INDI अलायन्स को RSS का झूठा सपोर्ट साबित करने के लिए कांग्रेस ने फैलाई फेक न्यूज
यहाँ समझिए किस तरह से ‘फ़र्ज़ी RSS’ के ज़रिए INDI अलायंस को समर्थन मिलने का झूठ फैलाया जा रहा है।
कौन है ये “RSS Online”
“RSS ने दिया कांग्रेस को समर्थन, नागपुर से हुई घोषणा”
जनार्दन मून, संस्थापक अध्यक्ष, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के हवाले से एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के जरिए यह दावा किया जा रहा है। नीचे ट्वीट में देखे प्रेस कांफ्रेंस
फ़र्ज़ी RSS वाले जनार्दन मून INDI अलायंस को समर्थन देने की बात कर रहे हैं। जनार्दन मून एवं इस ‘नई वाली RSS’ का सच इस THREAD 🧵 से जानिए 👇 pic.twitter.com/b7DljBNYT1
— One India News (@oneindianewscom) March 26, 2024
इस जनार्दन मून का RSS से कोई संबंध नहीं है लेकिन उनकी प्रेस कॉन्फ्रेंस में उन्हें INDI अलायंस को समर्थन देने की घोषणा करते हुए सुना जा सकता है।
वे अपने कार्यकर्ताओं को भाजपा के वोट डायवर्ट करने के निर्देश जारी कर रहे हैं। वे कह रहे हैं कि INDI अलायंस को उनका यह समर्थन संविधान को बचाने के लिए है, जिसे कथित तौर पर मोदी और शाह समाप्त कर रहे हैं।
आइए जानते हैं इस ‘नई RSS’ के दावे का सच
पहली बात, RSS जब भी प्रेस कॉन्फ्रेंस करता है तो यह उनके सोशल मीडिया हैंडल्स पर लाइव होता है।
जनार्दन मून नामक व्यक्ति का कोई भी वीडियो संघ के आधिकारिक हैंडल्स या वेबसाइट पर नहीं है।दूसरी बात, RSS की प्रेस कॉन्फ्रेंस का बैकग्राउंड उस तरह का नहीं होता है जैसा कि जनार्दन वाले वीडियो में दिखाई दे रहा है।
संघ की प्रेस कांफ्रेंस का बेकग्राउंड आप नीचे लगाये फोटो में देख सकते है 👇
जनार्दन मून का RSS से इसलिए कोई लेना-देना नहीं है क्योंकि RSS की कार्यप्रणाली में “संस्थापक अध्यक्ष” शब्द का उपयोग नहीं होता है।
RSS की स्थापना करने वाले डॉ केशव बलिराम हेडगेवार को भी ‘प्रथम सरसंघचालक’ कहा जाता है।
RSS में दायित्व दिए जाते हैं, जैसे, सरसंघचालक, संघचालक, सरकार्यवाह, कार्यवाह, प्रचारक, इत्यादि। “अध्यक्ष” जैसा दायित्व संघ में नहीं होता है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के आद्य सरसंघचालक प.पू.डॉ केशव बलिराम हेडगेवार जी
इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में अब्दुल गफूर पाशा नामक एक व्यक्ति हैं जो दावा कर रहे हैं कि वे RSS के कार्यकारी अध्यक्ष हैं।
अब्दुल गफूर पाशा कहते हैं कि “हमारी RSS आज तकरीबन ढाई लाख प्लस कैडर के साथ में इस इंडिया में मौजूद है।”
“कैडर” शब्द का उपयोग RSS में नहीं होता है बल्कि प्रत्येक व्यक्ति ‘स्वयंसेवक’ कहलाता है। ये इस बात की पुष्टि करता है कि यह नकली RSS है।
AWAAZ INDIA TV नामक इस चैनल पर अब्दुल गफूर पाशा का एक और वीडियो है जिसमें उन्हें RSS विचारक बताया गया है। हालांकि, अब्दुल गफूर पाशा नामक व्यक्ति का संघ से कोई नाता नहीं है।
जनार्दन मून की RSS पहले भी विवाद में आती रही है।
