अयोध्या में राम मंदिर लगभग बन कर तैयार होने को है, हम याद भी करते हैं कि किन लोगों ने इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। VHP के अशोक सिंघल से लेकर सुप्रीम कोर्ट में मंदिर के वकील K पराशरण तक, हिन्दू नेता विनय कटियार से लेकर रथ यात्रा निकालने वाले LK अडवाणी तक और दशकों तक इस आंदोलन को धार देने वाले महंत अवैद्यनाथ से लेकर अपने ओजस्वी भाषणों से घर-घर पहुँचने वाली साध्वी ऋतम्भरा तक, इन सभी के योगदानों पर हम बात करते रहते हैं।
लेकिन, इस दौरान हमें ऐसे लोगों को भी याद करना चाहिए जिन्होंने इसकी राह में अड़चन डालने की भरसक कोशिश की। इनमें से एक नाम कपिल सिब्बल का भी है, जो डॉ मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्रित्व काल में 10 वर्षों तक केंद्रीय मंत्री रहे। उन्होंने विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, पृथ्वी विज्ञान, मानव संसाधन, संचार एवं सूचना प्रसारण, कानून एवं न्याय जैसे बड़े मंत्रालय सँभाले। कॉन्ग्रेस के दिग्गज नेता होने के साथ-साथ ही वो देश के सबसे महँगे वकील के रूप में भी जाने गए जो भारत के एडिशनल सॉलिसिटर जनरल भी रहे।
हालाँकि, कपिल सिब्बल अब समाजवादी पार्टी में हैं और अखिलेश यादव की कृपा से राज्यसभा भी पहुँच चुके हैं। कपिल सिब्बल को अपनी हिन्दू विरोधी करतूतों के लिए भी जाना जाता है। इसे समझने के लिए सीधे चलते हैं 2017 में। बात उस साल दिसंबर की है। कपिल सिब्बल ‘सुन्नी वक्फ बोर्ड’ के वकील हुआ करते थे, लेकिन उन्होंने कुछ ऐसा कर दिया जिससे बोर्ड भी अनजान था। कपिल सिब्बल ने उस दौरान सुप्रीम कोर्ट से दरख्वास्त की कि इस पर 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद सुनवाई की जाए।
अयोध्या में राम मंदिर लगभग बन कर तैयार होने को है, हम याद भी करते हैं कि किन लोगों ने इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। VHP के अशोक सिंघल से लेकर सुप्रीम कोर्ट में मंदिर के वकील K पराशरण तक, हिन्दू नेता विनय कटियार से लेकर रथ यात्रा निकालने वाले LK अडवाणी तक और दशकों तक इस आंदोलन को धार देने वाले महंत अवैद्यनाथ से लेकर अपने ओजस्वी भाषणों से घर-घर पहुँचने वाली साध्वी ऋतम्भरा तक, इन सभी के योगदानों पर हम बात करते रहते हैं।
लेकिन, इस दौरान हमें ऐसे लोगों को भी याद करना चाहिए जिन्होंने इसकी राह में अड़चन डालने की भरसक कोशिश की। इनमें से एक नाम कपिल सिब्बल का भी है, जो डॉ मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्रित्व काल में 10 वर्षों तक केंद्रीय मंत्री रहे। उन्होंने विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, पृथ्वी विज्ञान, मानव संसाधन, संचार एवं सूचना प्रसारण, कानून एवं न्याय जैसे बड़े मंत्रालय सँभाले। कॉन्ग्रेस के दिग्गज नेता होने के साथ-साथ ही वो देश के सबसे महँगे वकील के रूप में भी जाने गए जो भारत के एडिशनल सॉलिसिटर जनरल भी रहे।
हालाँकि, कपिल सिब्बल अब समाजवादी पार्टी में हैं और अखिलेश यादव की कृपा से राज्यसभा भी पहुँच चुके हैं। कपिल सिब्बल को अपनी हिन्दू विरोधी करतूतों के लिए भी जाना जाता है। इसे समझने के लिए सीधे चलते हैं 2017 में। बात उस साल दिसंबर की है। कपिल सिब्बल ‘सुन्नी वक्फ बोर्ड’ के वकील हुआ करते थे, लेकिन उन्होंने कुछ ऐसा कर दिया जिससे बोर्ड भी अनजान था। कपिल सिब्बल ने उस दौरान सुप्रीम कोर्ट से दरख्वास्त की कि इस पर 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद सुनवाई की जाए।
सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील कपिल सिब्बल, राम मंदिर की सुनवाई को अटकाने की कोशिश
कपिल सिब्बल आखिर ऐसा क्यों चाहते थे? 2019 लोकसभा चुनाव के बाद सुनवाई होने का सीधा अर्थ था इसमें डेढ़ वर्ष की देरी होना। अधिवक्ता ने दलील दी थी कि इसके राजनीतिक और चुनावी दुष्परिणाम हो सकते हैं, इसीलिए सुनवाई टाली जाए। हालाँकि, सुप्रीम कोर्ट ने उनकी नहीं सुनी और 8 फरवरी, 2018 को अगली तारीख़ दी गई। कपिल सिब्बल के इस रुख के बाद भाजपा के तत्कालीन अध्यक्ष अमित शाह ने सीधा पूछा था कि राहुल गाँधी राम मंदिर मुद्दे पर अपना स्टैंड स्पष्ट करें।
