भाजपा और राज्य की सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) द्वारा उम्मीदवारों की घोषणा के साथ ही पश्चिम बंगाल की 42 लोकसभा सीटों के लिए त्रिकोणीय लड़ाई आकार लेने लगी है। जबकि भाजपा ने अब तक 20 सीटों के लिए उम्मीदवारों के नाम घोषित कर दिए हैं, टीएमसी ने सभी 42 सीटों की घोषणा कर दी है, जिससे इंडिया ब्लॉक के साथ सीट-बंटवारे समझौते तक पहुंचने की कोई भी उम्मीद खत्म हो गई है।सहयोगी कांग्रेस.
इस बीच, सहयोगी दल वाम मोर्चा और कांग्रेस संयुक्त मोर्चा बनाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। पूर्व ने पहले ही 16 नामों की घोषणा कर दी है, और सीट-बंटवारे पर आगे बढ़ने में कांग्रेस के विफल रहने पर सार्वजनिक रूप से नाराजगी व्यक्त की है।
पश्चिम बंगाल में लोकसभा चुनाव को लेकर बड़ा उलटफेर होने की आशंका जताई जा रही है. ये अनुमान लगाया जा रहा है कि टीएमसी को चुनाव में झटका लग सकता है. जबकि बीजेपी बड़ा उलटफेर कर सकती है.
एक्सपर्ट का कहना है कि बंगाल की जनता ममता सरकार से बहुत परेशान है. वहीं टीएमसी नेता ने कहा कि हम ओपिनियन पोल पर कुछ नहीं कहना चाहते… उन्होंने कहा कि टीएमसी को 42 में से 16 सीट का जो अनुमान है वो गलत साबित होगा.और देखा जाये तो पिछले दो दशकों के दौरान पश्चिम बंगाल की राजनीति में काफी बदलाव आया है। सबसे पहले साल 1998 में टीएमसी के उदय के साथ वामपंथी का प्रभाव काफी कम हो गया और अब बीजेपी के उदय के बाद कांग्रेस और वाम दोनों का ही प्रभाव कम होता नजर आ रहा है।
टीएमसी का बंगाल में दबदबा
2011 में सत्ता में आई टीएमसी ने 2009 के बाद से राज्य में सबसे ज्यादा लोकसभा सीटें जीती हैं। बात की जाए विधानसभा चुनाव की तो यहां पर भी टीएमसी ने अपना दबदबा कायम रखा है। टीएमसी ने साल 2016 में 295 में से 211 सीटें जीतीं थी और साल 2021 के चुनाव में 215 सीटों पर जीत हासिल की। कांग्रेस और लेफ्ट का ग्राफ लगातार गिर रहा है। वहीं, बीजेपी को काफी फायदा हुआ है। पार्टी को 2021 में 77 सीटें मिली थी।
लोकसभा इलेक्शन में टीएमसी आगे रहने में कामयाब रही है, लेकिन बीजेपी की कोशिश का असर भी नजर आ रहा है। 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी भारी बहुमत के साथ केंद्र में सत्ता में आई, तो टीएमसी ने बंगाल में 48 में से 34 सीटें जीतीं। उस समय कांग्रेस ने 4 सीटें जीती थीं इधर लेफ्ट ओर बीजेपी ने 2-2 सीटें जीती थीं। लेकिन 2019 तक, भाजपा ने अंतर को काफी कम कर दिया। पार्टी ने बंगाल में 18 लोकसभा सीटें जीती थी ओर टीएमसी को सिर्फ 22 सीटें मिली थी। कांग्रेस दो सीटों पर सिमट कर रह गई और वाम दल के खाते में एक भी सीट नहीं आई।
लोकसभा और विधानसभा इलेक्शन में वोट शेयर
लोकसभा चुनावों में वोट शेयर को देखा जाए तो टीएमसी ने 2014 और 2019 के बीच 3.9 फीसदी की बढ़ोतरी की थी। लेकिन फिर भी 12 सीटें कम जीतीं थी। बीजेपी के वोट शेयर में 23.6 प्रतिशत का इजाफा हुआ। वहीं, कांग्रेस पार्टी के वोट शेयर में 4 फीसदी की गिरावट आई थी और लेफ्ट के वोट शेयर में 22.4 फीसदी की गिरावट देखने को मिली। विधानसभा चुनावों की बात की जाए तो टीएमसी का वोट शेयर 2016 से 2021 तक 3.1 फीसदी तक बढ़ गया था। लेकिन बीजेपी ने भी काफी बढ़ोतरी की थी। बीजेपी ने 10.2 फीसदी वोटों से 38.1 फीसदी तक का सफर तय किया। दूसरी तरफ कांग्रेस को 2.2 फीसदी और लेफ्ट को 20.1 फीसदी की गिरावट दर्ज हुई..2019 में बीजेपी द्वारा जीती गई 18 सीटों में से 9 में टीएमसी, कांग्रेस और लेफ्ट का वोट शेयर आराम से बीजेपी से ज्यादा हो गया। अगर सिर्फ कांग्रेस के वोट शेयरों को टीएमसी में जोड़ दिया जाता, तो पार्टी की 18 सीटों में से 6 पर दोनों बीजेपी से आगे होते। लेकिन 2021 के विधानसभा चुनावों में टीएमसी के प्रदर्शन को देखते हुए ममता बनर्जी को भरोसा हो गया कि उनकी पार्टी अकेल चुनाव लड़ने पर भी ज्यादा सीटें नहीं हारती। इन 18 लोकसभा सीटों में से टीएमसी 10 पर रहकर बीजेपी से आगे थी। कांग्रेस के विधानसभा क्षेत्र के वोट शेयर को जोड़ने पर गठबंधन को 3 ज्यादा सीटें मिलतीं, जबकि लेफ्ट को भी केवल 1 सीट का ही फर्क पड़ता।