथैलेमस और पिट्यूटरी ग्लैंड्स टेस्टोस्टेरोन की मात्रा को नियंत्रित करते हैं, जो मुख्य रूप से (पुरुषों में) सेक्स या कामेच्छा के लिए जिम्मेदार होता है।
इसका अस्तित्व शरीर में है, इसलिए जब संबंधित ग्रंथि उत्तेजना से सक्रिय हो जाती है, तो यौन इच्छा जागृत होती है। लेकिन संबंधित जिम्मेदार ग्रंथि का सक्रिय होना स्वचालित नहीं है। क्योंकि इसे हमारी दृष्टि, श्रवण, कामुक सामग्री पढ़ने और विपरीत लिंग के साथ बातचीत से उत्तेजना की आवश्यकता होती है। यौन इच्छा हमारी अपनी क्रियाओं से जागृत होता है।”
कलकत्ता हाई कोर्ट ने अपने फैसले में आगे यह भी कहा, “किशोरों में सेक्स सामान्य है लेकिन यौन इच्छा या ऐसी इच्छा की उत्तेजना व्यक्ति, शायद पुरुष या महिला, के कुछ कार्यों पर निर्भर होती है। इसलिए, यौन इच्छा बिल्कुल भी सामान्य और आदर्श नहीं है। अगर हम कुछ क्रियाएँ बंद कर देते हैं, तो यौन इच्छा की उत्तेजना सामान्य नहीं रह जाती, जैसा कि हमारी चर्चा में वकालत की गई है।” इसलिए, पीठ ने इस मुद्दे पर ‘कर्तव्य/दायित्व आधारित दृष्टिकोण’ का प्रस्ताव रखा और किशोर महिलाओं और पुरुषों दोनों के लिए कुछ कर्तव्यों का सुझाव दिया।
किशोर महिलाओं के लिए हाई कोर्ट के सुझाव
यह प्रत्येक महिला किशोरी का कर्तव्य/दायित्व है:
- वे अपने शरीर की रक्षा करें।
- अपनी गरिमा और आत्म-सम्मान की रक्षा करें।
- लैंगिक बाधाओं को परे रख अपने सम्पूर्ण विकास के लिए प्रयास करें।
- यौन इच्छाओं पर नियंत्रण रखें, क्योंकि समाज की नजरों में वे तब हार जाती हैं, जब मुश्किल से दो मिनट के यौन सुख का आनंद लेने के लिए तैयार हो जाती हैं।
- अपने शरीर की सीमाओं और उसकी निजता के अधिकार की रक्षा करें।
किशोर पुरुषों के लिए हाई कोर्ट के सुझाव
वहीं किशोर पुरुषों के हाई कोर्ट ने कहा, ”किसी युवा लड़की या महिला के उपरोक्त कर्तव्यों का सम्मान करना एक किशोर पुरुष का कर्तव्य है और उसे अपने दिमाग को एक महिला, उसकी मूल्यों, उसकी गरिमा, गोपनीयता और उसकी शारीरिक सीमाओं का सम्मान करना चाहिए।”
यौन शिक्षा, माता-पिता का मार्गदर्शन
गौरतलब है कि हाई कोर्ट ने कामुकता से जुड़े मुद्दों के बारे में किशोरों को मार्गदर्शन और शिक्षित करने के महत्व पर भी जोर दिया। इस उद्देश्य के लिए, पीठ ने कहा कि यह काम घर से शुरू होना चाहिए और माता-पिता पहले शिक्षक होने चाहिए।
पीठ ने आगे कहा कि इसलिए हमें लगता है कि बच्चों, विशेषकर लड़कियों को बुरे स्पर्श, बुरे संकेत और बुरी संगति को पहचानने के लिए माता-पिता का मार्गदर्शन और शिक्षा आवश्यक है। विशेष रूप से उन्हें यह बताने की जरूरत है कि कानून द्वारा मान्य उम्र से पहले यौन संबंध बनाने से उनके स्वास्थ्य और प्रजनन प्रणाली पर क्या विपरीत प्रभाव पड़ सकते हैं।”