अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा और राजनैतिक उथलपुथल से जूझ रहे बांग्लादेश में एक बार फिर से मुस्लिम भीड़ ने हिन्दुओं और बौद्धों को निशाना बनाया है। यह हमला गुरुवार (19 सितंबर 2024) को चटगाँव डिवीजन में किया गया है। इस हिंसा में 200 से अधिक मकानों व दुकानों को आग लगा दी गई है। एक बौद्ध मंदिर को तो क्षतिग्रस्त कर डाला गया है। मुस्लिम भीड़ द्वारा किए गए इस हमले में मरने वालों की आधिकारिक तौर पर तादाद 3 बताई जा रही है। हालाँकि असल संख्या इससे अधिक होने का अनुमान है।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, यह घटना चटगांव के दिघिनाला और खगराचारी सदर इलाके में हुआ है। बताया जा रहा है कि बुधवार (18 सितंबर) को खगराचारी इलाके में मोहम्मद मामून नाम के अपराधी की हत्या कर दी गई थी। उस पर पहले से 17 केस दर्ज थे। यह हत्या तब हुई जब मोहम्मद मामून एक बाइक चुराने की कोशिश कर रहा था। मोहम्मद मामून की हत्या के बाद साजिशन एक अफवाह उड़ाई गई कि जनजातीय लोगों ने बंगालियों पर हमला बोल कर एक व्यक्ति को मार दिया है।
अपराधी की मौत का बदला हिन्दुओं और बौद्धों से
इस अफवाह को उड़ाने के लिए मस्जिदों का भी दुरूपयोग किया गया। इस अफवाह ने आग में घी का काम किया। अपराधी मामून की मौत के विरोध में ‘बंगाली छात्र परिषद’ नाम के संगठन ने गुरुवार (19 सितंबर) की शाम जुलूस निकाला। इसी जुलूस में शामिल लोगों ने बौद्ध चकमाओं और हिन्दू त्रिपुरियों के खिलाफ हिंसा की शुरुआत की। मुस्लिम भीड़ घरों से निकल कर बौद्धों और हिन्दुओं पर हमला करने लगी।
हमले में इनके घरों और दुकानों को निशाना बनाया गया। लगभग 200 मकानों व दुकानों में तोड़फोड़ और आगजनी की गई। आगजनी की चपेट में बौद्धों का एक मंदिर भी आ गया। बच्चे, बूढ़े और महिलाएँ जो भी हिंसक भीड़ के आगे पड़ा, उसकी बेरहमी से पिटाई की गई। कुछ ही देर में खगराचारी में शुरू हुई ये हिंसा पास के जिले रंगमती में फ़ैल गई। हिंसक भीड़ के हमले में कई लोगों की मौत हो गई।
हिंसा भड़काने के लिए मस्जिदों का इस्तेमाल
आधिकारिक तौर पर मृतकों की तादाद 3 बताई जा रही है। इन तीनों में 20 वर्षीय जुनान चकमा, 60 वर्षीय धनंजय व 30 साल के रुबेल त्रिपुरा शामिल हैं। हालाँकि स्थानीय निवासियों का दावा है कि मृतकों की तादाद इस से कहीं अधिक है। ये तीनों बांग्लादेश के अल्पसंख्यक समुदाय से हैं। हिंसक भीड़ गुरुवार की रात लगभग 8:30 तक आतंक मचाती रही और अगले दिन शुक्रवार (20 सितंबर) को भी मुस्लिम भीड़ की हिंसा जारी रही।
सामने आई जानकारी के अनुसार रंगमती इलाके में भी अल्पसंख्यकों पर हमले के लिए भीड़ को एक मस्जिद से उकसाया गया था। इस दौरान एक व्यक्ति को चकमा व त्रिपुरी समुदाय के सदस्यों को पीछे हटने वरना गंभीर परिणाम भुगतने का फरमान सुनाते देखा जा सकता है। एक पीड़ित अल्पंसख्यक ने इस हमले पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा, “कई अन्य लोगों की ही तरह, हम भी उस इलाके से भाग निकले। जंगल में हमारा कोई ठिकाना नहीं था क्योंकि वहाँ से भी आग और धुआँ देखा जा सकता था।”
हमले के विरोध में हिन्दुओं की रैली
इस हिंसा और नरसंहार के विरोध में बांगलदेश के अल्पसंख्यकों ने भी जुलूस निकाला। लगभग 40 हजार की तादाद में बौद्ध चकमा और त्रिपुरी हिन्दुओं ने मिल कर खगराचारी में जुलूस निकाला। इस जुलूस का नाम उन्होंने “पहचान के लिए मार्च” दिया। इस रैली में शामिल राइट्स एंड रिस्क एनालिसिस ग्रुप (RRAG) के निदेशक सुहास चकमा ने बताया, “बांग्लादेश के सुरक्षा बलों ने दिघिनाला सदर में अल्पसंख्यकों की दुकानों व घरों को जलाने का समर्थन किया।” बताया जा रहा है कि दिघिनाला सदर से सभी बौद्ध पलायन कर गए हैं।
