भारत के मशहूर उद्योगपति और टाटा समूह के पूर्व चेयरमैन, रतन टाटा का बुधवार रात 86 साल की उम्र में निधन हो गया। मुंबई के एक प्रमुख अस्पताल में उन्होंने अंतिम सांस ली। उनकी सादगी, जिंदादिली और सामाजिक सेवा के प्रति प्रतिबद्धता ने उन्हें लोगों के दिलों में एक विशेष स्थान दिलाया था।
रतन टाटा ने टाटा समूह को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया और इसके साथ ही शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाओं, ग्रामीण विकास और आपदा राहत कार्यों में महत्वपूर्ण योगदान दिया। वह 26/11 मुंबई आतंकी हमले के समय ताज होटल के कोलाबा छोर पर देखे गए थे, जहां आतंकियों ने ताज होटल समेत कई प्रमुख स्थानों को निशाना बनाया था।
26/11 मुंबई हमला : एक साहसी नेतृत्व
26/11 के हमले में 10 पाकिस्तानी आतंकवादियों ने समुद्र के रास्ते से मुंबई में प्रवेश कर, ताज होटल और छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनस समेत कई स्थानों पर अंधाधुंध गोलीबारी की। उस वक्त रतन टाटा 70 साल के थे और उन्हें होटल के भीतर गोलीबारी के बारे में फोन पर जानकारी दी गई थी। इसके बाद उन्होंने तुरंत होटल के कर्मचारियों से संपर्क करने की कोशिश की, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला।
उन्होंने एक इंटरव्यू में खुलासा किया था कि वह तुरंत अपनी कार लेकर ताज होटल की तरफ बढ़े, लेकिन सुरक्षाकर्मियों ने उन्हें अंदर जाने से रोक दिया। जिसके बाद उन्होंने सुरक्षाकर्मियों और ओपरेशन कर रहे कमांडों से कहा था, “एक भी आतंकी जिंदा नहीं बचना चाहिए और जरूरत पड़े तो पूरी प्रॉपर्टी को ही बम से उड़ा दो।”
हमले के बाद का पुनर्निर्माण और सामाजिक दायित्व
रतन टाटा की इस घटना के बाद ताज होटल को फिर से खोलने की प्रतिबद्धता ने उन्हें एक सच्चे नेतृत्वकर्ता के रूप में स्थापित किया। हमले में घायल हुए और मारे गए लोगों के परिवारों की मदद करने के उनके फैसले ने पूरे देश का दिल जीत लिया। टाटा ने न केवल होटल को फिर से खोला, बल्कि यह भी सुनिश्चित किया कि सभी प्रभावित परिवारों को आर्थिक और मनोवैज्ञानिक सहायता मिले।
आतंकियों के हमले की भयावहता
पाकिस्तान आधारित आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा द्वारा अंजाम दिए गए इस हमले में 166 निर्दोष लोग मारे गए थे, और 300 से अधिक लोग घायल हो गए थे। ताज होटल का पुनर्निर्माण एक प्रतीक बन गया, जिसमें रतन टाटा की संकल्प शक्ति और उनके नेतृत्व कौशल की झलक दिखाई दी।