मध्य प्रदेश के शहडोल से एक दिल दहला देने वाली घटना सामने आई है। यहां एक 45 साल के मासूम बच्चे को अंधविश्वास के चलते 51 बार गर्म सलाखों से दागा गया है। बच्चे की हालत गंभीर है और उसका हॉस्पिटल में इलाज चल रहा है।
क्या है पूरा मामला?
शहडोल में पिछले दिनों भी मासूमों को गर्म सलाखों से दागने के मामले सामने आए थे, जिसमें कई मासूम काल के गाल में समा गए। लेकिन ये सिलसिला रुकने का नाम नहीं ले रहा है। यहां एक और दुधमुंहे बच्चे को गर्म सलाखों से 51 बार जलाया गया। वह भी हॉस्पिटल में जिंदगी और मौत की लड़ाई लड़ रहा है।
शहडोल आदिवासी बाहुल्य जिला है। ऐसे में यहां आज भी झाड़फूंक और गर्म सलाखों से दागने की कुप्रथा जारी है। अंधविश्वास के चलते इलाज के नाम पर मासूम बच्चों को गर्म सलाखों से दागने के दर्जनों मामले जिले में सामने आ चुके हैं। जिनमें 10 से ज्यादा मासूमों की मौत हो चुकी है।
निमोनिया और सांस लेने में तकलीफ से पीड़ित था बच्चा
ऐसा ही एक मामला जिले के जनपद पंचायत सोहगपुर क्षेत्र हरदी गांव से सामने आया है। यहां निमोनिया व सांस लेने में तकलीफ होने पर डेढ़ माह के बीमार दुधमुंहे बच्चे को 51 बार गर्म सलाखों से पेट, पीठ, चेहरे और हाथ-पांव पर दागा गया। इस वजह से बच्चे की हालत और गंभीर हो गई। हालात ज्यादा बिगड़ने पर मेडिकल कॉलेज शहडोल में बच्चे को भर्ती कराया गया, जहां उसका इलाज चल रहा है।
बच्चे के पिता ने क्या कहा?
इस मामले में मासूम के पिता प्रदीप का कहना है कि बच्चे की तबीयत खराब होने पर घर के बड़े बुजुर्गों ने उसे गर्म सलाखों से दगवाया था। इससे बच्चे की हालत बिगड़ गई और फिर उसे उपचार के लिए मेडिकल कॉलेज लाया गया।
बता दें कि इस तरह से बच्चों को शरीर पर जलाने को ग्रामीण-आदिवासी अंचल इलाकों में डॉम कहा जाता है। यह एक अंधविश्वास है। ग्रामीण मानते हैं कि अगर बच्चे को कोई बीमारी हो तो उसे डॉम लगा देने यानी गरम सलाखों या सुइयों से जलाने से बीमारी चली जाती है और ऐसे मामले शहडोल में पहले भी कई बार आ चुके हैं। गर्म सलाखों या सुइयों से जलाने के अंधविश्वास में कई बार बच्चों की जान आफत में आ चुकी है। लेकिन यह अंधविश्वास अब भी थमने का नाम नहीं ले रहा है।