पाक अधिकृत कश्मीर को लेकर कई विवाद हैं. उस क्षेत्र से ऐसी बातें भी आती रहीं कि पाकिस्तान की सरकार और लोग भी उसे अपना नहीं पा रहे, बस, जोड़े रखने के लिए उसपर कब्जा किया हुआ है. अब वहां के नेता ये बात संयुक्त राष्ट्र तक ले जा रहे हैं. मार्च में यूनाइटेड कश्मीर पीपल्स नेशनल पार्टी के कार्यकर्ताओं ने यह बात यूएन में उठाई थी. उन्होंने यहां तक कह दिया कि पाकिस्तान उनके यहां टैरर कैंप चला रहा है.
कुछ ही दिनों के भीतर फिर ये मुद्दा उठा. इस बार वहां की पार्टी अवामी एक्शन कमेटी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करके सारे आरोप दोहराए हैं. कथित तौर पर पाकिस्तानी प्रशासन PoK के लोगों के साथ अच्छा व्यवहार नहीं करता और न ही उनकी जरूरतें पूरा करता है. लेकिन ऐसा क्यों हो रहा है, ये समझने के लिए एक बार पीछे की तरफ चलते हैं. ये कहानी शुरू होती है साल 1947 से. देश जब आजाद हो रहा था, तब जम्मू-कशअमीर के शासक महाराजा हरि सिंह के पास दो ऑप्शन थे. वे अपनी रियासत को भारत या फिर पाकिस्तान में शामिल कर सकते थे. फैसला जब तक लिया जाता, तब तक कश्मीर के उस हिस्से के लोगों ने राजा के खिलाफ बगावत कर दी, जो हिस्सा अब पाकिस्तान में है. विद्रोह की आग में फूंक मारी पाकिस्तान से भेजे कबायलियों ने. वे एक-एक करके हिंसा के बूते कश्मीर के अलग-अलग हिस्सों को हथिया रहे थे.
इस विद्रोह को खत्म करने में भारतीय सेना ने राजा की मदद की, लेकिन बदले में कुछ शर्तें थीं. बगावत होने और शर्तों पर हामी भरने के बीच ही कश्मीर के कुछ हिस्से पर विद्रोहियों ने कब्जा कर लिया था. इस हिस्से वाले लोगों ने खुद को आजाद कश्मीर घोषित कर दिया. बोलचाल में इसे आजाद कश्मीर भी कहते हैं. हालांकि इसपर पाकिस्तान का सीधा हस्तक्षेप है.
पीओके का एक हिस्सा और है, जो गिलगित-बल्टिस्तान कहलाता है. ये टुकड़ा लद्दाख की सीमा से लगा हुआ है. सामरिक लिहाज से पूरा का पूरा पीओके काफी जरूरी है क्योंकि इसका बॉर्डर कई ऐसे देशों से सटा है, जिनके भारत से खास अच्छे संबंध नहीं, जैसे अफगानिस्तान, चीन और खुद पाकिस्तान. केंद्र सरकार लगातार पीओके पर पाकिस्तान के अवैध कब्जे का मुद्दा उठाते हुए अपना दावा पेश करती रही. मामला यूनाइटेड नेशन्स तक भी जा चुका है, हालांकि बाद में दोनों देशों ने इसे आपसी मामला मानते हुए आपस में ही सुलझाने की बात की.
पाकिस्तान ने आजाद कश्मीर हथिया तो लिया, लेकिन उसपर ज्यादा ध्यान नहीं दिया क्योंकि ये विवादित क्षेत्र था. पाकिस्तान का इसके साथ रवैया कुछ वैसा ही है, जैसे घर के सामने अतिक्रमण की हुई जमीन के साथ घरवालों का होता है. वे उसपर कब्जा तो कर लेते हैं, लेकिन कोई स्थाई स्ट्रक्चर बनाने या बाड़ बनाने से डरते हैं. कहीं न कहीं वे जानते हैं कि आगे चलकर वे फंस सकते हैं. तो पीओके की हालत भी कब्जाई हुई जमीन जैसी हो चुकी है. करीब 13 हजार किलोमीटर में फैले आजाद कश्मीर में 40 लाख से ज्यादा आबादी है. ये लोग अपना मंत्रिमंडल और अपनी सरकार की बात करते हैं. इसका एक स्ट्रक्चर भी है. पीओके का चीफ राष्ट्रपति होता है, जबकि प्रधानमंत्री मुख्य कार्यकारी अधिकारी है. 10 जिलों में बंटे पीओके की राजधानी मुजफ्फराबाद है. इसके पास अपनी सुप्रीम कोर्ट भी है. लेकिन असल में सारा राज-कानून पाकिस्तान का चलता है.
