गुजरात के बिलकिस बानो केस में दोषियों की जल्द रिहाई के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुना दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने दोषियों की रिहाई का फैसला रद्द कर दिया है. कोर्ट ने याचिका को सुनवाई योग्य माना है. SC ने कहा, महिला सम्मान की हकदार है. राज्य इस तरह का निर्णय लेने के लिए ‘सक्षम नहीं’ है और इसे ‘धोखाधड़ी वाला कृत्य’ करार दिया.
जस्टिस बीवी नागरथाना और उज्जल भुइयां की बेंच ने फैसला सुनाया और कहा, 11 दोषियों की जल्द रिहाई को चुनौती देने वाली बिलकिस बानो की याचिका वैध है. सुप्रीम कोर्ट का कहना था कि दोनों राज्यों (महाराष्ट्र-गुजरात) के लोअर कोर्ट और हाई कोर्ट फैसले ले चुके हैं. ऐसे में कोई आवश्यकता नहीं लगती है कि इसमें किसी तरह का दखल दिया जाए.
अगस्त 2022 में गुजरात सरकार ने बिलकिस बानो गैंगरेप केस में उम्रकैद की सजा पाए सभी 11 दोषियों को रिहा कर दिया था. दोषियों की रिहाई को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी. अब सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद बिलकिस के दोषियों को जेल जाना होगा.
Bilkis Bano case: Supreme Court quashes remission order of Gujarat government
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— ANI Digital (@ani_digital) January 8, 2024
‘याचिका में महत्वपूर्ण फैक्ट छिपाकर निर्देश देने की मांग की थी’
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, इस कोर्ट के मई 2022 के आदेश पर हमारे निष्कर्ष हैं. प्रतिवादी संख्या 3 ने यह नहीं बताया कि गुजरात हाई कोर्ट ने सीआरपीसी की धारा 437 के तहत उसकी याचिका खारिज कर दी थी. प्रतिवादी संख्या 3 ने यह भी नहीं बताया था कि समयपूर्व रिहाई का आवेदन महाराष्ट्र में दायर किया गया था, ना कि गुजरात में. सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा, महत्वपूर्ण फैक्ट को छिपाकर और भ्रामक तथ्य बनाकर दोषी की ओर से गुजरात राज्य को माफी पर विचार करने का निर्देश देने की मांग की गई थी.
‘सुप्रीम कोर्ट ने 12 अक्टूबर को फैसला सुरक्षित रख लिया था’
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस उज्जल भुयन की बेंच ने फैसला सुनाया है. बेंच ने पिछले साल 12 अक्टूबर को मामले में फैसला सुरक्षित रख लिया था. मामले पर अदालत में लगातार 11 दिन तक सुनवाई हुई थी. सुनवाई के दौरान केंद्र और गुजरात सरकार ने दोषियों की सजा माफ करने से जुड़े ओरिजिनल रिकॉर्ड पेश किए थे. गुजरात सरकार ने दोषियों की सजा माफ करने के फैसले को सही ठहराया था. समय से पहले दोषियों की रिहाई पर सुप्रीम कोर्ट ने सवाल भी उठाए थे. हालांकि, कोर्ट ने कहा था कि वो सजा माफी के खिलाफ नहीं है, बल्कि ये स्पष्ट किया जाना चाहिए कि दोषी कैसे माफी के योग्य बने.
इससे पहले 30 सितंबर, 2022 को सुप्रीम कोर्ट ने सवाल किया था कि क्या दोषियों के पास माफी मांगने का मौलिक अधिकार है. यह अधिकार चुनिंदा रूप से नहीं दिया जाना चाहिए.
सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार का फैसला पलटा
सोमवार को याचिका की सुनवाई करते हुए कोर्ट ने सभी दोषियों की सजा में मिली छूट को रद्द कर दिया। गुजरात सरकार ने पिछले साल मामले में 11 दोषियों को रिहा किया था। अब कोर्ट के फैसले के बाद सभी 11 दोषियों को वापस जेल जाना होगा।
न्यायमूर्ति बी. वी. नागरत्ना और न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयां की पीठ ने 11 दिन की सुनवाई के बाद दोषियों की सजा में छूट को चुनौती देने संबंधी याचिकाओं पर पिछले साल 12 अक्टूबर को अपना आदेश सुरक्षित रख लिया था।
सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखते हुए केंद्र और गुजरात सरकार को 16 अक्टूबर तक 11 दोषियों की सजा में छूट संबंधी मूल रिकॉर्ड जमा करने का निर्देश दिया था। अदालत ने पिछले साल सितंबर में मामले की सुनवाई करते हुए पूछा था कि क्या दोषियों को माफी मांगने का मौलिक अधिकार है।
Supreme Court strikes down the Gujarat government’s order granting remission to 11 convicts who had gang-raped Bilkis Bano and murdered her family members during the 2002 Godhra riots.
Supreme Court says the exercise of power by the State of Gujarat is an instance of usurpation… pic.twitter.com/yMJlYr4IXD
— ANI (@ANI) January 8, 2024
बानो केस में गुजरात सरकार को लेकर SC की टिप्पणी
शीर्ष अदालत ने पहले की सुनवाई के दौरान गुजरात सरकार से कहा था कि राज्य सरकारों को दोषियों को सजा में छूट देने में ‘‘चयनात्मक रवैया’’ नहीं अपनाना चाहिए और प्रत्येक कैदी को सुधार तथा समाज के साथ फिर से जुड़ने का अवसर दिया जाना चाहिए।
इस मामले में बिलकिस की याचिका के साथ ही मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) की नेता सुभाषिनी अली, स्वतंत्र पत्रकार रेवती लाल और लखनऊ विश्वविद्यालय की पूर्व कुलपति रूपरेखा वर्मा समेत अन्य ने जनहित याचिकाएं दायर कर सजा में छूट को चुनौती दी है। तृणमूल कांग्रेस की नेता महुआ मोइत्रा ने भी दोषियों की सजा में छूट और समय से पहले रिहाई के खिलाफ जनहित याचिका दायर की है।
क्या है पूरा मामला?
बिलकिस बानो उस वक्त 21 वर्ष की थीं और पांच महीने की गर्भवती थीं, जब साम्प्रदायिक दंगों के दौरान उसके साथ सामूहिक दुष्कर्म हुआ था। उसकी तीन वर्षीय बेटी परिवार के उन सात सदस्यों में शामिल थी, जिनकी दंगों के दौरान हत्या कर दी गई थी।
पिछले साल 15 अगस्त को सभी 11 दोषियों को सजा में छूट दिए जाने और रिहा किए जाने के तुरंत बाद सामाजिक कार्यकर्ताओं और राजनेताओं ने शीर्ष अदालत में कई याचिकाएं दायर की थीं। बिलकिस ने नवंबर में शीर्ष अदालत का रुख किया था।
अदालत में दोषियों ने कहा था कि वे पहले ही बहुत कुछ झेल चुके हैं और 14 साल से अधिक समय जेल में बिता चुके हैं। दोषियों ने कहा था कि उन्हें अपने परिवार के सदस्यों के साथ फिर से मिलने की अनुमति दी जानी चाहिए। यह अनुरोध करते हुए कि उनकी स्वतंत्रता ‘छीन’ नहीं जानी चाहिए, उन्होंने कहा था कि अदालत को सुधारात्मक दृष्टिकोण अपनाना चाहिए और उन्हें खुद को सुधारने का मौका दिया जाना चाहिए।