मून की RSS पहले भी अपने अस्तित्व को लेकर चर्चा में आती रही है। अक्टूबर 2020 में दीपक वसंतराव बराड और प्रशांत कमलाकर भोपार्डिकर ने चैरिटी कमिश्नर कार्यालय में जनार्दन मून की RSS के ख़िलाफ़ शिकायत दर्ज की थी, जिसमें दावा किया गया था कि मून वाली RSS लोगों के बीच मुख्य संगठन RSS को लेकर गलत धारणा फैला रहा है। लेकिन चैरिटी कमिश्नर के कार्यालय ने RSS संगठन के पंजीकरण पर आपत्ति मांगने वाली याचिका को खारिज कर दिया था। कमिश्नर ने तर्क दिया था कि 1925 में केशव बलिराम हेडगेवार द्वारा स्थापित RSS को कार्यालय में पंजीकृत नहीं किया गया है। इसलिए, इस प्राधिकरण के पास मून वाली RSS के पंजीकरण पर आपत्ति करने वाले वर्तमान आवेदन पर विचार करने की कोई शक्ति नहीं है।
जनार्दन मून ने एक बार आरएसएस कार्यकर्ताओं से अपनी जान को खतरा बताते हुए नागपुर पुलिस से सुरक्षा की मांग भी की थी। इसके बाद ही वे अपनी वाली RSS को रजिस्टर करने भी पहुँचे थे। चैरिटी कमिश्नर के पास उनका आवेदन 14 सितंबर 2017 को सुनवाई के लिए गया था। लेकिन इस बीच डॉ राजेंद्र गुंडलवार ने दावा किया था कि RSS का पंजीकरण उन्होंने नागपुर में नहीं, बल्कि चंद्रपुर में करवाया था, इसलिए मुख्य RSS का नाम उनके पास उपलब्ध नहीं था।
उन्होंने जनार्दन मून को एक पत्र में RSS के नाम का दुरुपयोग करने से रोकने के लिए भी कहा था। उन्होंने कहा था कि RSS एक बेहद प्रतिष्ठित संगठन है जो किसी से किसी भी प्रकार का दान लिए बिना निस्वार्थ भाव से काम करता है और दुनियाभर में लाखों स्वयंसेवक उसी RSS के लिए काम कर रहे हैं।
गुंडलवार ने RSS द्वारा पंजीकृत आरएसएस का कानूनी विवरण देने के बाद (MH-08/D0018394, कोड 94910 धार्मिक संगठन के रूप में पंजीकृत) जनार्दन मून को अपने एनजीओ के आरएसएस के रूप में पंजीकरण के लिए आवेदन करने के लिए फटकार भी लगाई थी। उन्होंने तब भी स्पष्ट किया था कि जनार्दन मून के “ऐसा करने के पीछे इरादे संदिग्ध हैं, और वे ऐसा कर के भ्रम पैदा करना चाहते हैं, साथ ही भविष्य में धार्मिक दंगे भी भड़का सकते हैं।”
इसके बाद जनार्दन मून ने विक्टिम कार्ड खेलते हुए दावा किया था कि गुंडलवार से उन्हें जान का खतरा है।
साल 2020 में सर्वोच्च न्यायालय ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के नाम पर नए संगठन के गठन व पंजीकरण को लेकर दायर याचिका खारिज कर दी थी। याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस चंद्रचूड़ की पीठ ने याचिकाकर्ता को फटकार लगाते हुए पूछा था कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के नाम से नए संगठन का पंजीकरण करवाने के पीछे क्या उद्देश्य है? क्या याचिकाकर्ता समाज में संघ के नाम पर दूसरा संगठन बना कर भ्रम फैलाना चाहता है? न्यायालय ने याचिका को खारिज करते हुए कहा कि ऐसे किसी नए संगठन को पहले से मौजूद संगठन के नाम पर रजिस्ट्रेशन नहीं दिया जा सकता।
जनार्दन मून की ये RSS अब सिर्फ़ आरएसएस नहीं बल्कि “राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, ऑनलाइन” के नाम से जानी जाती है, जैसा कि साल 2023 में ही एक अन्य मामले में हाईकोर्ट ने “राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, ऑनलाइन” के राष्ट्रीय अध्यक्ष जनार्दन मून पर 10,000 रुपए का जुर्माना भी लगाया। इसी सुनवाई में याचिकाकर्ता की सोसाइटी के पंजीयन को लेकर असि. रजिस्ट्रार सोसाइटी की ओर से 4 अक्टूबर, 2017 को दिए आदेश पर भी अदालत का ध्यानाकर्षित किया गया, जिसमें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के रूप में पंजीयन का आवेदन ठुकरा दिया गया है।