कलकत्ता उच्च न्यायालय ने 2010 के बाद जारी किए गए सभी ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) प्रमाणपत्रों को रद्द करने का आदेश दिया है. कोर्ट ने कहा कि सर्टिफिकेट कानून के मुताबिक नहीं दिया गया था. कलकत्ता हाईकोर्ट के आदेश के बाद पश्चिम बंगाल की सियासत गरमा गई है. इस फैसले के तुरंत बाद ही राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने ऐलान कर दिया है कि वह इस फैसले को नहीं मानती हैं. यह बीजेपी का फैसला है और इस फैसले खिलाफ वह अपील करेंगी. राज्य में ओबीसी को आरक्षण दिया जा रहा है और दिया जाता रहेगा. लेकिन कोर्ट के इस फैसले को बीजेपी ने स्वागत किया और कहा कि कलकत्ता उच्च न्यायालय ने ओबीसी उप-श्रेणी के तहत मुस्लिम आरक्षण को रद्द कर दिया है. इससे ममता बनर्जी की मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति खुलकर सामने आ गई है.
इसके साथ ही देश को अन्य राज्यों में ओबीसी को कोटे से मुस्लिमों को आरक्षण दिए जाने के बीजेपी के आरोप पर अब बंगाल में भी नया हथियार मिल गया है. बीजेपी आरोप लगाती रही है कि ओबीसी के लोगों को वंचित कर मुस्लिमों को आरक्षण दिया गया है. इसके पहले बीजेपी ने कर्नाटक में लोकसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस सरकार पर ओबीसी को वंचित कर मुस्लिमों को आरक्षण देने का आरोप लगाया था. अब इसी मुद्दे पर ममता बनर्जी भी बीजेपी के निशाने पर हैं. इस मुद्दे पर पीएम नरेंद्र मोदी से लेकर केंद्रीय गृह मंत्री ने ममता बनर्जी पर निशाना साधा है.
बता दें कि साल 2011 में लेफ्ट फ्रंट को पराजित कर तृणमूल कांग्रेस सत्ता में आयी थी. उसके बाद ममता बनर्जी की सरकार ने अन्य पिछड़े वर्ग की सूची में संशोधन किया और नई सूची बनाई गई. उस समय राज्य सरकार की ओर से जारी अधिसूचना के अनुसार ओबीसी में 42 समुदायों को ओबीसी में शामिल करने की सिफारिश की गई थी, जिनमें से 41 समुदाय मुस्लिम धर्म के थे.
इसी तरह से 11 मई, 2022 को जारी अधिसूचना के अनुसार 35 समुदायों की सिफारिश की गई, जिनमें से 30 समुदाय मुस्लिम धर्म के थे. इस तरह से 77 समुदाय (42+35) को ओबीसी में शामिल करने की सिफारिश की गई थी. इनमें 77 में से 71 समुदाय मुस्लिम समुदाय के थे.
पश्चिम बंगाल में अन्य पिछड़ा वर्ग कौन हैं?
पश्चिम बंगाल में अन्य पिछड़ा वर्ग की सूची में 179 जातियां हैं. और इस लिस्ट को दो कैटेगरी में बांटा गया है. श्रेणी-ए और श्रेणी-बी. श्रेणी ए अति पिछड़ा है. और श्रेणी-बी पिछड़ा है. श्रेणी-ए में 81 जातियां शामिल हैं, जिनमें से 73 जातियां मुस्लिम हैं. इनमें वैद्य मुस्लिम, बबियारी मुस्लिम, मुस्लिम बढ़ई, मुस्लिम दफादार, गायेन मुस्लिम, मुस्लिम जमादार, मुस्लिम कलंदर, कसाई, माझी (मुस्लिम), खानसामा जैसी जातियां शामिल हैं.
श्रेणी-बी में 98 में से 45 जातियां मुस्लिम हैं. श्रेणी-बी में वैश्य कपाली, बंशी बर्मन, बरुजीवी, चित्रकार, दीवान, कर्मकार, कुर्मी, मालाकार, मोइरा, गोला, तेली जैसी जातियां शामिल हैं. पश्चिम बंगाल में सरकारी नौकरियों में पिछड़े वर्गों के लिए 17 प्रतिशत आरक्षण है. इनमें कैटेगरी ए के उम्मीदवारों को 10 फीसदी आरक्षण मिलता है. वहीं श्रेणी-बी के उम्मीदवारों को 7 प्रतिशत आरक्षण मिलता है.
ममता सरकार के फैसले के खिलाफ याचिका
ममता सरकार के इस फैसले के खिलाफ कलकत्ता हाईकोर्ट में मामला दायर किया गया था. कलकत्ता हाईकोर्ट में दायर मामले में कहा गया था कि साल 2010 में एक अंतरिम रिपोर्ट के आधार पर वाम मोर्चा सरकार ने ओबीसी की एक सूची बनाई थी, लेकिन 2011 में तृणमूल सरकार के सत्ता में आने के बाद बिना अंतिम रिपोर्ट के उसने ओबीसी की जो सूची बनाई. वह पश्चिम बंगाल पिछड़ा वर्ग आयोग अधिनियम 1993 के विपरीत थी. परिणामस्वरूप, जो लोग वास्तव में पिछड़े वर्ग के हैं, वे आरक्षण के लाभ से वंचित हैं.
