अमेरिका और भारत के बीच संबंध लगातार मजबूत हो रहे हैं, खासकर रक्षा और सुरक्षा के क्षेत्र में। अमेरिका को दुनिया का सबसे शक्तिशाली देश माना जाता है, और इसका प्रभाव वैश्विक राजनीति, अर्थव्यवस्था, और सुरक्षा में व्यापक है। इसके पास अत्याधुनिक हथियारों और रक्षा तकनीकों का बड़ा भंडार है, जो उसे दुनिया के अधिकांश देशों से एक कदम आगे रखता है।
भारत, जो अब एक महत्वपूर्ण वैश्विक शक्ति के रूप में उभरा है, अमेरिका सहित कई प्रमुख देशों के साथ व्यापारिक और सामरिक रिश्तों को बढ़ा रहा है। भारत की बढ़ती आर्थिक ताकत और रक्षा क्षेत्र में प्रगति ने इसे एक आकर्षक व्यापारिक साझेदार बना दिया है। भारत का रक्षा निर्यात भी बढ़ रहा है, और अब यह उन देशों में शामिल है जो दुनिया में सबसे ज्यादा हथियारों का आयात और निर्यात कर रहे हैं।
भारत को 2016 में “मेजर डिफेंस पार्टनर” के रूप में मान्यता मिलने से दोनों देशों के रक्षा संबंधों को नई दिशा मिली है। इस मान्यता से भारत को अमेरिकी रक्षा उपकरणों और तकनीकों तक अधिक पहुंच प्राप्त हुई है, और साथ ही दोनों देशों के बीच सामरिक सहयोग को भी बढ़ावा मिला है। इसके अलावा, भारत और अमेरिका ने साझा रणनीतिक हितों के तहत कई रक्षा समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं, जैसे कि लिज़ (LIM), और BECA (Basic Exchange and Cooperation Agreement) जैसी सैन्य समझौतों के जरिए दोनों देशों के बीच साझेदारी और बढ़ी है।
भारत का बढ़ता वैश्विक प्रभाव और अमेरिका से उसके रक्षा संबंध, दोनों देशों के बीच गहरे रिश्तों को दर्शाते हैं, जो न केवल व्यापार और सुरक्षा, बल्कि सामरिक क्षेत्र में भी सहयोग को बढ़ावा दे रहे हैं।
डील पर दुनियाभर के देशों की नजर
इस वक्त भारत डिफेंस की एक बड़ी डील को अमलीजामा पहनाने की तैयारी में है. भारतीय वायुसेना के लिए करीब 114 मल्टी रोल फाइटर एयरक्राफ्ट की डील की जानी है, जिस पर नजर दुनिया के कई शक्तिशाली देशों की है. जिनमें अमेरिका, रूस और फ्रांस शामिल हैं. हालांकि अभी खरीद प्रक्रिया शुरू होनी है लेकिन इस डील को क्रैक करने के लिए दुनिया की महाशक्तियां नजरें गढ़ाए बैठी हैं.
114 मल्टी रोल फाइटर एयरक्राफ्ट की डील
भारतीय वायुसेना के लिए 114 मल्टी-रोल फाइटर एयरक्राफ्ट की खरीद एक महत्वपूर्ण और बड़ी रक्षा डील है, जिसके लिए कई देशों के प्रमुख फाइटर विमान निर्माता दावेदारी कर रहे हैं। यह डील न केवल भारतीय वायुसेना की सामरिक ताकत को बढ़ाने के लिए अहम है, बल्कि यह वैश्विक रक्षा राजनीति में भी एक बड़ा कदम साबित हो सकती है। जैसा कि आपने बताया, इस रेस में रूस, फ्रांस, अमेरिका, स्वीडन, और यूरोपीय संघ के प्रमुख निर्माता कंपनियां शामिल हैं।
रूस का Su-35 और MiG-35, जो विशेष रूप से भारतीय वायुसेना के लिए आकर्षक हो सकते हैं, इनकी तकनीकी विशेषताएं और परिचालन इतिहास भारतीय आवश्यकताओं के अनुरूप हैं। रूस के विमानों के लिए भारतीय सेना की प्राथमिकता लंबे समय से रही है, और Su-35 और MiG-35 को लेकर रूस को एक मजबूत उम्मीदवार माना जा रहा है।
फ्रांस का राफेल, जो पहले से भारतीय वायुसेना में शामिल है, उसकी परिचालन सफलता और प्रभावी क्षमता इस डील में उसे एक महत्वपूर्ण दावेदार बनाती है। राफेल ने अपनी प्रभावशाली प्रदर्शन और युद्धक क्षमताओं से भारतीय वायुसेना को साबित किया है, और भारतीय अधिकारियों को यह विमान पर्याप्त भरोसा प्रदान करता है।
अमेरिका के F-21 और F-18 के विमान भारतीय वायुसेना के लिए कई दृष्टिकोण से आकर्षक हैं। F-21, जिसे विशेष रूप से भारतीय आवश्यकताओं के हिसाब से डिज़ाइन किया गया है, अमेरिकी रक्षा उद्योग के लिए एक बड़ी उम्मीद है, और यह ट्रंप प्रशासन के लिए एक प्रायोरिटी हो सकती है। डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद, अमेरिका ने भारत के साथ अपने रक्षा और सामरिक संबंधों को और मजबूत किया है, और अब अमेरिकी सरकार चाहेगी कि इस बड़ी रक्षा डील में उसकी हिस्सेदारी सुनिश्चित हो।
स्वीडन का ग्रिपेन और यूरोफाइटर टाइफून भी अपनी तकनीकी विशेषताओं के लिए चर्चित हैं, लेकिन इन दोनों के मुकाबले अन्य देशों की तकनीकी दृष्टिकोण ज्यादा मजबूत मानी जाती है। फिर भी, इन दोनों के पास अपनी ओर से कुछ अनूठी विशेषताएं हैं जो भारतीय वायुसेना के लिए आकर्षक हो सकती हैं।
हालांकि, यह डील सिर्फ विमान की कीमत और तकनीकी क्षमताओं पर आधारित नहीं है, बल्कि यह भी भारत और उन देशों के बीच रक्षा सहयोग और भविष्य के व्यापारिक संबंधों पर निर्भर करेगा। भारतीय वायुसेना के लिए यह डील लंबे समय तक प्रभावी रहेगी, इसलिए निर्णय बहुत सावधानी से लिया जाएगा।
अमेरिका, फ्रांस, और रूस जैसे देशों की कंपनियां इस रेस में प्रमुख दावेदार हैं, और भारतीय वायुसेना के साथ तकनीकी साझेदारी, लॉजिस्टिक सपोर्ट और प्रशिक्षण की बात करें तो ये देशों की कंपनियां सबसे आगे रहेंगी।