खाड़ी देश कतर में इजरायल के लिए जासूसी के आरोप में फांसी की सजा पाए नौसेना के 8 पूर्व अधिकारियों को लेकर बड़ी ही सुखद खबर आई। भारत सरकार की कूटनीति का असर ये हुआ कि इन आठों अधिकारियों की मौत की सजा पर रोक लगा दी गई है। कतर सरकार के इस फैसले के बाद अब उम्मीद जगी है कि जल्द ही इन अधिकारियों की सुरक्षित घर वापसी होगी।
कतर में भारतीयों की फांसी पर रोक लगने पर विदेशी मामलों के विशेषज्ञ सुशांत सरीन इसकी तारीफ करते हुए इसे भारत सरकार की कूटनीतिक की जीत करार दिया है। सरीन ने कहा कि कतर को ये बात अच्छी तरह से पता थी कि अगर वो भारत के पूर्व अधिकारियों को सजा देता तो ये भारत के साथ उसके समझौते के खिलाफ होता। इसके साथ ही भारत सरकार ने भी कतर की न्यायिक व्यवस्था का सम्मान करते हुए कूटनीति का इस्तेमाल किया है।
पीएम मोदी की एक मुलाकात ने कर दिया कमाल
कतर की अदालत द्वारा 8 भारतीयों को फांसी की सजा सुनाए जाने के बाद से ही भारत सरकार ने अपने स्तर पर उन्हें बचाने की कोशिशें शुरू कर दी थी। इस बीच पीएम मोदी भी पर्दे के पीछे से इस मामले पर नजर बनाए हुए थे।
पूर्व सैनिकों को सजा मिलने के बाद 1 दिसंबर को पर्यावरण सुरक्षा सम्मेलन (दुबई) से इतर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कतर के अमीर शेख तमीम से मुलाकात की थी। माना जाता है कि इस संक्षिप्त मुलाकात में भारतीय पीएम ने इन अधिकारियों के मामले को उठाया था। समझा जाता है कि इस मुलाकात का काफी असर रहा, जिसके बाद कतर का रुख भी नरम हुआ।
कूटनीति की चर्चा
जाते साल की यह शानदार खबर है. भारत सरकार ने जिस तरीके से इस मामले को उठाया है, वह काबिल-ए-तारीफ है. कोई शोर-शराबा नहीं, केवल न्यायोचित और कूटनीतिक तरीके अपनाए गए और परिणाम सामने है. करीब सवा साल से भी ज्यादा समय से सभी आठों पूर्व नौसैनिक कतर की हिरासत में हैं. तब से लेकर आज तक भारत सरकार ने उन्हें कॉन्सुलर एक्सेस दिया.
कतर में भारत के राजदूत खुद मिलते रहे. परिवारों के सदस्यों को भी मुलाकात से लेकर फोन पर बात करने की सुविधा उपलब्ध कारवाई. यह सब कूटनीति का हिस्सा था. जब निचली अदालत ने इन बंदियों को फांसी की सजा सुना दी तो भारत सरकार की कार्यवाही और कार्रवाई, दोनों पर लोग सवाल उठाने लगे. पर, कूटनीति शायद ऐसे ही होती है.
भारत सरकार ने इस केस से जुड़ी हर छोटी-बड़ी सूचना से देश को समय-समय पर अवगत कराया लेकिन स्टेप बाय स्टेप जानकारी नहीं दी. यह समय की माँग थी. पर, प्रयासों में कोई कमी नहीं रखी, यह भी स्पष्ट दिखाई दे रहा था.
पीएम मोदी की कतर के राष्ट्राध्यक्ष से मुलाकात
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निजी प्रयासों को भी इस मामले में रेखांकित किया जाना चाहिए. क्योंकि उन्होंने इसी महीने दुबई में हुए पर्यावरण सम्मेलन में अलग से कतर के राष्ट्राध्यक्ष से न केवल मुलाकात की थी बल्कि उसे सार्वजनिक मंच पर साझा भी किया था. हालांकि, उन्होंने फांसी की सजा पाए बंदियों की सार्वजनिक चर्चा नहीं की थी लेकिन यह जरूर कहा था कि हमने कतर के राष्ट्र प्रमुख शेख तमीम बिन हमाद अल थानी से उनके देश में रह रहे भारतीयों का हालचाल जाना.
कतर में रहने वालों में एक चौथाई नागरिक भारतीय हैं. पर, सबसे ज्यादा चुनौती इन आठ बंदियों को लेकर थी, जिसे कतर की निचली अदालत ने फांसी की सजा सुनाई थी. संकेत उसी समय मिलने लगे थे कि प्रधानमंत्री ने थानी से इस संदर्भ में जरूर बात की होगी, अब जब सकारात्मक परिणाम हमारे सामने है तो ऐसे में भारत सरकार, पीएम मोदी और विदेश मंत्री एस जयशंकर के प्रयासों को सराहा जाना चाहिए.
भारत और कतर के बीच क्या है समझौता
गौरतलब है कि भारत और कतर के बीच साल 2014 में एक समझौता हुआ था, जिसके तहत दोनों देशों के बीच इस बात के लिए सहमति बनी थी कि दोनों देश अपनी-अपनी जेलों में बंद कैदियों को उनके देश में बाकी की सजा पूरी करने के लिए भेजेंगे। ऐसे में इन नौसैनिकों की जल्द वापसी की उम्मीद की जा रही है।