इजराइल-हमास की जंग में अमेरिका का किरदार सबसे बड़ा है. यही एक वजह है जिससे आज इजराइल अपने आपको सुरक्षित और ताकतवर महसूस कर रहा है. अमेरिका ने मिडिल ईस्ट में तमाम अत्याधुनिक हथियारों से लैस दो युद्धपोतों, एंटी-मिसाइल सिस्टम और फाइटर जेट्स तक का जखीरा जमा कर लिया है. राष्ट्रपति जो बाइडेन युद्ध शुरू होने के तुरंत बाद इजराइल पहुंच गए और अपना पूरा समर्थन दिया. हथियारों से लेकर सेना तक दी लेकिन इससे अमेरिका और अरब देशों के बीच संबंध बिगड़ रहे हैं, जहां दशकों से उसका दबदबा कायम है.
गाजा पर इजराइल के चौतरफा हमले के लिए अमेरिका का समर्थन उसके अरब सहयोगियों के साथ उसके संबंधों को कमजोर कर रहा है और मिडिल ईस्ट में उसकी मौजूदगी के लिए खतरा बन रहा है. इजराइल को खुला समर्थन देने से खुद जो बाइडेन एडमिनिस्ट्रेशन में विरोधाभास देखा जा रहा है. मसलन, विदेश विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी जोश पॉल ने अपने पद से इस्तीफा तक दे दिया. उन्होंने इस बात का खुलासा किया कि अमेरिका पर्दे के पीछे से इजराइल को हथियार भी सप्लाई कर रहा है.
बिना सबूत अस्पताल हमले पर इजराइल को क्लीन चिट
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने अपनी यात्रा के दौरान इजराइल को सभी तरह की मदद देने का ऐलान किया था. उन्होंने गाजा के लिए मानवीय मदद देने का रास्ता भी खोला लेकिन खुद यूनाइटेड नेशन कह चुका है कि लाखों लोगों के लिए वो ‘ऊंट के मुंह में जीरा’ से बढ़कर कुछ नहीं है. अमेरिकी राष्ट्रपति ने बिना कोई सबूत पेश किए गाजा के अल-अहली अस्पताल पर हुए रॉकेट/मिसाइल हमले में इजराइल को क्लीन चिट दे दी. अस्पताल हमले के बाद से अरब देशों में हलचल और बढ़ गई.
अमेरिका के रक्षा सलाहकर ने गाजा में मारे गए हजारों लोगों के आंकड़े को सिरे से खारिज कर दिया. इतना ही नहीं उन्होंने फिलिस्तीन अथॉरिटी के तहत काम करने वाले स्वास्थ्य मंत्रालय की हमास से तुलना की और कहा कि “मौतों का आंकड़ा आतंकवादी दे रहे हैं और हम उसपर भरोसा नहीं कर सकते.” इस बीच जॉर्डन ने अमेरिका पर जमकर हमला बोला.
काहिरा सम्मेलन के दौरान जॉर्डन किंग अब्दुल्ला द्वितीय ने कहा कि पश्चिम के देश अरब के लिए जो बोले रहे हैं उससे साफ है कि फिलिस्तीनी लोगों का जीवन इजराइली लोगों की तुलना में कम मायने रखता है. उन्होंने कहा, “हमारा जीवन अन्य जीवन की तुलना में कम मायने रखता है.” काहिरा सम्मेलन से पहले ही उन्होंने इजराइल और फिलिस्तीन अथॉरिटी के साथ अपनी बैठकें रद्द कर दीं.
हमास के हमले से अमेरिका की मंशा को लगा झटका
राष्ट्रपति बनने के बाद जो बाइडेन ने मिडिल ईस्ट में अमेरिकी गतिविधियों को तेज किया था. मसलन खाड़ी के सबसे बड़े मुल्क सऊदी अरब और इजराइल के बीच शांति समझौते पर बात लगभग पूरी कर ली थी. इसके लिए अमेरिका ने अब्राहम समझौता तैयार किया है, जिसके तहत यूनाइटेड अरब अमीरात, बहरीन, जॉर्डन और मिस्र ने इजराइल के साथ संबंधों को सामान्य किया. सऊदी अरब भी इसी रास्ते पर इजराइल के साथ शांति कायम करना चाह रहा था. हालांकि, हमास के इजराइल पर हमले ने पूरा खेल बिगाड़ दिया.
ईरान अरब मुल्कों को कर रहा एकजुट
ईरान के साथ अमेरिका के संबंध दशकों से खराब हैं, जो इन दिनों अरब मुल्कों को इजराइल के खिलाफ एकजुट करने में जुटा है. गाजा पर राज करने वाले हमास ने पूरा इक्वेशन बैठाकर इजराइल पर हमला किया है, इसमें कोई दो राय नहीं है. मसलन, मिडिल ईस्ट के बदलते रणनीतिक समिकरण को भांप कर एक झटके में 5-7 हजार रॉकेट इजराइल पर दाग दिए. बाद में इजराइल ने इसका घातक रूप से जवाब दिया. यही वजह रही कि सालों से दुश्मन बने सऊदी-इजराइल में भी बातचीत हो गई. गाजा पट्टी से सटे मिस्र भी गाहेबगाहे इजराइल के खिलाफ नजर आ रहा है. सऊदी ने भी इजराइली एक्शन को सीरियस लिया. खाड़ी देशों ने हमास के हमलों की आलोचना तो की लेकिन साथ ही गाजा के आम लोगों के सुरक्षा को भी तरजीह दी.
अमेरिका की खामोशी, उसके लिए ही बन सकती ही मुसीबत
इजराइल-हमास के बीच पहले भी कई जंगें लड़ी गई है लेकिन अमेरिका पहली बार है जब इस स्तर पर इजराइल को मदद कर रहा है. जिस तरह से इजराइली बमबारी में तीन हजार से भी ज्यादा बच्चों की मौत हुई, लाखों की संख्या में लोग बेघर हुए, आम लोगों पर बमबारी और इसपर अमेरिका की खामोशी, उसके लिए ही नुकसानदेह साबित हो सकती है. अंतरराष्ट्रीय कानूनों के उल्लंघन और ‘युद्ध अपराध’ जैसे मुद्दों पर, जहां अमेरिका मुखर रहता है, इजराइल पर उसकी चुप्पी – उसकी ही प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचा रही है. दूसरी तरफ चीन-रूस ने भी भूमध्यसागर में अपनी गतिविधियां बढ़ाकर अमेरिका को चुनौती देने का प्लान बना लिया है.