मोदी सरकार ने नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) को लागू कर एक झटके में पश्चिम बंगाल की राजनीति को पूरी तरह पलट दिया है. राज्य की 42 लोकसभा सीटों में से कम से कम आठ ऐसी सीटें हैं जहां इस कानून के लागू होने के बाद सीधे तौर पर भाजपा को बढ़त दिख रही है. मोदी सरकार ने तमाम आंतरिक सर्वे के आधार पर चुनाव से ठीक पहले सीएए को लागू करने का फैसला किया है.
केंद्र की मोदी सरकार ने चार साल पहले इस कानून को संसद से पास करवाया था, लेकिन इसे अभी तक लागू नहीं किया गया था. सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक पश्चिम बंगाल के सीमाई इलाकों में व्यापक स्तर पर करवाए गए सर्वे के बाद यह फैसला किया गया. साथ ही बांग्लादेश के हिंदू समुदाय के साथ काम करने वाले भाजपा की कई सहयोगी संगठनों की रिपोर्ट के बाद यह फैसला लिया गया है.
इन सर्वे रिपोर्ट्स को देखा है. भाजपा के आंतरिक सर्वे के मुताबिक इस फैसले से नाडिया और उत्तरी 24 परगना जिलों में कम से कम पांच लोकसभा सीटें सीधे तौर पर प्रभावित हो रही हैं. इसके अलावा उत्तरी बंगाल की दो से तीन सीटों पर भी इसका असर पड़ेगा.
सीसीए की वजह से उत्तर बंगाल में मातुआ और राजबंशी के साथ-साथ उत्तरी बंगाल में नामसुद्र समुदाय सबसे ज्यादा लाभांवित हो रहा है. हालांकि, एक पक्ष का यह भी मानना है कि सीएए लागू होने के बाद स्थानीय अनुसूचित जाति और पिछड़ा वर्ग के वोटर्स भाजपा से दूर हो सकते हैं.
कौन हैं मतुआ, राजबंशी और नामसुद्र
मतुआ लोग हिंदू शरणार्थी हैं जो देश के बंटवारे और उसके बाद के वर्षों में पाकिस्तान और बांग्लादेश से भारत में आकर बसे थे. इनके बारे में स्पष्ट आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं लेकिन अनुमान के मुताबिक पश्चिम बंगाल की आबादी में इसकी संख्या करीब 10 से 15 फीसदी है. राज्य के पांच लोकसभा क्षेत्र में इनकी संख्या ठीक-ठाक बताई जाती है. 2019 के चुनाव में भाजपा को इन पांच में से दो सीटों पर जीत मिली थी.
राजबंशी और नामसुद्र की संख्या अपेक्षाकृत कम है. ये मुख्य रूप से उत्तरी बंगाल में बसे हैं. 2019 के चुनाव में इनके बाहुल्य वाली तीन सीटों पर भाजपा की जीत हुई थी. इनकी संख्या करीब 40 लाख बताई जाती है और ये जलपाईगुड़ी, कूच बेहार और बलुरघाट इलाके में बसे हुए हैं.
2019 के लोकसभा चुनावों के आधार पर भाजपा के नेता दावा करते हैं कि पार्टी ने उत्तरी 24 परगना जिले में भी बढ़त बनाई थी. यह जिला दक्षिणी बंगाल में है जिसे ममता बनर्जी का गढ़ बताया जाता है. दक्षिणी बंगाल में लोकसभा की 21 सीटें हैं.
उत्तरी 24 परगना
उत्तरी 24 परागना में विधानसभा की 33 सीटें हैं. 2016 में यहां की 27 सीटों पर तृणमूल ने जीत हासिल की थी. लेकिन, 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा ने 12 विधानसभा सीटों पर बढ़त हासिल कर ली थी. इनमें से चार सीटें ऐसी थीं जहां 80 फीसदी मतुआ आबादी है.
इसी तरह नाडिया में भी भाजपा बढ़त हासिल कर सकती है. 2019 के चुनाव में यहां की 17 विधानसभा सीटों में से 11 पर भाजपा ने अच्छी मार्जिन से बढ़त हासिल की थी. इस तरह उत्तरी 24 परगना और नाडिया इलाके की करीब छह लोकसभा सीटों पर मतुआ वोट बेहद प्रभावी है.
40 से 45 विधानसभा क्षेत्रों में मतुआ बड़ा वोट बैंक
राजनीतिक विशेषज्ञों का दावा है कि बनगांव और राणाघाट पश्चिम बंगाल में सीएए से सबसे अधिक प्रभावित हैं. 2019 के लोकसभा चुनाव के नतीजे बताते हैं कि इन दोनों निर्वाचन क्षेत्रों में मतुआ वोट निर्णायक हैं. 2019 में सीएए लाने के वादे ने बीजेपी को इन दो सीटों पर जीत दिलाने में मदद की. दोनों लोकसभा क्षेत्रों की कुल 14 विधानसभा सीटों में से 12 पर भाजपा आगे थी. विभिन्न रिपोर्टों के मुताबिक राज्य में कम से कम 40 से 45 विधानसभा क्षेत्रों में मतुआ बड़ा वोट बैंक हैं.
2019 में दूसरी बार सत्ता में लौटने के बाद मोदी सरकार ने संसद में सीएए कानून पारित किया, लेकिन इसे लागू नहीं किया गया. इसका असर 2021 के विधानसभा चुनाव के नतीजे पर दिखा. 2019 में बनगांव और राणाघाट लोकसभा क्षेत्रों में जहां भाजपा को बड़ी बढ़त मिली थी, वहीं 2021 में तृणमूल कांग्रेस ने बड़ी जीत हासिल की. उत्तर चौबीस परगना और नादिया के अलावा उत्तर बंगाल के दक्षिण चौबीस परगना, हावड़ा, कूच बिहार, मालदा जैसे जिलों में भी मतुआ समुदाय की बड़ी आबादी है.