पिछड़ा वर्ग आयोग का कहना है कि कर्नाटक सरकार ने सभी मुस्लिम समुदायों को OBC में शामिल कर लिया है. मतलब यह है कि कर्नाटक में अब मुसलमानों को सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण दिया जा रहा है. लोकसभा चुनाव से पहले ये ‘मुस्लिम आरक्षण’ का मुद्दा तूल पकड़ता जा रहा है.
वहीं प्रधानमंत्री मोदी ने आरोप लगाया कि कांग्रेस ने सभी मुस्लिमों को ओबीसी कोटे में डालकर उन्हें ओबीसी बना दिया और इस समाज के लोगों को मिलने वाला आरक्षण काट दिया. वहीं राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग ने कर्नाटक सरकार से इस फैसले पर स्पष्टीकरण मांगा है.
इस स्पेशल स्टोरी में अच्छे से समझिए आखिर मुस्लिमों को ओबीसी के तहत आरक्षण देने के फैसले पर पूरा विवाद क्या है?
पहले समझिए आरक्षण पर क्या कहता है संविधान
भारतीय संविधान के आर्टिकल 16 में कहा गया है कि सरकारी नौकरी पाने के लिए सभी को समान मौका मिलना चाहिए. किसी के साथ जाति, धर्म, लिंग या जन्मस्थान के आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता. अनुच्छेद 16(4) के तहत राज्य को यह अधिकार मिलता है कि वे सरकारी नौकरियों में उन पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण का प्रावधान करें जिन्हें राज्य की राय में सरकारी सेवाओं में पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं मिल पा रहा है. पिछड़े वर्गों में अनुसूचित जातियां (SC) और अनुसूचित जनजातियां (ST) भी शामिल हैं.
बाला जी बनाम मैसूर राज्य (1963) मामले में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा था कि किसी समुदाय का पिछड़ापन सिर्फ जाति के आधार पर नहीं तय किया जा सकता है. इसमें उनकी गरीबी या वो कहां रहते हैं, इन बातों पर भी विचार करना होगा.
वहीं टी देवदाशन बनाम भारत संघ (1964) मामले में सुप्रीम कोर्ट ने पिछड़े वर्गों की नौकरियों में खाली पदों को अगले साल तक रखने के नियम को असंवैधानिक बताया है. अदालत ने माना कि अगर किसी भी साल में खाली पदों को भरने के कारण आरक्षण 50% से ज्यादा हो जाता है, तो यह नियम संविधान के विरुद्ध है. यह 50% वाला नियम सिर्फ अनुच्छेद 16(4) के अंतर्गत बनाए गए सही आरक्षण पर ही लागू होता है.
मुस्लिमों आरक्षण पर क्या है विवाद?
राजस्थान के टोंक-सवाई माधोपुर लोकसभा क्षेत्र में 23 अप्रैल को पीएम मोदी ने एक जनसभा को संबोधित करते हुए कहा कि कांग्रेस ने धर्म के आधार पर आरक्षण बढ़ाकर मुसलमानों को देने की कोशिश की है. 2004 में जैसे ही कांग्रेस ने केंद्र में सरकार बनाई थी, उसका पहला काम आंध्र प्रदेश में एससी/एसटी आरक्षण को कम करना और मुसलमानों को देना था. जबकि संविधान इसके बिल्कुल खिलाफ है. बाबा साहब अंबेडकर ने दलितों, पिछड़ों और आदिवासियों को आरक्षण का अधिकार दिया था, उसे कांग्रेस धर्म के आधार पर मुसलमानों को देना चाहती है.
#WATCH | Hansraj Gangaram Ahir, Chairperson, National Commission for Backward Classes says, "There is 32% reservation for OBCs in Karnataka. Under this, they have done bifurcation, like Category I, I(B), II(B), III(A), III(B). There are 95 castes including 17 castes of Muslims… pic.twitter.com/WTt4PUukRF
— ANI (@ANI) April 24, 2024
प्रधानमंत्री मोदी ने आगे कहा, आंध्र प्रदेश में एससी/एसटी का आरक्षण करके मुसलमानों को देने का प्रयास एक पायलट प्रोजेक्ट था. इसे कांग्रेस पूरे देश में आजमाना चाहती थी. 2004 से 2010 के बीच कांग्रेस ने चार बार आंध्र प्रदेश में मुस्लिम आरक्षण लागू करने की कोशिश की, लेकिन सुप्रीम कोर्ट की जागरूकता के कारण वह अपने मंशा पूरी कर पाए. 2011 में कांग्रेस ने इसे देशभर में लागू करने की कोशिश भी की थी. कांग्रेस ने संविधान और बाबा साहेब अम्बेडकर की परवाह नहीं की. राजनीति और वोट बैंक के लिए कांग्रेस ने इतने प्रयास किए, ये जानते हुए भी कि ये सब संविधान की मूल भावना के खिलाफ हैं.
आंध्र प्रदेश में मुसलमानों को आरक्षण क्यों नहीं दे सकी कांग्रेस?
आंध्र प्रदेश मुस्लिम कोटा लागू करने वाला पहला राज्य है. अविभाजित आंध्र प्रदेश (तेलंगाना सहित) में मुसलमानों के लिए आरक्षण का प्रस्ताव पहली बार 1993-1994 में दिया गया था जब कोटला विजयभास्कर रेड्डी के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने एक अल्पसंख्यक कल्याण मंत्रालय की स्थापना की थी. अगस्त 1994 में एक सरकारी आदेश जारी किया गया जिसमें मुसलमानों और 14 अन्य जातियों को शैक्षणिक संस्थानों व सरकारी नौकरियों में 5% आरक्षण दिया गया. इसके बाद 1994 और 1999 के चुनावों में कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा था, इसलिए यह आरक्षण लागू नहीं हो सका.
