मध्यप्रदेश हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश रोहित आर्य भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गए हैं. न्यायाधीश रोहित आर्य अपने कार्यकाल के दौरान कई बार सुर्खियों में रहे हैं. रोहित आर्य ने रिटायरमेंट के तीन महीने बाद उपमुख्यमंत्री राजेंद्र शुक्ल की मौजूदगी में BJP की सदस्यता ग्रहण कर फिर से सुर्खियां बटोरीं हैं. बीजेपी में शामिल होने के बाद जस्टिस आर्या ने हालांकि यह साफ किया है कि वह चुनाव नहीं लड़ेंगे.
‘दंड संहिता को न्याय संहिता में बदलना बड़ी उपलब्धि’
एक सेमिनार को संबोधित करते हुए जस्टिस आर्य ने कहा कि दंड संहिता को न्याय संहिता में बदलना मौजूदा सरकार की एक बड़ी उपलब्धि है. उन्होंने कहा, ‘हम इसके लिए केंद्र सरकार के आभारी हैं. इससे आने वाले समय में लोगों का जीवन बेहतर होगा, क्योंकि ब्रिटिश शासन के दौरान दंड संहिता भारतीयों पर थोपी गई थी और उन्हें दंडित करने के इरादे से लागू की गई थी. न्याय की भावना हमारे देश में रामराज्य और महाभारत काल में भी थी. अंग्रेज हमारी संस्कृति और आध्यात्म से हिल गए थे, इसलिए उन्होंने शिक्षा पर हमला करते हुए धीरे-धीरे संस्कृत को खत्म कर दिया और अंग्रेजी को बढ़ावा दिया.’
1984 में शुरू किया कानूनी करियर
रोहित आर्य ने 1984 में अपना कानूनी करियर शुरू किया था और 26 अगस्त 2003 को मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय ने उन्हें वरिष्ठ अधिवक्ता के रूप में नामित किया था. उन्हें सिविल, मध्यस्थता, प्रशासनिक, सेवा, श्रम और कर कानूनों में लगभग तीन दशकों का कानूनी अनुभव है. हालांकि, आर्य ने स्पष्ट किया कि उनका चुनाव लड़ने का कोई इरादा नहीं है और वे सिर्फ सार्वजनिक जीवन में रहना चाहते हैं.
‘चुनावी राजनीति में कोई दिलचस्पी नहीं’
उन्होंने कहा, ‘राजनीति मेरी पसंद नहीं है. मुझे चुनावी राजनीति में कोई दिलचस्पी नहीं है और मैं चुनाव लड़ने का इरादा नहीं रखता. मैं सिर्फ सार्वजनिक जीवन में रहना चाहता हूं. भाजपा, एक पार्टी के रूप में, लोगों के लिए मेरे विचारों को वास्तविकता में बदलने में मेरी मदद करेगी. मैं उन्हें कई सुझाव दूंगा. न्यायमूर्ति रोहित आर्य को 12 सितंबर, 2013 को मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया था और 26 मार्च, 2015 को वे स्थायी न्यायाधीश बने.
कई हाईप्रोफाइल केस की सुनवाई की
उन्होंने कई हाई-प्रोफाइल मामलों की अध्यक्षता की, जिसमें 2021 में कॉमेडियन मुनव्वर फारुकी और नलिन यादव को जमानत देने से इनकार करना शामिल है. इन दोनों पर इंदौर में नए साल के कार्यक्रम के दौरान धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने का आरोप था. बाद में सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले को पलटते हुए फारुकी को जमानत दे दी थी.
इस आदेश से हुआ था विवाद
साल 2020 में, जस्टिस आर्य ने एक विवादास्पद जमानत आदेश की वजह से भी सुर्खियां बटोरीं थी. जिसमें छेड़छाड़ के एक मामले में आरोपी को इस शर्त पर जमानत दी गई थी कि वह रक्षा बंधन पर शिकायतकर्ता के सामने पेश हो ताकि वह उसकी कलाई पर ‘राखी’ बांध सके. इस फैसले की काफी आलोचना हुई और बाद में सुप्रीम कोर्ट ने इस आदेश को पलट दिया था.