भारत में ‘न्याय की देवी’ (Lady of Justice) आँखों पर बँधी पट्टी हटा दी गई है। उनके हाथ में तलवार की जगह संविधान की प्रति दे दी गई है। गाउन को हटाकर साड़़ी पहना दिया गया है। सिर पर मुकुट और गले में हार आदि से अलंकृत कर दिया गया है। इस प्रतिमा को न्याय की यूनानी देवी से न्याय की भारतीय देवी का अवतार कहा जा सकता है।
भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने न्याय की देवी की एक नई प्रतिमा का अनावरण किया है। आँखों पर पट्टी होने का अर्थ कानून का अंधा होने का संकेत देता था। वहीं, तलवार सजा को प्रदर्शित करता था। अब परिवर्तनकारी प्रतीक संवैधानिक मूल्यों और कानून के समक्ष समानता के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
सुप्रीम कोर्ट के जजों की लाइब्रेरी में लगाई गई नई मूर्ति को CJI डीवाई चंद्रचूड़ ने ऑर्डर देकर बनवाया है। इसका उद्देश्य यह संदेश देना है कि देश में कानून अँधा नहीं है और यह सजा का प्रतीक नहीं है। मूर्ति के दाएँ हाथ में तराजू को बनाए रखा है, जो दोनों पक्षों के तथ्यों और तर्कों को देखने और सुनने के बाद न्याय करने का प्रतीक है।
New Delhi: CJI Chandrachud Orders Changes to Supreme Court's Justice Statue
Chief Justice of India, D.Y. Chandrachud, has directed changes to the statue of the Goddess of Justice at the Supreme Court. The statue’s traditional blindfold has been removed, symbolizing transparent… pic.twitter.com/XBePehNg7k
— IANS (@ians_india) October 16, 2024
यह बदलाव उपनिवेश के निशानियों से आगे बढ़ने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है। हाल ही में भारत सरकार ने ब्रिटिश कानून इंडियन पीनल कोड (IPC) की जगह भारतीय न्याय संहिता (BNS) कानून लागू किया था। लेडी ऑफ जस्टिस की मूर्ति में यह बदलाव भी इसी कड़ी के तहत उठाया कदम माना जा रहा है।
एक न्यायिक अधिकारी ने बताया, “न्याय की देवी का रूप हमारे संवैधानिक प्रतिबद्धताओं को प्रतिबिंबित करने के लिए बदलना आवश्यक था। तलवार के बजाय संविधान थामने से यह संदेश जाता है कि न्याय लोकतांत्रिक मूल्यों और मौलिक अधिकारों के अनुरूप होना चाहिए।”
कई सभ्यताओं से जुड़ी है लेडी ऑफ जस्टिस की कहानी
न्याय की देवी का इतिहास बहुत पुराना है। इसकी सबसे शुरुआती मूर्ति प्राचीन मिस्र में पाई जाती है। कहा जाता है कि यह देवी मात (Ma’at) की थी। मात सत्य, व्यवस्था और संतुलन का प्रतीक थीं। उन्हें अक्सर एक पंख पकड़े हुए दिखाया जाता था, जिसका उपयोग मृत्यु के बाद आत्मा के न्याय के लिए किया जाता था।
बाद में यूनानी और रोमन सभ्यताओं ने अपनी न्याय की देवी की मूर्ति बनाई। ग्रीक देवी थेमिस कानून और व्यवस्था का प्रतिनिधित्व करती थीं। उनकी बेटी डाइक, जिन्हें एस्ट्राया के नाम से भी जाना जाता है, न्याय और नैतिक व्यवस्था का प्रतीक थीं। थेमिस को तराजू पकड़े हुए दिखाया गया था। इन्हें ही न्याय की देवी का शुरुआती रूप माना जाता है।
रोमन की पौराणिक कथाओं में थेमिस को जस्टिशिया के साथ जोड़ा गया था, जो रोमन साम्राज्य में न्याय की देवी थीं। जस्टिशिया की छवि आज की न्याय व्यवस्था को दिखाने के लिए इस्तेमाल की जाती है। रोमन सम्राट टिबेरियस ने रोम में जस्टीशिया का एक मंदिर बनवाया था। जस्टीशिया न्याय के उस गुण का प्रतीक बन गईं। इनके साथ हर सम्राट खुद को जोड़ता था।
आगे चलकर रोमन सम्राट वेस्पाशियन ने जस्टिशिया की छवि के साथ सिक्के बनाए। इन सिक्कों में वह एक सिंहासन पर बैठी हैं, जिसे ‘जस्टीशिया ऑगस्टा’ कहा जाता था। उनके बाद कई सम्राटों ने खुद को न्याय का संरक्षक घोषित करने के लिए इस देवी की छवि का उपयोग किया। दुनिया के कई देशों में न्याय की देवी की यह मूर्ति देखी जा सकती है।
यूनानी सभ्यता से न्याय की देवी यूरोप और अमेरिका पहुँची। औपनिवेशिक काल में ब्रिटेन के एक अंग्रेज न्यायिक अधिकारी 17वीं सदी में इन्हें भारत लेकर आया था। ब्रिटिश काल में 18वीं शताब्दी के दौरान न्याय की देवी की मूर्ति का सार्वजनिक इस्तेमाल किया जाने लगा। भारत की आजादी के बाद न्याय की देवी को उसके प्रतीकों के साथ भारतीय लोकतंत्र में स्वीकार किया गया।