हाल ही में केरल हाई कोर्ट ने एर्नाकुलम और पलक्कड़ के जिला कलेक्टरों को मलंकारा ईसाई के 6 चर्चों को अपने कब्जे में लेने का निर्देश दिया है। दरअसल, मलंकारा ईसाई के दो गुटों- जैकोबाइट और ऑर्थोडॉक्स, के बीच इनको लेकर लंबे समय से विवाद चल रहा था। हाई कोर्ट ने यह आदेश ऑर्थोडॉक्स गुट के दो पादरियों (याचिकाकर्ता) द्वारा दायर अवमानना याचिका पर दी।
केरल हाई कोर्ट के जज वीजी अरुण ने न्यायालय के 2022 के निर्देशों की घोर अवज्ञा की आलोचना की। इन निर्देशों में मलंकारा ऑर्थोडॉक्स चर्च (ऑथोडॉक्स गुट) के सदस्यों को इन चर्चों में प्रवेश करने और उन्हें शांतिपूर्वक ढंग से प्रार्थना करने की अनुमति दी गई थी। जैकोबाइट ईसाइयों ने ऑर्थोडॉक्स ईसाइयों को चर्च में घुसने से रोक देते थे।
न्यायाधीश ने कहा कि उनके पास जिला कलेक्टरों को इन चर्चों का कब्ज़ा अपने हाथ में लेने को कहने के सिवाय कोई विकल्प नहीं है। अदालत ने कहा, “आधिकारिक प्रतिवादियों के अड़ियल रवैए और पार्टी प्रतिवादियों (जैकबाइट गुट) द्वारा निर्देशों की अवहेलना के कारण इस अदालत के पास अवमाननापूर्ण कृत्यों को रोकने के लिए निर्देश जारी करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है।”
राज्य सरकार ने कोर्ट को बताया कि बुजुर्ग पुरुषों, महिलाओं और बच्चों सहित जैकोबाइट गुट के ईसाइयों का एक बड़ा समूह चर्च में घुसने से रोकता है। सरकार ने कहा कि उसने कोर्ट के निर्देशों को लागू करने के लिए ईमानदारी से प्रयास किए थे। हालाँकि, जैकोबाइट्स के बड़े आंदोलन के कारण उसे पीछे हटना पड़ा। कोर्ट को बताया गया कि सरकार के हस्तक्षेप से जानमाल का नुकसान हो सकता है।
जैकोबाइट गुट के सदस्यों ने कोर्ट से कहा कि चर्च को ऑर्थोडॉक्स गुट को नहीं सौंपा जा सकता है। कोर्ट ने उनकी आपत्तियों को खारिज कर दिया और एर्नाकुलम के जिला कलेक्टर को तीन चर्चों- ओडक्कली स्थित सेंट मैरी ऑर्थोडॉक्स चर्च, पुलिंथानम स्थित सेंट जॉन्स बेस्फैज ऑर्थोडॉक्स सीरियन चर्च और मझुवन्नूर स्थित सेंट थॉमस ऑर्थोडॉक्स सीरियन चर्च का कब्जा अपने हाथ में लेने का आदेश दिया।
वहीं, पलक्कड़ के जिलाधिकारी को मंगलम डैम स्थित सेंट मैरी ऑर्थोडॉक्स चर्च, एरिकिनचिरा स्थित सेंट मैरी ऑर्थोडॉक्स सीरियन चर्च और चेरुकुन्नम स्थित सेंट थॉमस ऑर्थोडॉक्स सीरियन चर्च की कमान अपने हाथ में लेने को कहा। दोनों कलेक्टरों को 30 सितंबर 2024 तक इसकी अनुपालन रिपोर्ट दाखिल करने का आदेश दिया गया है। इसी दिन मामले की अगली सुनवाई होगी।
केरल हाई कोर्ट ने इस इन चर्चों को कब्जा में लेने के दौरान कानून-व्यवस्था को लेकर दोनों जिलों के पुलिस प्रमुखों को भी निर्देश दिए हैं। कोर्ट ने इन दोनों जिलों के पुलिस प्रमुखों को कहा गया है कि वे अधिग्रहण में सहायता के लिए पर्याप्त संख्या में पुलिस बल तैनात करें, ताकि कोर्ट के आदेशों को बिना देरी के लागू किया जा सके।
क्या है ऑर्थोडॉक्स एवं जैकोबाइट गुट के बीच विवाद
दरअसल, ऑर्थोडॉक्स और जैकोबाइट गुट शुरू में एक ही चर्च का हिस्सा थे, लेकिन चर्च की निष्ठा को लेकर दोनों के बीच मतभेद हो गया और दोनों अलग हो गए। ऑर्थोडॉक्स गुट ने केरल के एक बिशप (मलंकरा मेट्रोपोलिटन) के प्रति अपनी निष्ठा की प्रतिज्ञा की, जबकि जैकोबाइट गुट एंटिओक के पैट्रिआर्क को अपना धार्मिक प्रमुख मानता है।
मतभेद के बाद दोनों गुटों में इस बात पर विवाद शुरू हो गया कि केरल में विभिन्न चर्चों का प्रशासन किस गुट को सौंपा जाना चाहिए। मतभेद आखिरकार विभाजन में बदल गया और यह विवाद अंततः सुप्रीम कोर्ट तक पहुँच गया। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कुछ निर्देश भी दिए थे। यह केस के.एस. वर्गीस बनाम सेंट पीटर्स एंड पॉल्स सीरियन ऑर्थोडॉक्स चर्च के नाम से जाना जाता है।
साल 2017 में के.एस. वर्गीस बनाम सेंट पीटर्स एंड पॉल्स सीरियन ऑर्थोडॉक्स चर्च एवं अन्य मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कई विवादित मुद्दों पर ऑर्थोडॉक्स चर्च के पक्ष में फैसला दिया था। इसके लिए सुप्रीम कोर्ट ने साल 1934 में तैयार किए गए एक दस्तावेज़ (1934 का संविधान) पर भरोसा किया और अपने फैसले का आधार इसे बनाया।
अपने फैसले में शीर्ष अदालत ने यह भी कहा था कि जैकोबाइट गुट द्वारा तैयार किए गए साल 2002 के दस्तावेज़ द्वारा चर्चों को चलाने की समानांतर प्रणाली स्थापित नहीं की जा सकती थी। हालाँकि, ऑर्थोडॉक्स गुट ने तब से सुप्रीम कोर्ट के साल 2017 के आदेश को लागू करने में विफलता की बार-बार शिकायत की।
ऐसी ही एक याचिका पर साल 2022 में केरल हाई कोर्ट के सिंगल बेंच जज ने पुलिस को निर्देश दिया कि वह याचिकाकर्ताओं (ऑर्थोडॉक्स गुट) को इन चर्चों में शांतिपूर्वक प्रवेश कराने और उनकी धार्मिक सेवाएँ संचालित करने के लिए जरूरी सहायता करे। इसके बावजूद जैकोबाइट गुट द्वार उन्हें चर्चों में नहीं घुसने दिया जा रहा था। इसलिए ऑर्थोडॉक्स याचिकाकर्ताओं ने हाई कोर्ट का रूख किया।