सुप्रीम कोर्ट ने नागरिकता कानून, 1955 के भाग 6A को सही ठहराया है। सुप्रीम कोर्ट की संविधान बेंच ने 4:1 के निर्णय से यह फैसला दिया है। नागरिकता कानून का भाग 6A असम के भीतर बांग्लादेश से आने वाले अवैध बांग्लादेशी घुसपैठियों को लेकर लाया गया कानून असम समझौते के तहत बनाया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 1971 के बाद जो भी लोग असम में बांग्लादेश से घुसे हैं, उनको अवैध प्रवासी घोषित माना जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस MM सुन्दरेश, जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस मनोज मिश्रा और जस्टिस जेबी पारदीवाला की बेंच ने बुधवार (17 अक्टूबर, 2024) को यह निर्णय सुनाया। जस्टिस जेबी पारदीवाला ने फैसले से असहमति जताई है।
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में कहा कि असम आंदोलन और राजीव गाँधी की सरकार के बीच हुआ समझौता ‘असम एकॉर्ड’ एक समस्या का समाधान था। उन्होंने कहा कि अवैध शरणार्थियों का आना एक राजनीतिक समस्या बन चुकी थी।
असम एकॉर्ड के बाद संसद ने कानून बनाया था कि 1966 से पहले बांग्लादेश (तब पूर्वी पाकिस्तान) से आए भारतीय मूल के सभी लोग भारतीय नागरिक होंगे जबकि 1966 से 25 मार्च, 1971 के बीच आए लोग नागरिकता लेने के लिए आवेदन कर सकेंगे। इसे 1955 के नागरिकता कानून में 6A के तौर पर जोड़ा गया था।
चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ के साथ बाकी तीन जजों ने पाया कि राजनीतिक समस्या का इस तरह कानूनी समाधान कर दिया गया था और संसद को इस तरह का क़ानून बनाने का अधिकार था। कोर्ट ने उन आपत्तियों को नकार दिया कि संसद को इस तरह का विशेष कानून बनाने का अधिकार नहीं था।
याचिकाकर्ताओं ने कहा था कि इस कानून के जरिए असम को बाकी सीमाई प्रदेशों से अलग रखा था, जो कि ठीक नहीं था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि असम में इस समस्या का प्रभाव कहीं ज्यादा था क्योंकि यहाँ की जनसंख्या अधिक प्रभावित हो रही थी।
बेंच ने पाया कि असम की बांग्लादेश से लगने वाली सीमा पश्चिम बंगाल से कहीं छोटी है, ऐसे में उसके लिए विशेष कानून बनाना ठीक था। बेंच ने याचिकाकर्ताओं का यह ऐतराज भी नकार दिया कि इस क़ानून से संविधान की प्रस्तावना में बताए गए भाईचारे को खतरा होता है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “ऐसे में जब लाखों लोगों को नागरिकता से वंचित करने या किसी समुदाय की जीवन शैली की रक्षा करने के बीच में एक चुनने की दुविधा आती है तो कोर्ट निश्चित रूप से भाईचारे के सिद्धांतों के अंतर्गत नागरिकता देने को प्राथमिकता देगा। अतः याचिकाकर्ताओं की यह दलील खारिज की जाती है।”
सुप्रीम कोर्ट में याचिकर्ताओं ने यह भी दलील दी थी कि बाकी देश में 1951 से पहले आ गए लोगों को नागरिकता दी गई है जबकि असम में यह तारीख 1971 तक बढ़ा दी गई जो कि ठीक नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 1971 की तारीख रखना सही है क्योंकि तभी बांग्लादेश में मुक्ति संग्राम खत्म हुआ था।
इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस कानून की वजह से असमिया संस्कृति पर कोई प्रभाव पड़ा, ऐसा याचिकाकर्ता नहीं दिखा पाए, अतः यह अनुच्छेद 29 का उल्लंघन भी नहीं करता। (यह अनुच्छेद संस्कृति के संरक्षण से सम्बन्धित है)सुप्रीम कोर्ट ने इसी के साथ नागरिकता कानून, 1955 के भाग 6A को सही ठहराया और याचिकाकर्ताओं कि दलीलों को खारिज कर दिया।
क्या है नागरिकता कानून का हिस्सा 6A?
