लोक सभा अध्यक्ष ओम बिरला ने आज छत्तीसगढ़ विधान सभा परिसर में विधान सभा सदस्यों के लिए दो दिवसीय प्रबोधन कार्यक्रम का उद्घाटन किया. इस अवसर पर लोकसभा अध्यक्ष ने इस बात पर जोर दिया कि राज्य के तीनों अंगों को संवैधानिक सीमाओं के भीतर रहकर कार्य करना चाहिए. चूंकि राज्य के तीनों अंगों को उनकी शक्तियां संविधान से प्राप्त होती हैं, इसलिए इन अंगों की शक्तियों और कार्यों में दोहराव नहीं होना चाहिए.
विधानमंडलों में गरिमा और शालीनता बनाए रखने के महत्व पर जोर देते हुए, बिरला ने विधायकों से लोगों की आशाओं और आकांक्षाओं को व्यक्त करने के लिए सदन के मंच का उपयोग करने का आग्रह किया.
बिरला ने कहा कि सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच सहमति और असहमति संसदीय लोकतंत्र की आत्मा है, लेकिन असहमति संसदीय गरिमा और मर्यादा के स्थापित मापदंडों के भीतर व्यक्त की जानी चाहिए. ओम बिरला ने यह भी कहा कि जब राष्ट्रीय हित की बात आती है, तो सभी सदस्यों को लक्ष्य की प्राप्ति के लिए दलगत राजनीति से ऊपर उठकर मिलकर काम करना चाहिए.
ओम बिरला ने कहा कि सदन के दोनों पक्षों के सदस्यों को आसन के निर्णयों का सम्मान करना चाहिए. उन्होंने कहा कि पीठासीन अधिकारी के सम्मान से लोकतांत्रिक संस्थाओं में लोगों का विश्वास मजबूत होगा. बिरला ने सदस्यों को व्यवधान की रणनीति को नकारने और बहस और चर्चा का रास्ता अपनाने की सलाह दी. उन्होंने कहा कि सदन में सार्थक बहस से लोगों की समस्याओं के समाधान का मार्ग प्रशस्त होगा.
ओम बिरला ने कहा कि छत्तीसगढ़ विधान सभा के सदस्यों को ऐसा आचरण करना चाहिए जो अन्य विधानसभाओं के मिसाल बने.
छत्तीसगढ़ के उपमुख्यमंत्री अरुण साव ने कहा कि अध्यक्ष के रूप में बिरला ने प्रत्येक सदस्य को अपनी बात कहने का अवसर देकर और सदन में सदस्यों का विश्वास बढ़ाकर लोक सभा में एक नया इतिहास रचा है.
अरुण साव ने कहा कि लोक सभा अध्यक्ष के रूप में बिरला के कार्यकाल के दौरान संसद के नये भवन का निर्माण किया गया जो अपने आप में एक गौरवशाली और ऐतिहासिक क्षण है.