यहां की आबादी मुस्लिम-बहुल है, जहां केवल उर्दू या कश्मीर नहीं, बल्कि कई भाषाएं बोली जाती हैं. पहाड़ी, हिन्दको और पंजाबी बोलने वाले भी यहां रहते हैं. यहां के लोगों का मुख्य पेशा खेती-किसानी है. फलों के अलावा यहां मक्का, चावल, गेहूं और कई सारे वन उत्पाद भी मिलते हैं. खनिज भंडार भी हैं.
कुदरती तौर पर पीओके भारतीय कश्मीर जितनी ही सुंदर है. हालांकि वहां टूरिज्म, खासकर विदेशियों का आना नहीं के बराबर है. इसकी वजह ये है कि पीओके न तो आजाद है, न ही पूरी तरह से पाकिस्तान इसे अपना सका. इससे पीओके लगातार बदहाल होता चला गया. मीडिया ब्लैकआउट की वजह से पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर की बहुत सी बातें सामने नहीं आ पाती हैं, लेकिन साल 2005 में इसकी पहली झलक दिखी, जब भूकंप के बाद पाकिस्तानी सेना वहां मौजूद तो थी, लेकिन लोगों की मदद नहीं कर रही थी. स्थानीय लोग खुद ही फावड़े-कुदाल से मलबा हटाकर अपने लोगों को निकाल रहे थे. इंटरनेशनल वॉचडॉग ह्यूमन राइट्स वॉच ने अपनी सालाना रिपोर्ट में ये घटना लिखी थी. इस दौरान काफी सारी डराने वाली तस्वीरें भी आई थीं.
भारत के कश्मीर और पीओके में फर्क
- जम्मू कश्मीर की पर कैपिटा इनकम सवा लाख से ज्यादा है, जबकि पीओके की आय इससे आधी से भी कम है.
- भारतीय कश्मीर में 30 से ज्यादा यूनिवर्सिटीज के मुकाबले पीओके में 6 यूनिवर्सिटी हैं.
- जम्मू-कश्मीर में 2 हजार 8 सौ से ज्यादा सरकारी अस्पताल हैं, वहीं पीओके में 23 हॉस्पिटल हैं.
- पीओके के लोग पाकिस्तान के आम चुनाव में वोट नहीं दे सकते, जबकि जम्मू-कश्मीर के साथ ऐसा कुछ नहीं.
पीओके वो हिस्सा है, जिसका इस्तेमाल पाकिस्तान आतंकियों की ट्रेनिंग के लिए करता रहा. मुंबई हमलों के दोषी आतंकी अजमल कसाब को यहां की राजधानी मुजफ्फराबाद में ही प्रशिक्षण मिला था. आरोप है कि टैरर फैक्ट्री बनाने के अलावा पाकिस्तान की सरकार ने यहां कोई काम नहीं किया. वो स्थानीय लोगों को भड़काती है कि उनके ये हाल भारत के चलते हैं. बेरोजगार लोगों को मिलिटेंट बनाती और इस्तेमाल करती है. इस क्षेत्र को कोई विशेष दर्जा कभी नहीं मिला, जबकि लोग भयंकर बदहाली में रहे. यहां की संसद के पास कोई अधिकार नहीं, सिवाय छोटे-मोटे फैसले ले सकने के. बड़े फैसले पाकिस्तान की सरकार ही लेती है. पाकिस्तान ये सुनिश्चित करता है कि केवल वही लोग चुनाव में हिस्सा लें जो पाकिस्तान को सपोर्ट करते हैं. इलेक्टेड लोकल सरकार के बाद भी सारी बातें इस्लामाबाद की सरकार ही तय करती है. बीच में यहां पर बिजली कटौती और महंगाई के चलते खाने की भारी तंगी की खबरें भी लगातार आती रही थीं.