वर्ष 1971 से पहले पाकिस्तान ने बांग्लादेश (तब पूर्वी पाकिस्तान) में पाकिस्तान की सरकार ने अत्याचार करना चालू कर दिया था। पकिस्तान, पूर्वी पाकिस्तान में हिन्दुओं और बांग्ला भाषियों को निशाना बना रहा था। 1970-71 आते-आते यह स्थिति और भी गंभीर हो गई थी।
इसके बाद लाखों की संख्या में शरणार्थी भारत भागकर असम, पश्चिम बंगाल और त्रिपुरा जैसे राज्यों में आ गए गए थे। असम इससे काफी प्रभावित हुआ था। 1971 में युद्ध के खत्म होने के साथ बांग्लादेश नया राष्ट्र बन गया था। हालाँकि, इसके बाद भी बड़ी संख्या में शरणार्थी वापस नहीं गए।
Justice Surya Kant in the majority judgement says that those who have entered Assam from Bangladesh post the cut-off date of March 25, 1971 are declared to be illegal immigrants and thus section 6A is held to be redundant for them. https://t.co/AI3ZrHtUhG
— ANI (@ANI) October 17, 2024
असम के कई जिलों की जनसांख्यिकी इन शरणार्थियों की वजह से बदल गई। इसके बाद 1980 से असम में आंदोलन चालू हुआ। यह आंदोलन कई बार उग्र भी हुआ। इसके बाद समस्या बढ़ती देख असमिया आंदोलनकारियों और राजीव गाँधी सरकार में 1985 में एक समझौता हुआ। इसे ‘असम एकॉर्ड’ का नाम दिया गया। इसके तहत 1966 से पहले असम के भीतर आए भारतीय मूल के लोग (वह लोग जो अविभाजित भारत का हिस्सा थे) को भारतीय नागरिक माना गया।
इसके अलावा 1966 से 1971 के बीच आए लोगों को वैध रूप से नागरिकता के लिए आवेदन का अधिकार दिया गया। हालाँकि, 1971 के बाद आए लोगों को अवैध माना गया। यह बातें 1955 के नागरिकता क़ानून में एक संशोधन के जरिए जोड़ी गईं। इसे ही नागरिकता कानून, 1955 के भाग 6A का नाम दिया गया। इसी के खिलाफ कई लोगों ने याचिका डाली थी।
इस कानून का विरोध करने वाले कौन?
सुप्रीम कोर्ट में असम एकॉर्ड के तहत नागरिकता कानून में जोड़े गए इस हिस्से 6A को असम संमिलता महासंघ नाम की एक संस्था ने 2012 में चुनौती दी थी। उन्होंने कहा कि यह कानून संविधान के अनुच्छेद 6, 7, 14, 29 और 355 का उल्लंघन करता है। याचिका में माँग की गई कि असम में नागरिकता देने की तारीख 1971 की जगह 1951 की जाए। याचिकाकर्ताओं ने यह भी दलील दी थी कि संसद ऐसा कानून नहीं बना सकती थी। उन्होने इस कानून को राजनीतिक अधिकारों में दखल भी बताया था।
याचिकाकर्ताओं ने माँग की थी कि 1951 के बाद असम में आए शरणार्थियों को देश के सभी हिस्सों में आनुपातिक रूप से बांटा जाए। इसके अलावा याचिकाकर्ताओं ने माँग की थी कि असम सीमा की पूरी तरह से बाड़बंदी की जाए और अवैध प्रवासियों को बाहर किया जाए। हालाँकि, उनकी दलीलें कोर्ट में नहीं मानी गई।
अवैध बांग्लादेशियों को निकाला जाए बाहर
सुप्रीम कोर्ट ने नागरिकता अधिनियम के 6A को सही ठहराने के साथ ही असम से अवैध प्रवासियों को वापस भेजने को लेकर बात की। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 1 जनवरी,1966 से पहले असम में प्रवेश करने वाले लोगों को नागरिकता दी जाएगी जबकि 1966 से 1971 के बीच आने वालों को कुछ शर्तों के साथ नागरिकता दी जाएगी।
लेकिन 25 मार्च, 1971 को या उसके बाद असम में प्रवेश करने वाले अवैध लोगों नागरिकता नहीं दी जाएगी और और उन्हें अवैध अप्रवासी घो/षित कर दिया जाता है, जिन्हें पहचान कर बाहर निकाला जाना चाहिए।