पिछले साल भारत सरकार ने क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम में बड़े बदलाव करते हुए तीन आपराधिक कानून लागू किए थे। 1860 की आईपीसी को भारतीय न्याय कानून, सीआरपीसी को भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और 1872 के इंडियन एविडेंस एक्ट को भारतीय साक्ष्य संहिता अधिनियम से रिप्लेस किया जाएगा। ये तीनों कानून आगामी 1 जुलाई से लागू हो रहे हैं। इन कानूनों में कई नई धाराएं जुड़ी हैं। खासकर भारतीय नागरिक संहिता लागू होने के बाद अपराधियों की मुसीबत बढ़ने वाली है।
ऊपरी अदालत में नहीं होगी अपील
भारतीय नागरिक संहिता की धारा 417 के तहत कुछ मामलों में सजा मिलने पर अपराधी ऊपरी अदालत के दरवाजे नहीं खटखटा सकेंगे। हाईकोर्ट ने अगर किसी अपराधी को 3 महीने से कम की सजा और 3 हजार रुपये तक का जुर्माना या दोनों लगाया है, तो इसे ऊपरी अदालत में चैलेंज नहीं किया जा सकता है। वहीं सेशन कोर्ट के द्वारा तीन महीने से कम की सजा और 200 रुपये का जुर्माना लगाने पर भी ऊपरी अदालत में अपील नहीं की जा सकेगी। साथ ही मजिस्ट्रेस अगर किसी अपराध में 100 रुपये का जुर्माना लगाते हैं तो इसके खिलाफ भी अपराधी ऊपरी अदालत में नहीं जा सकेगा।
Under the guidance of Union Home Minister @AmitShah, 3 New Criminal Laws – Bharatiya Nyaya Sanhita, 2023, Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita, 2023 and Bharatiya Sakshya Adhiniyam, 2023 – will speed up justice delivery in the country.#AzadBharatKeApneKanoon #NewCriminalLaws #BNS… pic.twitter.com/5CW1Te9HbT
— Ministry of Information and Broadcasting (@MIB_India) June 27, 2024
1. भारतीय न्याय संहिता (BNS) – 1860 में बने इंडियन पीनल कोड की जगह अब भारतीय न्याय संहिता 2023
- यह कानून भारतीय दंड संहिता (IPC) को रिप्लेस करता है. इसमें कुल 358 धाराएं हैं, जो IPC की 511 धाराओं से कम हैं. यह कमी अपराधों की श्रेणीकरण को युक्तिसंगत बनाकर हासिल की गई है.
- BNS में 20 नए अपराधों को जोड़ा गया है, जो तेजी से बदलते समाज की जरूरतों को पूरा करते हैं. इनमें साइबर क्राइम , मानव तस्करी, घरेलू हिंसा, एसिड हमले, और मानहानि जैसे गंभीर क्राइम शामिल हैं.
- गंभीर अपराधों के लिए दंड की सजा को सख्त किया गया है, ताकि अपराधियों को कड़ी से कड़ी सजा देकर अपराधों पर अंकुश लगाया जा सके. साथ ही, कुछ कम गंभीर अपराधों के लिए सामुदायिक सेवा को दंड के रूप में लागू किया गया है, जिसका उद्देश्य अपराधियों का सामाजिक पुनर्वास करना है.
- गंभीर अपराधों में अनिवार्य न्यूनतम सजा का प्रावधान भी किया गया है, ताकि न्याय प्रणाली में एकरूपता आए और पीड़ितों को शीघ्र न्याय मिल सके.
बदल जाएंगी ये धाराएं
एक जुलाई से लागू होने वाले इन नियमों के बाद से जुर्म की कई धाराओं में भी बदलाव देखने को मिलेगा जैसे कि हत्या के लिए आईपीसी की धारा 302 बदलकर 101 हो जाएगी, तो वहीं ठगी करने वाली धारा 420 को अब 316 कर दिया गया है. हत्या के प्रयास में लगने वाली धारा 307 को 109 कर दिया गया है तो वहीं दुष्कर्म के लिए इस्तेमाल होने वाली धारा 376 बदलकर 63 हो जाएगी.
2. भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS)- 1898 में बने सीआरपीसी की जगह अब भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023
- यह कानून दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) का स्थान लेता है. BNSS का उद्देश्य जांच और अभियोजन प्रक्रिया को तेज और अधिक कुशल बनाना है. इसमें पुलिस जांच में देरी को रोकने के लिए सख्त समय सीमाएं निर्धारित की गई हैं. साथ ही, अभियोजन पक्ष को मजबूत बनाने के लिए फॉरेंसिक जांच को अनिवार्य कर दिया गया है.
