कहने को तो इस बार तुर्किये के राष्ट्रपति चुनाव में दो दलों में टक्कर कांटे की रही, लेकिन अंतत: रेसिप तैयिप एर्दोगन फिर से राष्ट्रपति बन गए। उन्होंने अपने प्रतिद्वंद्वी केलिचडारोहलू, जिन्हें भारत की मीडिया ने ‘तुर्किये का गांधी’ कहकर प्रचारित किया था, उन्हें हराया है। दो दिन पहले एर्दोगन की इस लगातार 11वीं बार जीत की घोषणा हुई थी। हालांकि उनका जीतना कई वर्गों में निश्चित माना जा रहा था, लेकिन पहले दौर के मतदान में उन्हें पूर्ण बहुमत नहीं मिल पाया था। लेकिन अब 53 प्रतिशत मत के साथ वे विजयी घोषित हुए। विपक्षी दल के नेता कमाल केलिचडारोहलू को 47 प्रतिशत मत ही मिले।
तुर्किये की कुर्सी पर एक बार फिर से बैठे एर्दोगन की वापसी के साथ ही उस देश में इस्लामी कट्टरपंथ और मजबूत हुआ है। कारण, एर्दोगन इस्लाम के कट्टरपंथी स्वरूप के पैरोकार हैं और उनके ही आदेश के बाद कानून बदलकर इस्लामी हिजाब पहनकर महिलाएं सरकारी कामकाज करने आती हैं। जबकि उनके प्रतिद्वंद्वी रहे कमाल केलिचडारोहलू सुधारवादी, उन्मुक्त सोच के पश्चिमी देशों से संबंध प्रगाढ़ करने के पैरोकार थे। लेकिन चुनाव परिणाम ने एक बार फिर दिखा दिया कि भूकंप से त्रस्त और तबाह हुए उस देश में एर्दोगन चीजें पटरी पर भले ही न लाए पाए हों, मुद्रास्फीति चरम पर हो, चीजों के दाम आसमान छू रहे हों, लेकिन देश के मुसलमान कट्टरपंथी सोच पर ही चलेंगे। यूं भी एर्दोगन ‘इस्लामी जगत का खलीफा’ बनने का सपना पाले बैठे हैं।
तुर्किये के इन चुनाव परिणामों का असर अंकारा से कहीं दूर तक दिखने वाला है। भौगोलिक तौर पर तुर्किये स्थित है यूरोप और एशिया के बीच। यह उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) का भी सदस्य है। देश पर राष्ट्रपति एर्दोगन का एकछत्र राज है। एर्दोगन की नीतियां कट्टर सोच वालों को भाती हैं, फिर वे चाहे देश के हों या देश के बाहर के। भारत के जम्मू कश्मीर को लेकर इसीलिए वह पाकिस्तान का राग ही दोहराता है।
तुर्किये के इस बार के मतदान में भाग लेने वाली 40 लाख मतदाताओं के सामने इस बार एक विकल्प था देश को शेष दुनिया के साथ ले चलने वाली सुधारवादी और समन्वयवादी राह पकड़ने का, जिससे वह आश्चर्यजनक रूप से करीब आ भी गया था, लेकिन एर्दोगन ने येनकेनप्रकारेण इस्लामवाद को उकसाया और जर्जर अर्थव्यवस्था के बावजूद लोगों को एक सपना दिखाकर चुनाव जीत लिया। कहने वाले कह रहे हैं, और एकाध वीडियो भी सोशल मीडिया पर दिखाई दिए हैं कि एर्दोगन ने चुनाव जीतने के लिए पैसे बांटने से भी गुरेज नहीं किया।
बताया गया है कि तुर्किये के इतिहास में यह पहला ऐसा राष्ट्रपति चुनाव है जिसमें बहुमत की उम्मीद में मतदान दो दौर में हुआ है।