अल्पसंख्यकों की प्रताड़ना के इस अपराध पर चिंता जताते हुए सुहास चकमा ने इसको संयुक्त राष्ट्र व अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग में उठाने का ऐलान किया है। फिलहाल प्रशासन ने प्रभावित इलाकों में कर्फ्यू लगा दिया है। जिस खागराचारी और रंगमती की यह घटना है वह पहाड़ी इलाका है। जहाँ कई जनजातियाँ रहती हैं जिसमें चकमा, मरमा, त्रिपुरी, चक, बोम, लुशेई और खुमारी आदि प्रमुख हैं।
पीड़ितों को ही हिंसक बताकर भारत के खिलाफ बड़ी साजिश
इस हिंसा के बाद प्रभावित इलाके की जमीमी पड़ताल कर के जानकारी जुटाई। चटगाँव की एक हिन्दू महिला ने बताया कि उनके खुद के घर पर 5 अगस्त 2024 को मुस्लिम भीड़ हमला कर चुकी है। ऐसे हमलों को पीड़िता ने बांग्लादेश में आम बात बताया। पीड़िता का दावा है कि बौद्धों और हिन्दुओं के साथ अन्य अल्पसंख्यकों पर बार-बार इस्लाम कबूल करने का दबाव बनाया जाता है। कई गरीब अल्पसंख्यक पैसों या नौकरी आदि के लालच में फँस कर धर्मान्तरित भी हो चुके हैं।
पीड़िता ने आगे बताया कि जो भी अल्पंसख्यक धर्म परिवर्तन से इंकार करता है उनको डरा-धमका कर मजबूर कर दिया जाता है। ऐसी घटनाओं को बंगाली बनाम आदिवासी कह कर दबाने की कोशिश करने वालों की भी पीड़िता ने निंदा की। महिला का दावा है कि ऐसे हमले मुस्लिम भीड़ के मज़हबी चरमपंथ का परिणाम होते हैं। सुरक्षा के मद्देनजर हम उस पीड़िता का नाम सार्वजनिक नहीं कर रहे हैं।
19 सितंबर की हिंसा के एक अन्य पीड़ित ने सम्पर्क किया। वह घर से भाग कर किसी सुरक्षित स्थान पर छिपा हुआ है। पीड़िता का दावा है कि स्थानीय स्तर पर चकमा और त्रिपुरी लोगों के समूह को हिंसक साबित करने की भी साजिश रची जा रही है जिस से इनके खिलाफ प्रशासन भी कार्रवाई करे। इसी साजिश का एक हिस्सा यह भी है कि वो बौद्धों और हिन्दुओं को हिंसक बता कर भारत को इसका जिम्मेदार बता कर बदनामी करें।
जातीय संघर्ष बता कर हमलावरों को बांग्लादेशी मीडिया का कवर फायर
इस मज़हबी चरमपंथ से उपजी हिंसा को बांग्लादेश की मीडिया जातीय संघर्ष बता कर हमलावरों को कवर फायर जैसी देती दिखाई दे रही है। बांग्लादेशी मीडिया की मानें तो यह बंगालियों और जनजातियों के बीच लड़ाई है। इन खबरों में अल्पसंख्यकों के पलायन और बौद्ध मंदिर में आगजनी की वजह का जिक्र जानबूझ कर नहीं किया गया है। इससे पहले भी शेख हसीना सरकार के पतन के बाद बांग्लादेशी मीडिया वहाँ हुए हिन्दुओं पर भीषण अत्याचारों को फर्जी और बढ़ा-चढ़ा कर कही जा रही बात घोषित कर चुकी है।
बताते चलें कि भारत से विभाजन के बाद से ही पहले पूर्वी पाकिस्तान और अब बांगलादेश में अल्पसंख्यक निशाने पर हैं। यहाँ धर्मान्तरण से लेकर जमीन कब्ज़ा लेने और पलायन की घटनाएँ आम हैं। शेख हसीना सरकार के पतन के बाद बांग्लादेश के मंदिरों, घरों और दुकानों आदि को मिल कर लगभग 205 हमले हुए हैं। इसी हिंसा में खुलना शहर के सोनाडांगा में ‘ईशनिंदा’ के आरोप में उत्सव मंडल की मुस्लिम भीड़ द्वारा पीट कर हत्या, गणेश विसर्जन जुलूस पर हमला मुस्लिम छात्रों द्वारा 60 हिंदू शिक्षकों, प्रोफेसरों और सरकारी अधिकारियों को इस्तीफे के लिए मजबूर करना जैसे अपराध भी शामिल हैं। मानवाधिकार कार्यकर्ता और निर्वासित बांग्लादेशी ब्लॉगर असद नूर का दावा है कि अल्पसंख्यक समुदाय को अब ‘जमात-ए-इस्लामी’ में शामिल होने के लिए मजबूर किया जा रहा है।