देश की शीर्ष अदालत ने एक सुनवाई के दौरान एससी-एसटी एक्ट को लेकर अहम फैसला सुनाया है. सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस एसआर भट की बेंच का कहना है कि किसी को शर्मिंदा करने के लिए अगर अपमानजनक बातें कही गई हैं या गाली-गलौज की गई है तो इस कृत्य को एससी-एसटी एक्ट की धारा-3 (1) (X) के तहत शामिल नहीं किया जाएगा. धारा को तब ही लागू किया जाएगा जब कोई शख्स SC-ST समुदाय से ताल्लुक रखता है और उन पर जातिसूचक संबंध में अपमानजनक बातें कही गई हों.
अगर किसी को अपमानित करने के लिहाज से मूर्ख, चोर या बेवकूफ जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया गया है, तब यह शर्मिंदा करने की कृत्य में शामिल किया जाएगा. अगर किसी sc-st समुदाय से ताल्लुक रखने वाले शख्स पर इस तरह के शब्दों का इस्तेमाल किया जाता है. तब एससी-एसटी एक्ट की धारा-3 (1) (X) लागू नहीं होगी. एससी-एसटी एक्ट की धारा-18, सीआरपीसी की धारा-438 के अनुसार अगर किसी की गिरफ्तारी की आशंका है तो उसे कोर्ट द्वारा जमानत दिया जा सकता है. एससी-एसटी एक्ट की धारा-3 (1) (X) को लागू करने के जरूरी है कि वह शख्स खुद एससी-एसटी समाज से ताल्लुक रखता हो जिस पर ये टिप्पणी की गई है. इसके अलावा इसमें जातिसूचक शब्दों का इस्तेमाल किया गया हो.
उच्चतम न्यायालय साल 2016 के एक मामले पर सुनवाई कर रहा था जिसमें FIR में एक शख्स पर धारा-3 (1) (X) लगाई गई थी. आरोपी शख्स ने इसके खिलाफ कोर्ट में अपील दायर की थी. आपको बता दें कि धारा-3 (1) (X) जानबूझकर किसी अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के शख्स को सार्वजनिक स्थान पर अपमानित करने और उसके लिए अभद्र भाषा का इस्तेमाल करने के लिए लगाया जाता है. आरोपी शख्स पर लगी इस धारा को सुप्रीम कोर्ट ने रद्द कर दिया है क्योंकि आरोप पत्र और FIR में घटनास्थल पर अन्य लोगों की मौजूदगी नहीं पाई गई.