प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की शुरू की गई पहल ‘मेक इन इंडिया’ का असर अब दिखने लगा है। वित्त वर्ष 2022-23 में रक्षा उत्पादन का मूल्य पहली बार एक लाख करोड़ रुपए के आँकड़े को पार कर गया है। रक्षा मंत्रालय ने इसकी जानकारी दी है।
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले वित्त वर्ष में 1,06,800 करोड़ रुपए का रक्षा उत्पादन हुआ है। इसमें निजी रक्षा उद्योगों के आँकड़े शामिल नहीं है। निजी क्षेत्रों के रक्षा उद्योगों के आँकड़े अभी नहीं मिले हैं। निजी और सार्वजनिक रक्षा क्षेत्रों के उत्पादन को मिला दिया जाए तो यह राशि और भी बढ़ेगी।
अगर पिछले वित्त वर्ष के रक्षा उत्पादनों की बात की जाए तो वर्ष 2022-23 में रक्षा उत्पादन में 12 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। वित्त वर्ष 2021-22 में यह आँकड़ा 95,000 करोड़ रुपए था। रक्षा मंत्रालय ने कहा कि सरकार ने रक्षा औद्योगिक विनिर्माण पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ावा दिया और रोजगार के जबरदस्त अवसर पैदा किए हैं।
रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा, “सरकार रक्षा उद्योगों और उनके संघों के साथ लगातार काम कर रही है ताकि उनके सामने आने वाली चुनौतियों को दूर किया जा सके और देश में रक्षा उत्पादन को बढ़ावा दिया जा सके। व्यापार करने में आसानी के उद्देश्य से कई नीतिगत सुधारों के कारण भारत ने उच्च उत्पादन मूल्य हासिल करने में सफलता हासिल की है।”
बयान में आगे कहा गया है, “नीतिगत सुधारों में एमएसएमई और स्टार्ट-अप को आपूर्ति श्रृंखला में शामिल करना भी शामिल है। MSMEs और स्टार्ट-अप सहित उद्योग, रक्षा डिजाइन, विकास और विनिर्माण में भारत आगे बढ़ रहा है। पिछले 7-8 वर्षों में सरकार द्वारा उद्योगों को जारी किए गए रक्षा लाइसेंसों की संख्या में लगभग 200 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।”
भारत रक्षा प्रोजेक्ट के तहत जंगी जहाज से लेकर पनडुब्बी तक भारत में बना रहा है। स्कॉर्पीन श्रेणी में कलावरी क्लास प्रोजेक्ट-75 के तहत 6 पनडुब्बी का निर्माण किया गया है। इसके तहत पाँच पनडुब्बियों- INS वागीर, INS कलवरी, INS खंडेरी, INS करंज और INS वेला को नौसेना के बेड़े में शामिल किया जा चुका है।
इस प्रोजेक्ट की छठी और आखिरी पनडुब्बी INS वागशीर का 18 मई 2023 से समुद्री परीक्षण शुरू हो गया है। इसे मझगांव डॉक शिपबिल्डर्स लिमिटेड के कान्होजी आंग्रे वेट बेसिन से समुद्र में 20 अप्रैल 2022 को उतारा गया था। परीक्षण पूरे होने के बाद अगले साल यानी 2024 की शुरुआत में इसे भारतीय नौसेना को सौंपा जाएगा।
बताते चलें कि लगभग 9 साल पहले तक भारत रक्षा क्षेत्र का सबसे बड़े आयातक देशों में से एक था। अब भारत करीब 85 देशों को हथियार बेच रहा है। पिछले 7 सालों में देश के रक्षा निर्यात में 10 गुना बढ़ोतरी हुई है। ‘मेक इन इंडिया’ के लक्ष्य को हासिल करने के लिए केंद्र सरकार ने देश में दो रक्षा औद्योगिक गलियारे (DICs) स्थापित किए हैं।
इन दो रक्षा औद्योगिक गलियारों में से एक उत्तर प्रदेश में और दूसरा तमिलनाडु में है। उत्तर प्रदेश डिफेंस इंडस्ट्रियल कॉरिडोर (UPDIC) के लिए आगरा, अलीगढ़, चित्रकूट, झाँसी, कानपुर और लखनऊ की पहचान की गई है। वहीं, तमिलनाडु डिफेंस इंडस्ट्रियल कॉरिडोर (TNDIC) के विकास के लिए चेन्नई, कोयंबटूर, होसुर, सलेम और तिरुचिरापल्ली की पहचान की गई है।
भारत में विकसित ब्रह्मोस मिसाइल, आकाश मिसाइल सिस्टम्स, रडार, डोर्नियर-228, 155 एमएम एडवांस्ड टोड आर्टिलरी गन्स (ATAG), सिमुलेटर, माइन प्रोटेक्टेड व्हीकल्स, आर्मर्ड व्हीकल्स, पिनाका रॉकेट और लॉन्चर, एम्युनिशन, थर्मल इमेजर, बॉडी आर्मर, सिस्टम, लाइन रिप्लेसिएबिल यूनिट्स और एवियॉनिक्स की दुनिया के काफी देशों में डिमांड है।
इसके अलावा, भारत के लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट तेजस, लाइट कॉम्बैट हेलीकॉप्टर और एयरक्राफ्ट कैरियर की माँग भी कई देशों में बढ़ रही है। भारत इनमें से कई हथियारों का निर्यात कर रहा है और कई को निर्यात करने पर विचार कर रहा है। रक्षा मंत्रालय के मुताबिक देश का रक्षा निर्यात भी पिछले वित्त वर्ष में 24% बढ़कर करीब 160 अरब रुपए हो गया है।
गौरतलब है कि हाल ही में रक्षा विभाग ने 928 रक्षा उत्पादों की एक लिस्ट जारी की है, जिन्हें भारत में ही बनाया जाएगा। इसके साथ ही आगामी कुछ वर्षों में इनके आयात पर प्रतिबंध लगाया जाएगा। आयात को कम करने के लिए रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने 928 लाइन रिप्लेसमेंट यूनिट्स (LRU), सब-सिस्टम्स, स्पेयर और कंपोनेंट्स, हाई एंड मटीरियल्स और स्पेयर्स की चौथी लिस्ट जारी की।