नवरात्रि का उत्सव पूरे देश में धूमधाम से मनाया जा रहा है। आज शुक्रवार (11 अक्टूबर 2024) को शारदीय नवरात्र का अष्टमी और नवमी का संधि काल है। संधि काल में विशेष पूजा का विधान है। इस अवसर पर माँ दुर्गा के विभिन्न रूपों में से एक माता चामुण्डा का विशेष अनुष्ठान किया जाता है और इस जगत एवं प्राणी मात्र के कल्याण के लिए माता जगत जननी से प्रार्थना की जाती है।
‘संधि’ का अर्थ मिलन बिंदु होता है। ‘संधि पूजा’ नवरात्रि के आठवें और नौवें दिन के मिलन पर किया जाने वाला एक विशेष अनुष्ठान है, जो आठवें दिन के अंत और नौवें दिन की शुरुआत का प्रतीक है। हिंदू शास्त्रों में इस संधिकाल का विशेष महत्व है। इसे बेहद शक्तिशाली और शुभ माना जाता है। संधि पूजा का महत्व बुराई पर अच्छाई, अंधकार पर प्रकाश और अज्ञानता पर ज्ञान की जीत का उत्सव है।
कहा जाता है कि माँ दुर्गा ने अष्टमी और नवमी के संधि काल में ही अत्याचारी राक्षसों का वध किया था। शास्त्रों के अनुसार, अष्टमी तिथि के अंतिम 24 मिनट और नवमी तिथि के शुरुआती 24 मिनट को ‘संधि काल’ के रूप में माना जाता है। यह बेहद पवित्र समय होता है। यह वह समय होता है, जब दुर्गा पूजा का सबसे महत्वपूर्ण अनुष्ठान संपन्न किया जाता है।
ISCKON मंदिर के गौरांग दास ने बताया, “संधि काल में ब्रह्मांड की सबसे अच्छी और सबसे मजबूत ऊर्जा होती है। यह दिव्य नारी शक्ति का उत्सव होता है, जो शक्ति के सभी उपासकों को अधिक शक्ति और ऊर्जा प्रदान करती है। संधि पूजा में भाग लेने वाले लोग अष्टमी की शुरुआत से लेकर नवमी में संधि पूजा तक उपवास करते हैं।”
संधि काल के अनुष्ठान में एक विशाल दीपक या गोलकार थाल में 108 दीये जलाए जाते हैं। 108 दीप जलाना अंधकार पर प्रकाश के आगमन का प्रतीक है। इस दौरान माँ दुर्गा को 108 कमल के और 108 गुड़हल के चढ़ाए जाते हैं, जो जीवन की सुंदरता का प्रतिनिधित्व करते हैं। इस दौरान बेल के 108 पत्तों की माला पहनाई जाती है। इसके साथ ही साड़ियाँ, आभूषण और फल चढ़ाए जाते हैं।
हिंदू शास्त्रों में 108 की संख्या बेहद पवित्र मानी जाती है। यह संख्या आध्यात्मिक पूर्णता और माँ दुर्गा के कई नामों का प्रतीक है। पूजा के दौरान भक्त नकारात्मकता को दूर करने के लिए ‘उलु धूनी’ (जीभ से निकलने वाली आवाज़ें जो बार-बार गाल के एक तरफ से दूसरे तरफ टकराती हैं) देते हैं। इसके साथ ही नकारात्मक ऊर्जा को खत्म करने के लिए शंख बजाया जाता है और पवित्र जल छिड़का जाता है।
कहा जाता है कि देवी माँ ने संधि काल के दौरान ही चंड और मुंड नाम के दो बलशाली राक्षसों का वध किया था। जब माँ दुर्गा राक्षस महिषासुर से युद्ध कर रही थीं, तब उसके सहयोगी चंड और मुंड ने माँ दुर्गा पर पीछे से हमला कर दिया। पीछे से हमला करने पर माँ दुर्गा को बहुत गुस्सा आया। इस गुस्से के कारण उनके चेहरे का रंग नीला पड़ गया।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, तब देवी माँ ने क्रोधित होकर अपनी तीसरी आँख खोली और चामुंडा अवतार लिया और दोनों दुष्ट राक्षसों का वध किया। यह भी मान्यता है कि भगवान श्रीराम ने संधि काल में 108 नीले कमलों से देवी माँ की पूजा की थी और अत्याचारी रावण का वध करने की इच्छा जताई थी। इसके बाद माँ दुर्गा ने भगवान राम को यह आशीर्वाद दिया था।
कहा जाता है कि भगवान राम द्वारा माता की पूजा करने के बाद से ‘संधि पूजा’ की जाती है। इस दिन माँ दुर्गा के उग्र अवतार चामुंडा की संधि पूजा की जाती है। कई जगहों पर इस दौरान बलि देने का भी प्रावधान है। अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग मान्यताओं के अनुसार माँ चामुंडा की पूजा की जाती है। कुछ लोग कद्दू, केला, ककड़ी आदि का बलि के रूप में प्रयोग करते हैं।
संधि काल की समाप्ति के बाद नवमी को माँ दुर्गा की नौवीं एवं अलौकिक शक्ति माँ सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है। मार्कण्डेय पुराण में कहा गया है कि माता के पास अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्रकाम्य, ईशित्व और वशित्व नाम की कुल आठ सिद्धियाँ हैं। माँ सिद्धिदात्री की पूजा से ये सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं। देव पुराण के अनुसार, भगवान शिव ने माँ सिद्धिदात्री की कृपा से सिद्धियाँ प्राप्त की थीं और अर्द्धनारीश्वर कहलाए थे।