कॉर्बेट सिटी रामनगर से 22 किलोमीटर दूर पॉल गढ़ वाइल्डलाइफ सेंचुरी के पास सीतावनी क्षेत्र ऐसा आध्यात्मिक और पौराणिक क्षेत्र है जहां माना जाता है यहां महर्षि वाल्मीकि का आश्रम है और ये ही वो स्थान है जहां राजपाट छोड़ने के बाद सीता मां ने आश्रय लिया था और यहीं लव कुश का जन्म हुआ था। इसी लिए इस वन को सीतावनी भी कहते है।
सीतावनी न सिर्फ आध्यत्मिक रूप से अपनी पहचान बनाए हुए है बल्कि अब तीर्थाटन और पर्यटन के क्षेत्र में भी जाना जाता है। यहां स्थापित वाल्मीकि आश्रम सीतावनी मन्दिर को त्रेता युग का बताया जाता है। हिन्दू धर्म की आस्था का प्रतीक सीतावनी मन्दिर अब बाल्मीकि समाज के लोगों के प्रमुख तीर्थस्थलों में से एक है।
रामनगर वन प्रभाग के अंर्तगत सीता जी का मंदिर घने जंगल के बीच स्थापित है । जहाँ बाघ, हाथी, गुलदार के अलावा कई प्रकार के वन्यजीव दिखाई देते हैं। जंगल में दिन में भी निकलना किसी खतरे से कम नहीं है। माता सीता से जुड़ी धार्मिक कहानियों के कारण ही इस जंगल को सीतावन भी कहा गया है।
कुमायूं के इतिहासों में है उल्लेख
हिमालयन ग्जेटियर और कुमायूं के इतिहास में सीतावनी को लेकर कई प्रकार की किवदंतियां हैं। बद्रीदत्त पाडे की पुस्तक कुमाऊँ के इतिहास में बताया गया है कि महर्षि विश्वामित्र के कहने पर एक बार श्री राम, लक्ष्मण व सीता जी यहाँ आए थे। वन की सुंदरता देख सीता जी इतनी मोहित हो गयी थीं कि उन्होंने श्री राम से कहा कि बैशाख के महीने में हमे यहाँ रहना चाहिए और कोशिकी में स्नान करना चाहिए। वह बैशाख में यहीं रहे जहां पानी के दो झरने निकल आए। दूसरी किवदंती के अनुसार यहाँ महर्षि बाल्मीकि का आश्रम हुआ करता था। राजपाट छोड़ने के बाद वनवास के दौरान सीता जी यही रहीं और यहीं लव कुश का जन्म हुआ । जीवन अंत तक यहीं रही।
स्कंद पुराण में भी जिक्र
स्कंद पुराण में कौशिकी नदी जो आज कोसी नदी है के बाईं ओर शिवगिरि पर्वत है। जिसे सिद्ध आत्माओं और गन्धर्वों का विचरण स्थल कहा गया है।रामायण, स्कंद पुराण और महाभारत में भी सीतावनी का उल्लेख मिलता है। मन्दिर में तीन धाराएं मन्दिर के बारे में यहां के महंत शिवगिरि की मानें तो मन्दिर में जल की तीन धारएं हैं। जिनका जल गर्मियों में ठंडा और सर्दियों में गुनगुना रहता है।
बाल्मीकि को पूजने आते है श्रद्धालु
भगवान महर्षि बाल्मीकि का आश्रम होने के कारण यहां सनातनी बाल्मीकि समाज का तीर्थ स्थल भी है। वर्ष में एक बार, सनातन समाज द्वारा यहाँ विशाल मेले का आयोजन और भंडारा भी किया जाता है।
पुरातत्व विभाग के द्वारा की जाती है मंदिर की देखरेख
वनक्षेत्र सीतावनी मन्दिर क्षेत्र सदियों पुराना और पौराणिक होने की वजह से भारत सरकार के पुरातत्व विभाग के आधीन है। हालांकि यह क्षेत्र वन विभाग के अंतर्गत आने के कारण यहाँ प्रवेश के लिए वन विभाग द्वारा अनुमति दी जाती है।
बाघों को देखने जाने वाले पर्यटक भी जाते है मंदिर
कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में जिन पर्यटकों को भीतर जाने का परमिट नही मिलता वो अब सीतावनी क्षेत्र में टाइगर और अन्य वन्यजीव देखने जाते है और सीतावनी मंदिर के दर्शन करने भी आते है। धार्मिक महत्व के बाद पर्यटन स्थल के रूप में भी विकसित हो चुका है। हर साल हजारों पर्यटक इस क्षेत्र में आने लगे है। जिससे वन विभाग को अच्छा खासा राजस्व भी प्राप्त होने लगा है।
“तीर्थाटन पर्यटन” वन विभाग बना रहा है कार्ययोजना
श्री राम मंदिर निर्माण की पावन बेला में जनमानस में श्री राम को लेकर उमड़ रही श्रद्धा के बीच स्थानीय लोगो ने उत्तराखंड सरकार से सीतावनी को धार्मिक स्थल के रूप में विकसित करने और पौलगढ़ वाइल्डलाइफ सेंचुरी का नाम सीतावनी किए जाने की मांग की है। उत्तराखंड सरकार इस वन को तीर्थाटन की दृष्टि से स्थल विकास के काम करने जा रही, मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के निर्देश पर वन विभाग इस दिशा में कार्ययोजना बना रहा है