क्योंकि ये वो दौर था, जब राहुल गाँधी लगातार मंदिर-मंदिर घूम रहे थे। उन्हें लगता था कि भाजपा हिंदुत्व के कारण जीत रही है और वो भी छद्म हिंदुत्व के सहारे मतदाताओं को मूर्ख बना सकते हैं। एक तरफ राहुल गाँधी मंदिरों के धुआँधार दौरे कर रहे थे, वहीं दूसरी तरफ उनकी पार्टी के नेता राम मंदिर की सुनवाई अटकाने में लगे थे। सारा देश चाहता था कि सुनवाई जल्द से जल्द खत्म हो। उस समय गुजरात में विधानसभा चुनाव भी होने वाले थे, ये भी याद रखने वाली बात है।
बता दें कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 2010 में 2.77 एकड़ की जमीन को 3 हिस्सों में बाँटने का फैसला दिया था – सुन्नी वक्फ बोर्ड, रामलला विराजमान और निर्मोही अखाड़ा। सुब्रमण्यन स्वामी के निवेदन पर 2017 में तत्कालीन मुख्य न्यायधीश JS खेहर ने इस फैसले को चुनौती देने संबंधी 13 याचिकाओं पर सुनवाई के लिए पीठ का गठन किया। 11 अगस्त को बेंच ने 6 दिसंबर को सुनवाई की तारीख़ मुक़र्रर की। कपिल सिब्बल इससे आग-बबूला हो गए थे।
उन्होंने कहा था, “आखिर इस कोर्ट को जाल में क्यों फँसना चाहिए? पहले इसे क्यों नहीं सुना गया, अब क्यों? ये एक सामान्य मामला नहीं है। ये शायद भारत के इतिहास का सबसे महत्वपूर्ण मामला है जो देश का भविष्य निर्धारित करेगा। इसके गंभीर दुष्परिणाम होंगे। इस परिस्थिति में इस अदालत को इस मामले को नहीं सुनना चाहिए जिसका समाज पर पर असर पड़ेगा।” कपिल सिब्बल ने ये दलीलें तत्कालीन CJI दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली वाली 3 सदस्यीय पीठ के साक्ष दी थी।
उन्होंने इस दौरान तकनीकी चीजों में भी सुप्रीम कोर्ट को उलझाने की भरसक कोशिश की और दावा किया कि इसमें औपचारिकताएँ अपूर्ण हैं और जिन दस्तावेजों के आधार पर हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया था उन्हें भी तक दायर नहीं किया गया है। हालाँकि, सुप्रीम कोर्ट ने उनकी बात नहीं मानी और सभी पक्षों के वकीलों को मिल-बैठ कर शांति से काम करने को कहा, ताकि सुनवाई अटके नहीं। जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा था, “दोनों पक्षों के पास अदालत के लिए संदेश है। लेकिन, हम जानते हैं कि क्या करना है। इस कोर्ट को ये कह कर सन्देश मत दीजिए कि हम क्या सन्देश भेजें। हमलोग सुनवाई शुरू करेंगे।”
बड़ी बात ये है कि खुद सुन्नी वक्फ बोर्ड ने अपने ही वकील के कृत्य को नकार दिया था। उसने कहा था कि बोर्ड द्वारा उन्हें ऐसा कहने के लिए किसी प्रकार का निर्देश नहीं दिया गया था। ज़फर फारूकी तब बोर्ड के अध्यक्ष हुआ करते थे। उन्होंने स्पष्ट कहा था कि बोर्ड मानता है कि मामले की सुनवाई होनी चाहिए और इसका तुरंत निपटारा होना चाहिए। उन्होंने कहा था कि उन्हें नहीं पता है कि कपिल सिब्बल ने किसकी तरफ से ये बात सुप्रीम कोर्ट में कही थी।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी गुजरात विधानसभा चुनाव प्रचार में इस मुद्दे को पुरजोर तरीके से उठाया था और पूछा था कि क्या वक्फ बोर्ड चुनाव लड़ता है? क्या वक्फ बोर्ड सुनवाई को टालना चाहता है? उन्होंने कहा था कि कॉन्ग्रेस पार्टी चुनाव लड़ती है और वो राजनीतिक फायदों के लिए इस मामले को अनसुलझा रखना चाहती है। यहाँ तक कि खुद कॉन्ग्रेस पार्टी ने फजीहत होने के बाद खुद को इस बयान से किनारे कर लिया था। कॉन्ग्रेस नेता आनंद शर्मा ने कहा था कि पार्टी सुप्रीम कोर्ट के फैसले का समर्थन करेगी।
इस मामले में खुद संशय भी पैदा हुआ था कि कपिल सिब्बल ने किस तरफ से पेश होकर ये दलीलें दी? सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर बताया गया कि वो इन मामलों में सुन्नी वक्फ बोर्ड की तरफ से पेश हुए थे। बाबरी मस्जिद मामले में कपिल सिबल सुन्नी वक्फ बोर्ड के डेजिगनेटेड काउंसल थे। उस दिन K पराशरण, राजीव धवन और दुष्यंत दवे जैसे वकीलों का तो इन मामलों में नाम था, लेकिन सुन्नी वक्फ बोर्ड की तरफ से किसी का नहीं। तो क्या बोर्ड की तरफ से उस दिन कोई पेश नहीं हुआ? उसके वकील कपिल सिब्बल थे तो वो किस तरफ से पेश हुए थे?
