भारत का पहला सोलर मिशन आदित्य L1 अब अपने फाइनल फेज की ओर बढ़ रहा है। इसके 7 जनवरी 2024 को L1 पॉइंट तक पहुंचने की उम्मीद है। इसरो चीफ एस सोमनाथ ने शुक्रवार 24 नवंबर को यह जानकारी दी।
पहले साउंडिंग रॉकेट लॉन्चिंग के 60 साल पूरे हुए हैं। इस मौके पर तिरुवनंतपुरम स्थित विक्रम साराभाई स्पेस सेंटर (VSSC) में आयोजित एक कार्यक्रम में इसरो चीफ ने कहा, ‘आदित्य रास्ते में है। इसे सफलता के साथ L1 पॉइंट पर पहुंचाने की हमारी कोशिशें जारी है।’
साउंडिंग रॉकेट, एक या दो चरण वाले रॉकेट होते हैं, जिसमें सॉलिड प्रोपेलेंट (ठोस प्रणोदक) का इस्तेमाल होता था। इन्हें वायुमंडल की ऊपरी सतह में अध्ययन के लिए भेजा गया था। पहला साउंडिंग रॉकेट 21 नवंबर 1963 को थुंबा (तिरुवनंतपुरम) से छोड़ा गया था।
2 सितंबर को लॉन्च किया गया था आदित्य L1
आदित्य को 2 सितंबर को सुबह 11.50 बजे PSLV-C57 के XL वर्जन रॉकेट के जरिए श्रीहरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर से लॉन्च किया गया था। लॉन्चिंग के 63 मिनट 19 सेकेंड बाद स्पेसक्राफ्ट को पृथ्वी की 235 Km x 19,500 Km की कक्षा में स्थापित कर दिया गया था।
लॉन्चिंग के बाद से आदित्य की दो बार ऑर्बिट बढ़ाई जा चुकी है। इसके लिए थ्रस्टर फायर किए गए थे। करीब 4 महीने के बाद अब यह 15 लाख Km दूर लैगरेंज पॉइंट-1 तक पहुंचने की ओर बढ़ रहा है। इस पॉइंट पर ग्रहण का प्रभाव नहीं पड़ता, जिसके चलते यहां से सूर्य पर आसानी से रिसर्च की जा सकती है।
इसरो ने 7 सितंबर 2023 को आदित्य-L1 पर लगे कैमरे से ली गई सेल्फी के साथ पृथ्वी और चंद्रमा की तस्वीरें शेयर की थीं। आदित्य ने 4 सितंबर को ये फोटो खींची थी। फोटो में आदित्य पर लगे 2 इंस्ट्रूमेंट VELC और SUIT भी दिख रहे हैं।
5 पॉइंट में जानें आदित्य L1 का सफर
- PSLV रॉकेट ने आदित्य को 235 x 19,500 Km की पृथ्वी की कक्षा में छोड़ा।
- 16 दिनों तक पृथ्वी की कक्षा में रहेगा। 5 बार थ्रस्टर फायर कर ऑर्बिट बढ़ाएगा।
- फिर से आदित्य के थ्रस्टर फायर होंगे और ये L1 पॉइंट की ओर निकल जाएगा।
- 110 दिन के सफर के बाद आदित्य ऑब्जर्वेटरी इस पॉइंट के पास पहुंच जाएगा
- थ्रस्टर फायरिंग के जरिए आदित्य को L1 पॉइंट के ऑर्बिट में डाल दिया जाएगा।
लैगरेंज पॉइंट-1 (L1) क्या है?
लैगरेंज पॉइंट का नाम इतालवी-फ्रेंच मैथमैटीशियन जोसेफी-लुई लैगरेंज के नाम पर रखा गया है। इसे बोलचाल में L1 नाम से जाना जाता है। ऐसे पांच पॉइंट धरती और सूर्य के बीच हैं, जहां सूर्य और पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण बल बैलेंस हो जाता है और सेंट्रिफ्यूगल फोर्स बन जाता है।
ऐसे में इस जगह पर अगर किसी ऑब्जेक्ट को रखा जाता है तो वह आसानी उस पॉइंट के चारों तरफ चक्कर लगाना शुरू कर देता है। पहला लैगरेंज पॉइंट धरती और सूर्य के बीच 15 लाख किलोमीटर की दूरी पर है।
L1 पॉइंट पर ग्रहण बेअसर, इसलिए यहां भेजा जा रहा
इसरो का कहना है कि L1 पॉइंट के आसपास हेलो ऑर्बिट में रखा गया सैटेलाइट सूर्य को बिना किसी ग्रहण के लगातार देख सकता है। इससे रियल टाइम सोलर एक्टिविटीज और अंतरिक्ष के मौसम पर भी नजर रखी जा सकेगी।