- इस कानून में जमान प्रक्रिया को भी सुव्यवस्थित किया गया है. अब जमान की अर्जी जल्द से जल्द सुनवाई के लिए आएगी और तर्कसंगत आधारों पर जमान देने का प्रावधान किया गया है.
- पुलिस जांच में मानवाधिकारों के उल्लंघन को रोकने के लिए सख्त प्रावधान किए गए हैं. साथ ही, गवाहों की सुरक्षा पर भी अधिक ध्यान दिया गया है. अभियोजन पेशेवरों और न्यायाधीशों के लिए भी विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाए जाएंगे ताकि जांच और अभियोजन प्रक्रिया में और अधिक दक्षता लाई जा सके.
- पीड़ितों के अधिकारों की रक्षा पर भी बल दिया गया है. कानून में यह प्रावधान किया गया है कि जांच और सुनवाई प्रक्रिया के दौरान पीड़ित को हर स्तर पर कानूनी सहायता और सुरक्षा प्रदान की जाएगी.
3. भारतीय साक्ष्य अधिनियम (BSA)- 1872 में बने इंडियन एविडेंस कोड की जगह अब भारतीय साक्ष्य संहिता 2023
यह कानून भारतीय साक्ष्य अधिनियम (1872) का स्थान लेता है. BSA का उद्देश्य साक्ष्य अधिनियम को आधुनिक बनाने और न्याय प्रणाली में डिजिटल साक्ष्य को स्वीकार्यता प्रदान करना है. इसमें निम्नलिखित महत्वपूर्ण बदलाव शामिल हैं:
- डिजिटल साक्ष्य को वैध सबूत के रूप में स्वीकार किया जाएगा. इसमें इलेक्ट्रॉनिक कम्युनिकेशन, सोशल मीडिया पोस्ट, डिजिटल फुटप्रिंट आदि शामिल हैं.
- फॉरेंसिक साक्ष्य को अधिक महत्व दिया जाएगा. डीएनए प्रोफाइलिंग, फिंगरप्रिंट विश्लेषण और अन्य वैज्ञानिक जांचों के परिणामों को अब मजबूत सबूत माना जाएगा.
- गवाहों की गवाही को रिकॉर्ड करने की प्रक्रिया को डिजिटल बना दिया जाएगा. इससे गवाहों के बयानों में हेराफेरी की संभावना कम हो जाएगी और अभियोजन पक्ष को मजबूत सबूत मिल सकेंगे.
- गवाहों की सुरक्षा के लिए विशेष प्रावधान किए गए हैं. इसमें वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए गवाही देने की सुविधा और गवाहों की पहचान को गोपनीय रखने के उपाय शामिल हैं.
कुर्की का कानून हुआ सख्त
भारतीय नागरिक संहिता की धारा 107 के तहत किसी भी अपराधी की संपत्ति जब्त करने और कुर्की के कानून को सख्ती से लागू किया जाएगा। धारा 107 (1) के अंतर्गत आय से अधिक संपत्ति या आपराधिक गतिविधियों से कमाए जाने वाले पैसे को जब्त किया जा सकता है। इसके लिए एसपी और पुलिस कमिश्नर कोर्ट से कुर्की का आदेश ले सकते हैं।
धारा 107 (2) के तहत अदालत अपराधी को कारण बताओ नोटिस जारी करेगी। अपराधी को 14 दिन के भीतर जवाब देना होगा। इसके बाद संपत्ति कुर्क होगी या नहीं, इसका फैसला मजिस्ट्रेट करेंगे। वहीं अगर आरोपी ने 14 दिन के अंदर जवाब नहीं दिया और कोर्ट में पेश नहीं हुआ तो कोर्ट संपत्ति कुर्क करने का आदेश दे सकती है। यही नहीं मजिस्ट्रेट अपराधी की संपत्ति बांटने का भी आदेश दे सकते हैं। यह प्रक्रिया 60 दिन के भीतर पूरी की जाएगी। धारा 107(6) के तहत अगर बांटने के बाद भी अपराधी की संपत्ति बच जाती है और उसका कोई दावेदार नहीं है तो उस संपत्ति पर सरकार का हक होगा।
कैदियों के लिए राहत
भारतीय नागरिक संहिता में कैदियों के लिए भी नए कानून बने हैं। धारा 479 के तहत अगर किसी अंडर ट्रायल कैदी ने अपनी एक तिहाई सजा काट ली है तो उसे जमानत पर रिहाई मिल सकती है। ठीक इसी तरह उम्र कैद की सजा पाए अपराधी को 7 साल की जेल में भी बदला जा सकता है।