मंदिर-मंदिर दौड़ रहे थे राहुल गाँधी
कपिल सिब्बल जब तक कॉन्ग्रेस में रहे तब तक उन्हें गाँधी परिवार का भी विश्वस्त माना जाता रहा। ऐसे में वो उस समय किसकी भाषा बोल रहे थे? अगर ये सुन्नी वक्फ बोर्ड की भाषा नहीं थी, कॉन्ग्रेस इससे दूरी बना रही थी तो क्या वो सीधे सुप्रीम फैमिली का प्रतिनिधित्व कर रहे थे? राहुल गाँधी के मंदिर दौरों से नाराज़ मुस्लिमों को खुश करना चाहते थे वो? गाँधी परिवार के इशारे पर हो सकता है ये सब किया जा रहा हो। कपिल सिब्बल चालाक व्यक्ति रहे हैं, वो यूँ ही कोई बात बोल दें ये नहीं माना जा सकता।
गुजरात विधानसभा चुनाव 2017 के दौरान राहुल गाँधी ने एक-दो नहीं बल्कि 27 मंदिरों का दौरा किया था, जिसे उनका ‘टेम्पल रन’ भी कहा गया। 2 नवंबर, 2017 को सिंधाइ स्थित उनाई माता मंदिर से उन्होंने दौरा शुरू किया था। 12 दिसंबर को अहमदाबाद में जगन्नाथ मंदिर दौरे के साथ उन्होंने ये ताबड़तोड़ दौरा खत्म किया। उस चुनाव में कॉन्ग्रेस 77 सीटें मिली थीं और 99 भाजपा के हिस्से गई थी। एक तरफ पार्टी अध्यक्ष 27 मंदिरों के दौरे पर था, दूसरी तरफ उसी पार्टी का दिग्गज नेता सुप्रीम कोर्ट में मंदिर निर्माण रोक रहा था। अम्बाजी, अक्षरधाम, वालीनाथ – इन सभी मंदिरों में राहुल पहुँचे थे।
कपिल सिब्बल वही अधिवक्ता हैं, जिन्होंने तीन तलाक को प्रतिबंधित किए जाने के खिलाफ भी सुन्नी वक्त बोर्ड की पैरवी की थी। यानी, वो इसके समर्थन में थे कि कोई मुस्लिम पुरुष तीन बार तलाक शब्द बोल कर अपनी बीवी को तलाक दे सकता है। कपिल सिब्बल ने राम मंदिर की सुनवाई रोकने की कोशिश यहीं नहीं रोकी थी, बल्कि तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के खिलाफ महाभियोग का प्रस्ताव भी लाया गया। 1993 में जिस कपिल सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट के जज V रामास्वामी के महाभियोग के खिलाफ संसद में जबरदस्त पैरवी की थी, जबकि 2018 में मामला इसके उलट था।
CJI पर महाभियोग की कोशिश में थे कपिल सिबल
पिछली बात 1993 की थी, जबकि उसके बाद वाली बात अप्रैल 2018 की है। कपिल सिब्बल ने सांसदों को जनता के प्रति जवाबदेह बताते हुए कहा था कि जज भी जनप्रतिनिधियों के प्रति उतने ही जवाबदेह हैं। ये ड्राफ्ट कपिल सिब्बल ने ही तैयार किया था। अश्विनी कुमार, P चिदंबरम और सलमान खुर्शीद जैसे कॉन्ग्रेस नेता जो बड़े वकील भी थे, वो इससे किनारे रहे। कॉन्ग्रेस चुपचाप एक महीने से समर्थन जुटाने में लगी थी। कपिल सिब्बल ही इस मामले में आगे बढ़ कर नेतृत्व कर रहे थे।
बताया गया था कि महाभियोग के इस केस को लेकर कपिल सिब्बल कुछ ज़्यादा ही सक्रिय थे और राहुल गाँधी से लगातार संपर्क में थे। जब पार्टी इस पर दो फाड़ थी, कपिल सिब्बल ये सब क्यों कर रहे थे? राज्यसभा के तत्कालीन अध्यक्ष वेंकैया नायडू ने इस प्रस्ताव को नकार दिया था, जिसके खिलाफ कपिल सिब्बल कोर्ट तक पहुँच गए थे। इन सबसे राम मंदिर की सुनवाई पर भी असर पड़ा और संवैधानिक पीठ के गठन के बाद 2019 में ही इसकी सुनवाई सुचारु रूप से चल पाई और 40 दिन की सुनवाई में इसे निपटाया गया।