केंद्र ने कारपोरेट क्षेत्र की एक बड़ी मांग को स्वीकार करते हुए 31 दिसंबर 2030 तक देश में लगने वाले सभी ग्रीन हाइड्रोजन व ग्रीन अमोनिया संयंत्र को अंतर-राज्यीय ट्रांसमिशन शुल्क (आइएसटीएस) से 25 वर्षों तक राहत देने का फैसला किया है।
इस फैसले के बाद पेट्रोलियम, स्टील, सीमेंट जैसे औद्योगिक क्षेत्रों की बड़ी कंपनियों को ग्रीन हाइड्रोजन व ग्रीन अमोनिया प्लांट लगाने के लिए सस्ती दर पर सौर, पवन व हाइड्रो संयंत्रों से बिजली मिल सकेगी। बिजली मंत्रालय की ओर से जारी अधिसूचना के अनुसार, एक जनवरी 2030 के बाद लगने वाले संयंत्रों को मिलने वाली छूट में धीरे-धीरे कमी की जाएगी।
केंद्र सरकार पहले ही घोषणा कर चुकी है कि बड़े उद्योगों में ग्रीन हाइड्रोजन या ग्रीन अमोनिया के इस्तेमाल को अपनाया जाएगा। इसे पर्यावरण के लिए ज्यादा अनुकूल माना जाता है। अब ये प्लांट लागत की परवाह किए बगैर सोलर या हाइड्रो प्लांट से बिजली खरीदने का समझौता कर सकते हैं। अंतर-राज्यीय ट्रांसमिशन शुल्क नहीं लगने से इन्हें सस्ती दर पर बिजली मिलेगी।
छूट की अवधि खत्म होने के बाद के दो वर्षों तक भी इन्हें आइएसटीएस का सिर्फ 25 प्रतिशत, उसके बाद के दो वर्ष तक 50 प्रतिशत और फिर दो वर्ष के लिए 75 प्रतिशत की छूट मिलेगी। लेकिन यह फायदा उन्हीं संयंत्रों को मिलेगा, जो 31 दिसंबर, 2030 तक ग्रीन हाइड्रोजन या ग्रीन अमोनिया प्लांट स्थापित कर लेती हैं। केंद्र सरकार ने इसी वर्ष जनवरी में 19 हजार करोड़ रुपये की ग्रीन हाइड्रोजन योजना को मंजूरी दी है।
इसके अलावा, 31 दिसंबर 2032 तक स्थापित होने वाले आफशोर पवन ऊर्जा संयंत्रों को 25 वर्षों तक आइएसटीएस नहीं देना होगा। इस अवधि के बाद लगने वाले आफशोर यानी समुद्र तट से दूर लगाए जाने वाले पवन ऊर्जा संयंत्रों को आइएसटीएस में धीरे धीरे छूट समाप्त कर दी जाएगी। यह छूट चार वर्षों में 25-25 प्रतिशत करके समाप्त की जाएगी।