तमिलनाडु में दलितों के वर्षों के संघर्ष के बाद आखिरकार मंदिर में प्रवेश की अनुमति मिल गई है। सोमवार (12 अगस्त 2024) की रात को 100 से ज़्यादा दलित परिवारों ने तमिलनाडु के पुडुकोट्टई के कुलवाईपट्टी गाँव में स्थित भगवती अम्मा मंदिर में प्रवेश किया। पिछड़े वर्ग के लोगों ने दलितों को इस मंदिर में प्रवेश से वंचित कर दिया था।
दरअसल, पिछले साल अक्टूबर में आयोजित एक शांति बैठक और स्थानीय अधिकारियों के प्रयासों के बाद यह सफलता मिली है। 12 अगस्त को दलित समुदाय के 100 से ज्यादा लोगों ने ना सिर्फ इस प्रसिद्ध मंदिर में प्रवेश किया, बल्कि पोंगल पकाने और करगम ले जाने सहित कई अनुष्ठान भी किए। इस मंदिर में प्रवेश के दलित समुदाय के लोग वर्षों से माँग कर रहे थे।
दलित समुदाय के एक सदस्य शक्तियारथिनम ने कहा, “कई सालों के संघर्ष के बाद हमने आखिरकार पूजा करने के अपने अधिकार का प्रयोग किया। हालाँकि 7 साल पहले मंदिर के अभिषेक के दौरान हमसे सलाह ली गई थी, लेकिन जातिगत पूर्वाग्रह के कारण हमारे योगदान को अस्वीकार कर दिया गया था।”
एक अन्य ग्रामीण इलियाराजा ने बताया कि दलितों के प्रवेश के दिन पुजारी आदि अनुपस्थित थे। उन्होंने कहा, “हम सरकार के हिंदू धार्मिक एवं धर्मार्थ बंदोबस्ती विभाग से एक पुजारी की माँग करेंगे, जो दलितों की उपस्थिति का सम्मान करता हो।” दरअसल, मद्रास हाई कोर्ट के हाल के आदेश के बाद दलितों ने अरनथांगी के पास कामाक्षी अम्मा मंदिर में मंडागापडी अनुष्ठान में भाग लिया।
बता दें कि पिछले साल जनवरी में दलितों के करीब 300 पुरुष, महिलाएँ और बच्चे को पूरी पुलिस सुरक्षा के साथ मंदिर में प्रवेश किया गया। इन्हें मंदिर में नहीं घुसने दिया जाता है। तिरुवन्नामलाई के थंडारामपट्टू में मुथु मरियम्मन मंदिर हिंदू धार्मिक और धर्मार्थ बंदोबस्ती बोर्ड के अंतर्गत आता है। दलित परिवारों को पिछले 80 वर्षों से मंदिर में प्रवेश की अनुमति नहीं दी गई थी।