इस बार की जनगणना में लोगों के सामाजिक-आर्थिक स्थिति के सटीक डाटा जुटाए जाएंगे। भारत के महापंजीयक (आरजीआइ) के नए कार्यालय जनगणना भवन का उद्घाटन करते हुए गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि जनगणना का डाटा जुटाने से लेकर इसके इस्तेमाल के तरीके में बड़ा बदलाव किया जा रहा है और इसका रास्ता साफ करने के लिए संसद के मानसून सत्र में विधेयक लाया जाएगा।
माना जा रहा है कि इसके बाद ही जनगणना का काम शुरू हो पाएगा। अमित शाह ने देश के समावेशी और सर्वस्पर्शी विकास के लिए जनगणना के सटीक आंकड़े की जरूरत पर बल देते हुए कहा कि इसके लिए पूरी प्रक्रिया में कई अहम बदलाव किये गए हैं और तकनीक का इस्तेमाल भी सुनिश्चित किया है। जनगणना के सटीक आंकड़े जुटाने के लिए उन्होंने अपग्रेडेड आरआरएस मोबाइल एप्लीकेशन को भी लांच किया, जो जियो फेंसिंग की सुविधा से लैस होगा।
इसके कारण जनगणना कर्मी को उन्हें दिये गए ब्लाक में जाकर ही सारा डाटा भरना होग। ब्लाक से बाहर डाटा भरने की स्थिति में साफ्टवेयर तत्काल संबंधित अधिकारी को एलर्ट कर देगा। शाह ने कहा कि इस बार 35 पैरामीटर पर डाटा जुटाए जाएंगे, जिनमें सामाजिक-आर्थिक पैरामीटर भी शामिल हैं। उन्होंने कहा कि गरीबों और जरूरतमंदों की सटीक डाटा के साथ हर योजना बनेगी।
अमित शाह ने जन्म और मृत्यु के पंजीकरण के लिए नए वेब पोर्टल को भी लांच किया। उन्होंने कहा कि जन्म और मृत्यु के महारजिस्ट्रार के रुप में आरजीआइ को ही नामित कर दिया गया है। इससे दो जनगणना के बीच की अवधि में भी देश की जनसंख्या के सटीक आंकड़े उपलब्ध कराने में सहायता मिलेगी। इसके साथ ही जन्म और मृत्यु के आंकड़े को चुनाव आयोग जैसे संस्थाओं के साथ भी साझा किया जाएगा ताकि उनका रियल टाइम में उपयोग किया जा सके।
शाह के अनुसार, इस पोर्टल के सहारे किसी युवा के 18 साल पूरा होते ही वोटर लिस्ट में नाम शामिल कराने के लिए पर्जी भेजा सकेगा। इसी तरह से किसी व्यक्ति की मृत्यु के मामले में उसके परिवार को 15 दिन के भीतर वोटर लिस्ट से नाम हटाये जाने की सूचना दे दी जाएगी। उन्होंने कहा कि रियल टाइम में सटीक आंकड़ों की उपलब्धता से विकास की सटीक योजना बनाने में मदद मिलेगी।
अमित शाह ने कहा कि अभी तक जनगणना के जुटाए गए आंकड़े सटीक नहीं थे और योजना आयोग जैसी विकास का प्लान तैयार करने वाली संस्थाओं के साथ उन्हें समय पर शेयर भी नहीं किया जाता था। विकास का प्लान करने वाली संस्थाओं और आरजीआइ के बीच समन्वय के अभाव और सटीक आंकड़े उपलब्ध नहीं होना देश के विकास की बड़ी बाधा रही।
उन्होंने कहा कि 1981 के बाद से अब तक जनगणना के इतिहास की पुस्तक प्रकाशित की गई है, जिनमें आंकड़े के साथ-साथ उसके इस्तेमाल की पूरी जानकारी उपलब्ध है। जनगणना के सभी प्रकाशन की आनलाइन बिक्री भी शुरू कर दी गई है। इससे सभी संस्थाओं को आंकड़ों का विश्लेषण करने और जरूरत के अनुरूप योजना तैयार करने में मदद मिलेगी।