पिछड़ा वर्ग आयोग अधिनियम, 1993 के उल्लंघन का आरोप
इस मामले में 2012 के अधिनियम को रद्द करने के लिए एक याचिका दायर की गई है और 1993 के अधिनियम के अनुसार वास्तविक पिछड़े वर्गों की पहचान करके एक नई ओबीसी सूची तैयार के लिए अदालत से फरियाद की गई. याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि वास्तविक पिछड़ा वर्ग से आने वाले अल्पसंख्यकों को इस कार्य के लिए तृणमूल सरकार द्वारा ओबीसी सूची में शामिल करने से वंचित कर दिया गया है. बुधवार को न्यायमूर्ति तपोब्रत चक्रवर्ती और न्यायमूर्ति राजा शेखर मंथा की पाठ ने याचियाकर्ता के तर्क को स्वीकार करते हुए कहा कि 2010 के बाद बनी सूची1993 के एक्ट के खिलाफ है. कोर्ट ने जिन लोगों को 2010 के बाद ओबीसी प्रमाणपत्र मिला था, वे सभी रद्द करने का आदेश दिया.
कोर्ट ने कहा कि नये अधिनियम 1993 के अनुसार पिछड़े वर्गों की सूची तैयार की जानी है. वह सूची विधानसभा में जायेगी और वहां से अनुमोदन लेना होगा, लेकिन कोर्ट ने यहां नौकरी पाने वाले उन लोगों को राहत दी, जिन्हें इस दौरान ओबीसी सर्टिफिकेट से नौकरियां मिली हैं. कोर्ट ने कहा कि इस फैसले से उन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा.
कोर्ट के फैसले से गरमाई बंगाल की सियासत
Stung by Calcutta High Court’s order scrapping Muslim reservation under OBC sub-quota, Mamata Banerjee, it seems has decided to precipitate a Constitutional crisis.
She refuses to accept the verdict and attacked the judges of the High Court. Calls it a ‘BJP order’ and vows that… pic.twitter.com/op8gCogMcA
— Amit Malviya (मोदी का परिवार) (@amitmalviya) May 22, 2024
हाईकोर्ट द्वारा 2010 के बाद के ओबीसी सर्टिफेकेट को रद्द किए जाने के बाद ममता बनर्जी ने तीखी प्रतिक्रिया जताई. ममता बनर्जी ने साफ कहा कि पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा शुरू किया गया ओबीसी आरक्षण कोटा जारी रहेगा. हमने घर-घर सर्वेक्षण करने के बाद विधेयक का मसौदा तैयार किया था और इसे कैबिनेट और विधानसभा द्वारा पारित किया गया था. उन्होंने इसे बीजेपी का फैसला करार देते हुए कहा कि भाजपा ने केंद्रीय एजेंसियों का उपयोग करके इसे रोकने की साजिश रची है. भगवा पार्टी इतना दुस्साहस कैसे दिखा सकती है? उन्होंने कह कि बंगाल में आरक्षण है और जारी रहेगा.
दूसरी ओर, बीजेपी नेता अमित मालवीय ने इसे लेकर ममता बनर्जी पर हमला बोला. उन्होंने कहा कि ममता बनर्जी की तुष्टिकरण की राजनीति को एक और झटका देते हुए कलकत्ता उच्च न्यायालय ने ओबीसी उप-श्रेणी के तहत मुस्लिम आरक्षण को रद्द कर दिया है. इसने 2010-2024 के बीच जारी किए गए सभी ओबीसी प्रमाणपत्रों को भी अमान्य कर दिया है. जिन लोगों को इसके तहत नौकरी दी गई है, यदि वे अपनी नौकरी बरकरार रखने में कामयाब होते हैं, तो वे किसी भी अन्य लाभ के हकदार नहीं होंगे.
कलकत्ता उच्च न्यायालय द्वारा 2010 के बाद पश्चिम बंगाल में जारी किए गए सभी ओबीसी प्रमाणपत्रों को रद्द करने पर, एनसीबीसी आयोग के अध्यक्ष हंसराज गंगाराम अहीर ने कहा कि रपश्चिम बंगाल में 2010 के बाद सभी ओबीसी प्रमाणपत्रों को रद्द करने का कलकत्ता उच्च न्यायालय का फैसला का हम स्वागत करते हैं. 2023 में हमारी समीक्षा के दौरान, हमने देखा 2010 के बाद 65 मुस्लिम जातियों और 6 हिंदू जातियों को ओबीसी सूची में जोड़ा गया, हमने इस संबंध में एक रिपोर्ट मांगी लेकिन राज्य सरकार ने हमें कोई रिपोर्ट नहीं दी. अदालत का फैसला बिल्कुल सही है और हम स्वागत करते हैं.
कोर्ट के फैसले से प्रेशर में ममता
बता दें कि बंगाल में लोकसभा चुनाव जारी हैं. 42 लोकसभा सीटों में से 26 सीटों पर मतदान हुआ हैं और 16 सीटों पर अगले दो चरणों में मतदान होने बाकी हैं. ये सीटें कोलकाता और कोलकाता से आसपास और दक्षिण बंगाल की हैं. इन इलाकों में मुस्लिमों की बड़ी संख्या हैं. राजनीतिक विश्लेषक पार्थ मुखोपाध्याय कहते हैं कि लोकसभा चुनाव के बीच कलकत्ता हाईकोर्ट के यह फैसला निश्चित रूप से ममता बनर्जी की सरकार के लिए झटका है. दो चरणों में मतदान के पहले निश्चित रूप से यह मुद्दा प्रचार के दौरान उठेगा और ममता बनर्जी बीजेपी पर आरक्षण विरोधी होने का आरोप लगाएंगी, तो बीजेपी मुस्लिमों को आरक्षण देकर ओबीसी को आरक्षण के लाभ से वंचित करने का आरोप लगाएगी. चुनाव के परिणाम पर जो प्रभाव पड़ेगा. वह चुनाव परिणाम के साथ साफ हो जाएगा, लेकिन इतना तय है कि चुनाव के बाद भी यह फैसला ममता बनर्जी को प्रेशर में जरूर रखेगा.