2004 में कांग्रेस पार्टी ने चुनाव में मुस्लिम समुदाय के लिए 5% आरक्षण देने का वादा किया था. राज्य में कांग्रेस सरकार बनने के 56 दिनों के भीतर ही वाईएस राजशेखर रेड्डी ने वादे को पूरा करते हुए मुसलमानों को 5% आरक्षण देने के आदेश जारी कर दिए. मुसलमानों को मौजूदा कैटेगरी (ए से डी तक) के अलावा एक नई कैटेगरी-E बनाकर ओबीसी लिस्ट में शामिल किया गया. इस तरह राज्य में कुल आरक्षण 51% हो गया था. मौजूदा आरक्षण ओबीसी कैटेगरी ए से डी के लिए 25%, एससी के लिए 15% और एसटी के लिए 6% बरकरार रखा गया था.
वर्तमान तेलंगाना कांग्रेस सरकार में अल्पसंख्यक मामलों के सलाहकार मोहम्मद अली शबीर के अनुसार, केंद्र में बनी यूपीए सरकार ने इस आरक्षण को पूरा समर्थन दिया. लेकिन कुछ लोगों ने इस फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दायर कर दी. अदालत ने अपने आदेश में सरकार से इस कोटे को 4% तक कम करने के लिए कहा. क्योंकि 5% आरक्षण से पहले से तय की गई 50% आरक्षण की सीमा पार हो रही थी.
इसके बाद 25 मार्च 2010 को एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 4% मुस्लिम कोटा के कार्यान्वयन पर रोक लगा दी. हालांकि, कोर्ट ने आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों (EBCs) की कैटेगरी के तहत उन्हीं 14 वर्गों के लिए आरक्षण को अगले आदेश तक जारी रखने का आदेश दिया. इस मामले को एक संवैधानिक पीठ को भी भेजा गया जो अभी भी इस मामले की सुनवाई कर रही है.
अब समझिए कर्नाटक में मुस्लिम आरक्षण विवाद
कर्नाटक में एचडी देवेगौड़ा की जनता दल की सरकार ने पहली बार साल 1995 में ओबीसी कोटा के तहत मुसलमानों के लिए आरक्षण लागू किया था. दिलचस्प बात यह है कि देवगौड़ा की जेडी(एस) अब भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए की सहयोगी है. देवगौड़ा सरकार ने मुसलमानों को ओबीसी कोटा के भीतर एक विशिष्ट वर्गीकरण 2बी के तहत 4% आरक्षण दिया था.
हालांकि 2023 में कर्नाटक विधानसभा चुनाव के पहले तत्कालीन बीजेपी सरकार ने बड़ा दांव खेलते हुए राज्य में मुसलमानों को दिए गए 4 फीसदी आरक्षण को खत्म कर दिया था. बीजेपी ने इस आरक्षण को लिंगायत और वोक्कालिगा जाति में बराबर-बराबर बांट दिया.
खास बात ये है कि तब राज्य में इस पर कोई खास विवाद नहीं हुआ था. मगर विधानसभा चुनाव में बीजेपी को हारना का सामना करना पड़ा और कांग्रेस एक बार फिर सत्ता में आ गई. अब लोकसभा चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस ने कर्नाटक में सभी मुस्लिमों को ओबीसी में शामिल करके नया विवाद खड़ा कर दिया है.
मुस्लिमों को आरक्षण देकर फंसी कांग्रेस!
कर्नाटक सरकार के आंकड़ों के मुताबिक, कर्नाटक के मुस्लिम समुदायों की सभी जातियों और वर्गों को सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण के लिए पिछड़ा वर्ग (OBC) की लिस्ट में शामिल कर लिया गया है. राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (NCBC) के अनुसार, कर्नाटक राज्य के सभी मुसलमानों को OBC श्रेणी 2B के तहत माना गया है. कर्नाटक में फिलहाल ओबीसी वर्ग के लिए 32 फीसदी आरक्षण है. कुल 883 जातियों और उपजातियों को ओबीसी आरक्षण मिलता है. इसे पांच कैटेगरी 1, 2A, 2B, 3A और 3B में बांटा गया है.
कैटेगरी 1 में कुल 391 जातियां और उपजातियां हैं. इनमें मुसलमानों की 17 जातियां शामिल हैं. इन्हें 4 फीसदी आरक्षण मिलता है.
कैटेगरी 2A में कुल 393 जातियां और उपजातियां हैं. इनमें मुसलमानों की भी 19 जातियां हैं. इन्हें 15 फीसदी आरक्षण दिया जाता है.
कैटेगरी 2B में मुसलमानों की सभी जातियों को शामिल किया गया है. इनके लिए राज्य में 4 फीसदी आरक्षण की व्यवस्था कर दी गई है.
ऐसे ही कैटेगरी 3A में 50 जातियों/उपजातियों को 4% और 3B में 48 50 जातियों/उपजातियों को 5% आरक्षण मिलता है.
पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष हंसराज अहीर ने बताया कि कर्नाटक सरकार से कई बार इस फैसले पर जवाब मांगा गया है लेकिन कुछ सही जवाब नहीं आया. उन्होंने बताया कि कर्नाटक ऐसा राज्य है जहां हर मुस्लिम ओबीसी है. 23 अप्रैल को राज्य सरकार से जवाब आया है उसमें कर्नाटक सरकार ने लिखा है कि मुस्लिम और ईसाई जैसे समुदाय न तो जाति हैं और न धर्म हैं.