माता-पिता और बुजुर्गों की देखभाल से जुड़े सालों पुराने कानून में सुधार को लेकर केंद्र सरकार फिर से सक्रिय हुई है। संसद के बजट सत्र में वह इसे लेकर एक नया विधेयक पेश कर सकती है, जिसमें माता-पिता और बुजुर्गों को गुजारा भत्ता की सीमा के दायरे से मुक्त करने का प्रस्ताव किया गया है। यानी अब वह बच्चों की हैसियत के मुताबिक उनसे गुजारा-भत्ता मांग सकेंगे।
सजा में मिल सकती है राहत
अभी वह अधिकतम दस हजार तक गुजारा भत्ता पाने के हकदार थे। वहीं माता- पिता व बुजुर्गों को त्यागने या फिर दुर्व्यवहार करने पर दी जाने वाली सजा में बच्चों को कुछ राहत देने का भी प्रस्ताव है। पिछले विधेयक में इस सजा को तीन महीने से बढ़ाकर छह महीने प्रस्तावित किया गया था, लेकिन तैयार किए जा रहे नए विधेयक में इसे एक महीने तक ही प्रतीकात्मक रखने की सिफारिश की गई है।
देखभाल से जुड़े विवादों में आई तेजी
माना जा रहा है कि लंबी सजा से माता-पिता के साथ बच्चों की खटास और बढ़ जाती है। सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय ने बुजुर्गों की देखभाल से जुड़े 2007 के कानून में बदलाव की यह पहल तब की है जब पिछले कुछ सालों में सामाजिक ताने-बाने में बड़े बदलाव देखने को मिल रहा है। इसके चलते माता-पिता व बुजुर्गों की देखभाल से जुड़े विवाद भी तेजी से सामने आ रहे है।
सरकार ने पेश किया था विधेयक
मंत्रालय ने हालांकि इससे जुड़े कानूनों में बदलाव की पहल 2019 से ही शुरू कर दी थी। साथ ही इसे लेकर एक विधेयक भी लोकसभा में पेश किया था, जिसे बाद में संसदीय समिति के पास भेज दिया गया था। इस दौरान समिति की सिफारिशों के आधार पर सरकार ने फिर से एक विधेयक लोकसभा में पेश किया, लेकिन वह भी पारित नहीं हो पाया।
नए विधेयक में क्या होगा?
17वीं लोकसभा का कार्यकाल खत्म होने से विधेयक भी निष्प्रभावी हो गया। ऐसे में मंत्रालय अब फिर से इसे लाने की तैयारी में है। मंत्रालय से जुड़े सूत्रों के मुताबिक नए विधेयक में कई और नई चीजें भी जोड़ी गई हैं, जिसमें गुजारा भत्ता के दायरे को खत्म किया गया है। साथ ही सामाजिक संगठनों से विमर्श के बाद सजा को बढ़ाने के प्रस्ताव को न सिर्फ टाला गया है, बल्कि उसे प्रतीकात्मक रखने का प्रस्ताव किया गया है।
अब दायरे में दामाद, नाती-पोता भी
गुजारा भत्ता के लिए पात्र बच्चों का भी दायरा बढ़ाने का प्रस्ताव किया गया है, जिसमें दामाद, पुत्रवधू, नाती-पोते, पोती-नातिन और अवयस्क बच्चों के विधिक अभिभावकों को भी शामिल किया है। अब तक इस दायरे में सिर्फ बेटा-बेटी और दत्तक बेटा-बेटी शामिल है। इसके साथ ही जिसमें प्रत्येक जिलों में बुजुर्गों की मौजूदगी को मैपिंग करने, मेडिकल सुविधा से युक्त वृद्धाश्रमों और जिला स्तर पर एक सेल गठन करने जैसे प्रस्ताव हैं।