प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बाड़मेर में दौरे के बाद पश्चिमी राजस्थान की सियासत में रिफाइनरी का मुद्दा फिर से लोगों की जुबां पर आ गया है. पीएम मोदी ने कांग्रेस (Congress) पर रिफाइनरी को समय पर शुरू नहीं होने देने का आरोप लगाते हुए इसी साल अपने तीसरे कार्यकाल में रिफाइनरी का उद्घाटन करने का वादा कर बड़ा दांव चल दिया है. बाड़मेर के पचपदरा में रिफाइनरी पिछले 10 साल से राजस्थान के हर चुनाव में सियासी मुद्दा रही है. इस पर हो रही सियासत पर बात करने से पहले आपको बताते हैं कि आखिर राज्य की सियासत और पश्चिमी राजस्थान के लिए रिफाइनरी इतनी अहम क्यों है?
2013 में HPCL के साथ हुआ था MoU
साल 2013 में विधानसभा चुनाव से ठीक पहले जब केंद्र में UPA और राजस्थान में गहलोत सरकार थी, तब बाड़मेर में ग्रीनफील्ड रिफाइनरी और पेट्रोकेमिकल कॉम्प्लेक्स (Petrochemical Complexes) का काम आधिकारिक तौर पर शुरू हुआ था. तब राजस्थान सरकार का केंद्र सरकार की हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड (HPCL) के साथ 26 प्रतिशत और 74 प्रतिशत के इक्विटी शेयर के साथ MoU हुआ था.
पीएम मोदी ने 2018 में रखी आधारशिला
लेकिन दिसंबर 2013 में हुए चुनाव में सत्ता बदली तो रिफाइनरी के समीकरण भी बदल गए. बतौर मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने 2017 में एचपीसीएल के साथ 43,129 करोड़ का एक नया समझौता किया, जिसके तहत 2018 में पीएम मोदी में रिफाइनरी के लिए आधारशिला रखी थी. उस वक्त मोदी ने दावा किया था कि यह परियोजना 2022 तक पूरी हो जाएगी. लेकिन कोविड और बदले राजनीतिक हालातों के चलते काम अटक गया. 2018 विधानसभा चुनाव में रिफाइनरी को लेकर कांग्रेस-भाजपा में जमकर आरोप प्रत्यारोप का दौर चला. अशोक गहलोत ने केंद्र की मोदी सरकार पर योजना को लटकाने का आरोप लगाते हुए इसे चुनावी मुद्दा बनाने की कोशिश की.
हरदीप पुरी के बयान से गरमाई थी सियासत
दिसंबर 2018 में जब अशोक गहलोत तीसरी बार राजस्थान के सीएम बने, तब से केंद्र और राज्य सरकार के बीच फिर से जंग तेज हो गई. विवाद की बड़ी वजह केंद्रीय पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्री हरदीप सिंह पुरी का वो बयान था जिसने उन्होंने कहा था कि प्रोजेक्ट की अनुमानित लागत 2018 में 43,000 करोड़ रुपये से बढ़कर अब 72,000 रुपये हो गई है. उन्होंने राजस्थान सरकार पर आरोप लगाया कि कांग्रेस सरकार अतिरिक्त लागत वहन करने के लिए तैयार नहीं है. जबकि गहलोत ने प्रोजेक्ट में देरी और लागत में बढ़ोतरी के लिए बीजेपी की नीतियों को जिम्मेदार ठहराया. राजस्थान में गहलोत सरकार के पिछले कार्यकाल में पांच साल अशोक गहलोत ने हर संभव कोशिश की कि वे काम तय समय पर पूरा हो और 2022 में भी इसका उद्घाटन कर सके, लेकिन ऐसा नहीं हो पाया. 2023 विधानसभा चुनाव में रिफाइनरी एक बार फिर से चुनावी मुद्दा बना और अब 2024 के लोक सभा चुनाव में मोदी के बयान के बाद अब एक बार फिर से रिफाइनरी को लेकर सियासत शुरू हो गई.
तेल-गैस की खोज को दो दशक से अधिक बीते
असल में बाड़मेर रेतीले धोरों में तेल और गैस की खोज को दो दशक से अधिक बीत चुके हैं. 10 साल प्रोजेक्ट शुरू होने के बाद भी गुजर गए हैं, लेकिन अभी तक 900 एकड़ जमीन में फैली 9 मिलियन मीट्रिक टन कच्चे तेल की रिफाइनरी विकसित नहीं हो पाई है. हालांकि चुनावी बयानबाजी से दूर करीब 25,000 श्रमिकों और इंजीनियरों की एक टीम खुली आंखों से देखे इस सपने को मार्च 2024 तक साकार करने में दिन रात जुटी है. इसमें कहीं कोई दो राय नहीं है कि रिफाइनरी प्रोजेक्ट के शुरू होने के बाद से ही पश्चिमी राजस्थान का यह इलाका चमन बनने लगा है. राजस्थान के बाड़मेर में विकास 2013 से पहले बेहद सुस्त रफ्तार में था. लेकिन रिफाइनरी प्रोजेक्ट के चलते पचपदरा और आसपास के क्षेत्र की तस्वीर और तकदीर पूरी तरह से बदल गई है. सड़कों का जाल हो या फिर आवासीय प्रोजेक्ट और होटल इंडस्ट्री का विकास, रोजगार के नए साधन बन रहे हैं.
राजस्थान का नया भाग्यविधाता बनेगा इलाका
माना जा रहा है कि इस प्रोजेक्ट शुरू होने के बाद राजस्थान का ये मारवाड़ इलाका, जो हमेशा बेहद पिछड़ा रहा है, राजस्थान का नया भाग्यविधाता बन जाएगा जाएगा. यही वजह है कि बाड़मेर की रैली में PM मोदी ने रोजगार के मुद्दे के नाम पर रिफाइनरी का पुरजोर तरीके से जिक्र कर कांग्रेस पर हमला बोला और अगले साल भी पार्टी का उद्घाटन करने का वादा कर स्थानीय युवाओं की नब्ज को भी छुने की कोशिश की. मोदी की रैली के बाद से बाड़मेर जैसलमेर जोधपुर में रिफाइनरी प्रोजेक्ट अब बड़ा चुनावी मुद्दा बन गया है. ये अलग बात है कि इसका क्रेडिट लेने की कोशिश एक कांग्रेस और भाजपा नेता अपने अपने तरीके से करेंगे.