केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने शुक्रवार को अपने निवास पर छत्तीसगढ़ के नक्सल हिंसा के पीड़ितों से मुलाकात की. बस्तर शांति समिति की ओर से यहां 55 हिंसा पीड़ित पहुंचे. सभी ने अपना-अपना दर्द सुनाया. इस मुलाकात के बाद अमित शाह ने बस्तर शांति समिति बैनर के तहत बनाई गई एक डॉक्यूमेंट्री भी अपने सोशल मीडिया हैंडल एक्स पर शेयर की. डॉक्यूमेंट्री को शेयर करते हुए केंद्रीय गृहमंत्री ने लिखा- “नक्सल हमलों से प्रभावित होने वाले लोगों की अंतहीन पीड़ा और दर्द को बताती यह डॉक्यूमेंट्री सभी को देखनी चाहिए.” इसमें पूरे इलाके के दर्द को महसूस किया जा सकता है.
नक्सलवाद का दंश… सुनो नक्सल हमारी बात… की आवाज उठाती इस डॉक्यूमेंट्री को शेयर करते हुए अमित शाह ने मानवाधिकार की आवाज बुलंद करने वालों पर भी निशाना साधा. उन्होंने लिखा- “मानवता के दुश्मन नक्सलवाद ने कैसे इन लोगों के जीवन को उजाड़ दिया. इनका यह दुःख ह्यूमन राइट्स का एक तरफा शोर मचाने वाले लोगों के दोगलेपन को भी दर्शाता है.”
नक्सल हमलों से प्रभावित होने वाले लोगों की अंतहीन पीड़ा और दर्द को बताती ‘बस्तर शांति समिति’ द्वारा बनाई गई यह डॉक्यूमेंट्री सभी को देखनी चाहिए।
मानवता के दुश्मन नक्सलवाद ने कैसे इन लोगों के जीवन को उजाड़ दिया…इनका यह दुःख ह्यूमन राइट्स का एक तरफा शोर मचाने वाले लोगों के… pic.twitter.com/hOWhQQELTw
— Amit Shah (@AmitShah) September 20, 2024
नक्सली समर्पण करें – शाह
केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने इसी के साथ नक्सलियों से आत्म समर्पण करने की अपील की. उन्होंने कहा कि नक्सली हिंसा का रास्ता छोड़ें और मुख्यधारा में शामिल हों. उन्होंने कहा कि पीएम मोदी की सरकार बस्तर के 4 जिलों को छोड़ कर पूरे देश में नक्सलवाद को खत्म करने में सफल रही है. इसी के साथ उन्होंने कहा कि 31 मार्च, 2026 तक देश की जमीन से नक्सलवाद को जड़ से खत्म कर दिया जाएगा.
क्या है इस डॉक्यूमेंट्री में?
यह डॉक्यूमेंट्री बस्तर क्षेत्र में नक्सलवाद की पीड़ा झेल रहे लोगों का दर्द बयां करती है. डॉक्यूमेंट्री में नक्सली हमलों के शिकार लोगों को दिखाया गया है. नक्सली हमले में कोई अपना पैर गंवा चुका है तो कई अपनी आंखें खो चुका है. पीड़ितों के दर्द भरे बयान से जाहिर होता है नक्सलियों ने इनके साथ भयानक जुल्म और ज्यादती की. डॉक्यूमेंट्री में नक्सल प्रभावित बस्तर क्षेत्र की वीरानी और उजाड़ को भी दर्शाया गया है.
डॉक्यूमेंट्री में मानवाधिकार के लिए आवाज उठाने वाले बुद्धिजीवियों पर भी तंज कसा गया है. डॉक्यूमेंट्री सवाल पूछती है आखिर क्यों इन लोगों के साथ हुए जुल्म के बारे में ना तो उचित तरीके से कभी लिखा गया है और ना ही ठीक से पूरी तरह दिखाया गया.