राजस्थान लोक सेवा आयोग इस बार बड़ा चुनावी मुद्दा बन गया है। विपक्ष के आरोपों बाद अब कांग्रेस नेता और पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट ने भी इस मसले पर सरकार से भीड़ गए हैं। यूं तो पायलट पिछले कई दिनों से लगातार सरकार पर आरोप लगाते रहे थे लेकिन अपनी जन संघर्ष यात्रा में उन्होंने इसे सबसे बड़ा मुद्दा बना दिया। पेपर लीक मामले को लेकर सरकार को कटगरे में खड़ा करते हुए पायलट ने राजस्थान लोकसेवा आयोग (आरपीएससी) को भंग की मांग कर डाली। साथी नई व्यवस्था कायम करने की बात कही।
सोमवार 15 मई को जयपुर में हुई आमसभा में पायलट ने कहा कि आरपीएससी में चेयरमैन और सदस्यों की नियुक्ति के कोई प्रावधान नहीं हैं। सरकार के मुखिया अपने नजदीकी नेताओं और अफसरों के साथ चुनावी फायदा देखते हुए नेताओं के रिश्तेदारों की नियुक्ति कर देती है जिसके कारण लगातार पेपर आउट हो रहे हैं। पायलट से पहले बार बार पेपर लीक होने की घटना से आहत होकर राजस्थान बेरोजगार एकीकृत महासंघ भी सरकार पर सवाल उठा चुका है।
राजस्थान प्रशासनिक सेवाओं सहित सरकार के कई विभागों की बड़ी भर्तियां राजस्थान लोकसेवा आयोग की ओर से करवाई जाती है लेकिन आरपीएससी के सदस्यों द्वारा ही पेपर लीक किए जाने के खुलासे हो रहे हैं। पिछले दिनों आरपीएससी के सदस्य बाबूलाल कटारा को एसओजी ने गिरफ्तार किया था। कटारा ने 1 करोड़ रुपए में वरिष्ठ अध्यापक भर्ती परीक्षा का पेपर शेरसिंह मीणा को बेचा था। इसके पुख्ता प्रमाण सामने आ चुके हैं और एसओजी ने कटारा के घर से 50 लाख रुपए जब्त भी किए हैं। इसी कटारा ने सब इंस्पेक्टर भर्ती में सैंकड़ों अभ्यर्थियों के इंटरव्यू लिए थे। इससे पहले वर्ष 2013 में आरपीएससी के तत्कालीन अध्यक्ष हबीब गोरांग पर आरजेएस भर्ती परीक्षा का पेपर लीक करके अपनी बेटी को देने के आरोप लगे थे। पेपर लीक मामले में गोरांन की गिरफ्तारी भी हुई थी।
आरएएस भर्ती 2018 के इंटरव्यू के दौरान आरपीएससी सदस्य राजकुमारी गुर्जर पर रुपए लेने के आरोप लगे थे। आयोग का एक कर्मचारी सज्जन सिंह अभ्यर्थी से 23 लाख रुपए लेते हुए रंगेहाथों गिरफ्तार हुआ था। हालांकि इस मामले में आरसीएससी सदस्य पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों पर भर्ती परीक्षाओं में धांधली के आरोप कई बार लगे हैं जिसके कारण आयोग की साख कई बार खराब हुई। पेपर लीक और अन्य प्रकार की धांधलियां होने से योग्य अभ्यर्थी चयन से वंचित रह जाते हैं।
राजस्थान लोकसेवा आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति के नियम बेहद लचीले हैं। राज्य सरकार की सिफारिश पर किसी भी व्यक्ति की नियुक्ति कर दी जाती है। अध्यक्ष और सदस्य की योग्यता के मापदंड तय नहीं है। इस वजह से सरकार के मुखिया अपने पसंदीदा व्यक्ति के नाम राज्यपाल के पास भेजते हैं। राज्यपाल की मंजूरी के बाद नियुक्ति हो जाती है। एक बार नियुक्ति होने के 6 साल तक राष्ट्रपति की अनुमति के बाद हटाया भी नहीं जा सकता। अब तक जिन्हें भी आरपीएससी का अध्यक्ष और सदस्य नियुक्त किया है। वे सभी सरकार के मुखिया की पसंद के अधिकारी, सेवानिवृत अधिकारी, पत्रकार, नेता या उनके नजदीकी रिश्तेदारों रहे हैं। इनकी नियुक्ति भी जातिगत आधार पर होती है ना कि योग्यता के आधार पर।
कांग्रेस नेता सचिन पायलट ने कहा कि प्रशासनिक सेवाओं सहित अन्य सभी भर्तियों में योग्य अभ्यर्थियों के चयन और पारदर्शिता के लिए आरपीएससी को तत्काल प्रभाव से भंग कर दिया जाना चाहिए। इसके स्थान पर नई व्यवस्था कायम की जानी चाहिए। एक ऐसी संस्था का गठन होना चाहिए जिनमें नियुक्ति के मापदंड तय हो। संस्था के अध्यक्ष और सदस्यों की शेक्षणिक योग्यता निर्धारित होनी चाहिए। साथ ही जिस तरह से हाईकोर्ट जज की नियुक्ति के दौरान इंटेलीजेंस ब्यूरो की ओर से पूरी जांच की जाती है। उसी तरह से सदस्यों और अध्यक्ष की नियुक्ति से पहले दावेदारों का पूरा बेकग्राउंड जांच लेना चाहिए। ऐसे महत्वपूर्ण आयोग में राजनीतिक निकटता, रिश्तेदारी और जातिगत आधार पर नियुक्तियां बिल्कुल नहीं होनी चाहिए।