समाजवादी नेता एवं बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर को उनके जन्म शताब्दी वर्ष पर केंद्र की मोदी सरकार ने देश का सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न देने की घोषणा की है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कर्पूरी को सामाजिक न्याय का पथप्रदर्शक बताते हुए कहा कि यह सम्मान कर्पूरी के योगदान के लिए तो है ही, एक न्यापूर्ण समाज के लिए काम करते रहने के लिए हमें भी प्रेरित करेगा। लोकसभा चुनाव के लिए अलग अलग खेमों मे चल रही गतिविधि के बीच भारत रत्न सम्मान की घोषणा ने राजनीतिक विमर्श को भी तेज कर दिया है।
कौन हैं कर्पूरी ठाकुर?
1970-79 के बीच बिहार के दो-दो बार मुख्यमंत्री एवं बाद में बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष रह चुके कर्पूरी ठाकुर का जन्म समस्तीपुर जिले के पितौंझिया गांव में नाई समाज में 24 जनवरी 1924 को हुआ था। 1952 में पहली विधायक चुने जाने के बाद आजीवन वह किसी न किसी सदन के सदस्य रहे। इतने महत्वपूर्ण पदों पर रहने के बावजूद उनके पास न घर था न गाड़ी। पैतृक जमीन भी नहीं थी। राजनीति में ईमानदारी, सज्जनता एवं लोकप्रियता ने कर्पूरी को जननायक बना दिया था।
कर्पूरी का निधन 64 वर्ष की उम्र में 17 फरवरी 1988 को हुआ था। केंद्र सरकार ने कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने की घोषणा ऐसे समय में की है, जब कुछ दिनों में ही लोकसभा चुनाव की प्रक्रिया शुरू होने वाली है। कर्पूरी के जन्मशताब्दी वर्ष को सभी दलों ने अपने-अपने तरीके से मना रहा है। बुधवार को भाजपा की ओर से पटना के साथ-साथ दिल्ली में भी बड़ा कार्यक्रम होने जा रहा है।
बीजेपी ने दिया बड़ा संकेत
विज्ञान भवन में प्रस्तावित इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि केंद्रीय गृहमंत्री एवं भाजपा के वरिष्ठ नेता अमित शाह होंगे। कर्पूरी के सहारे भाजपा ने बिहार में अपनी चुनावी लाइन को स्पष्ट करने की दिशा में बढ़ने का संकेत दे दिया है। बिहार में पहले से ही दोनों गठबंधनों के घटक दलों के बीच कर्पूरी को अपना बताने की होड़ है। राजद, जदयू एवं भाजपा समेत छोटे-बड़े कई दल अंत्योदय समाज के प्रति जननायक के योगदानों को याद कर रहे हैं। सभी कर्पूरी ठाकुर के असली वारिस होने का दावा कर रहे हैं।
वोट की राजनीति?
राज्य सरकार के इस कदम को वोट की राजनीति से जोड़कर देखा जा रहा है। अति पिछड़ा वर्ग के वोट बैंक को ध्यान में रखते हुए जदयू ने पहले ही कर्पूरी के पैतृक गांव एवं पटना में चार दिनों के कार्यक्रम की तैयारी कर रखी है। पटना के साथ-साथ दिल्ली में भी बड़े पैमाने पर कर्पूरी के जन्मशताब्दी वर्ष मनाने की भाजपा की तैयारी को भी इसी नजरिए से देखा जा रहा है। भाजपा का तर्क है कि कर्पूरी के सपने को सच्चे अर्थों में उसने ही पूरा किया है। कर्पूरी ने आजीवन कांग्रेस के विरुद्ध राजनीति की थी।
आपातकाल के दौरान इंदिरा गांधी उन्हें गिरफ्तार करने में कामयाब नहीं हो पाई। कर्पूरी सर्वोच्च पद पर पिछड़े समाज के व्यक्ति को देखना चाहते थे। भाजपा ने नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री बनाकर सही अर्थों में कर्पूरी का ही अनुशरण किया है। कर्पूरी राजनीति में परिवारवाद के प्रबल विरोधी थे। जीवित रहने तक उन्होंने अपने परिवार के किसी सदस्य को राजनीति में नहीं आने दिया। भाजपा इस नाते भी कर्पूरी को अपना मार्गदर्शक मानती है।
पीएम मोदी ने किया पोस्ट
प्रधानमंत्री मोदी ने एक्स पर लिखा, “मुझे खुशी है कि भारत सरकार ने सामाजिक न्याय के प्रतीक महान जननायक कर्पूरी ठाकुर जी को भारत रत्न से सम्मानित करने का निर्णय लिया है और वह भी ऐसे समय में जब हम उनकी जन्मशती मना रहे हैं।”
उन्होंने आगे लिखा, “दलितों के उत्थान के लिए उनकी अटूट प्रतिबद्धता और उनके दूरदर्शी नेतृत्व ने भारत के सामाजिक-राजनीतिक ताने-बाने पर एक अमिट छाप छोड़ी है। यह पुरस्कार न केवल उनके उल्लेखनीय योगदान का सम्मान करता है बल्कि हमें एक अधिक न्यायपूर्ण और न्यायसंगत समाज बनाने के उनके मिशन को जारी रखने के लिए भी प्रेरित करता है।”
I am delighted that the Government of India has decided to confer the Bharat Ratna on the beacon of social justice, the great Jan Nayak Karpoori Thakur Ji and that too at a time when we are marking his birth centenary. This prestigious recognition is a testament to his enduring… pic.twitter.com/9fSJrZJPSP
— Narendra Modi (@narendramodi) January 23, 2024
कर्पूरी ठाकुर से जुड़ी अहम बातें-
- 24 जनवरी 1924 को समस्तीपुर में जन्मे कर्पूरी ठाकुर दो बार बिहार के सीएम रहे पर एक भी बार अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए।
- कर्पूरी ठाकुर जब मुख्यमंत्री बने तो बिहार में पिछड़े वर्गों के लिए मुंगेरी लाल आयोग की अनुशंसा लागू कर आरक्षण का रास्ता खोल दिया। उन्हें अपनी सरकार की कुर्बानी देनी पड़ी, लेकिन जननायक अपने संकल्प से विचलित नहीं हुए।
- कर्पूरी ने ही बिहार बोर्ड की मैट्रिक परीक्षा में अंग्रेजी पास करने की अनिवार्यता को खत्म किया। उन्होंने ही सबसे पहले बिहार में शराबबंदी लागू की। सरकार गिरने पर राज्य में फिर से शराब के व्यवसाय को मान्यता मिल गई। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी कई बार इस घटना का जिक्र किया।