सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (19 नवंबर 2024) को मलयालम अभिनेता सिद्दीकी को एक रेप मामले में अग्रिम जमानत दे दी। यह मामला 2016 के एक कथित घटना से जुड़ा है, जिसमें एक युवा अभिनेत्री ने सिद्दीकी पर यौन शोषण का आरोप लगाया है। जस्टिस बेला त्रिवेदी और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की बेंच ने सिद्दीकी को दी गई 30 सितंबर की अंतरिम जमानत को स्थाई कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने पीड़ित को ही लगाई डाँट
सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा, “शिकायतकर्ता ने घटना के लगभग आठ साल बाद 2024 में एफआईआर दर्ज की। इसके अलावा, 2018 में फेसबुक पर 14 लोगों के खिलाफ यौन शोषण के आरोप लगाते हुए पोस्ट किया गया था। फिर भी वह केरल सरकार द्वारा गठित हेमा समिति के पास अपनी शिकायत लेकर नहीं गई।” जस्टिस त्रिवेदी ने कहा, “आपने फेसबुक पर पोस्ट डालने की हिम्मत दिखाई, लेकिन पुलिस के पास जाने की नहीं?”
सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि शिकायतकर्ता के पुलिस में देर से शिकायत दर्ज करने और अन्य परिस्थितियों को देखते हुए यह जमानत दी जा रही है। हालाँकि, जमानत की शर्तों के तहत सिद्दीकी को अपना पासपोर्ट ट्रायल कोर्ट में जमा करना होगा और जाँच में पूरा सहयोग करना होगा।
सिद्दीकी के वकील का दावा-प्रतिष्ठा खराब करने की कोशिश
यह मामला कई जटिल कानूनी और सामाजिक मुद्दों को सामने लाता है, जिनमें शिकायत की देरी, सामाजिक दबाव, और व्यक्तिगत प्रतिष्ठा के अधिकार शामिल हैं।
मुकुल रोहतगी की दलीलें (आरोपी का पक्ष):
- शिकायत में देरी:
- घटना 2016 की है, जबकि शिकायत 2024 में दर्ज की गई। इस देरी को साक्ष्य की विश्वसनीयता और आरोपों की वैधता पर सवाल उठाने का आधार बनाया गया।
- आरोपी के अनुसार, देरी से दर्ज शिकायत उनके खिलाफ व्यक्तिगत बदनामी का प्रयास हो सकता है।
- पहले दर्ज की गई शिकायत:
- सिद्दीकी ने पहले ही 26 अगस्त 2024 को शिकायतकर्ता के खिलाफ शिकायत दर्ज की थी, जिससे यह इंगित किया गया कि मामला प्रतिशोध या व्यक्तिगत दुश्मनी का हिस्सा हो सकता है।
- फेसबुक पोस्ट:
- शिकायतकर्ता ने 2018 से सोशल मीडिया पर कई लोगों पर आरोप लगाए। इसका उपयोग यह तर्क देने के लिए किया गया कि औपचारिक शिकायत दर्ज करने में विलंब सवाल खड़े करता है।
वृंदा ग्रोवर की दलीलें (शिकायतकर्ता का पक्ष):
- सामाजिक दबाव और डर:
- यौन शोषण के मामलों में पीड़ित महिलाओं को शक्तिशाली व्यक्तियों, खासकर “सुपरस्टार्स,” के खिलाफ जाने में भारी सामाजिक और मानसिक दबाव झेलना पड़ता है।
- शिकायतकर्ता ने 2018 में बोलना शुरू किया, लेकिन कानूनी शिकायत दर्ज करने में उन्हें हिम्मत जुटाने में समय लगा।
- हेमा समिति की रिपोर्ट:
- शिकायतकर्ता ने हेमा समिति की रिपोर्ट के बाद अपनी शिकायत दर्ज कराई। यह दर्शाता है कि इस रिपोर्ट ने उन्हें न्याय की उम्मीद दी।
- आरोप का विवरण:
- शिकायतकर्ता का आरोप है कि 2016 में आरोपी ने फिल्म प्रीव्यू के बहाने उन्हें होटल बुलाया और उनका यौन शोषण किया।
न्यायालय के विचार:
- शिकायत में देरी का महत्व:
सुप्रीम कोर्ट ने माना कि शिकायत में देरी साक्ष्य की वैधता और आरोपों की प्रामाणिकता को प्रभावित कर सकती है। - सोशल मीडिया बनाम कानूनी प्रक्रिया:
फेसबुक पर पोस्ट डालने के बावजूद पुलिस में शिकायत दर्ज करने में देरी ने कोर्ट को यह सवाल उठाने पर मजबूर किया कि शिकायतकर्ता औपचारिक शिकायत करने से क्यों हिचकिचाई। - जमानत का फैसला:
अदालत ने यह कहते हुए जमानत दी कि देर से दर्ज शिकायत और साक्ष्यों की अनुपलब्धता को देखते हुए आरोपी को तुरंत हिरासत में रखना उचित नहीं है।
राज्य सरकार की तरफ से वरिष्ठ वकील ने रखा पक्ष
केरल सरकार के वरिष्ठ वकील रंजीत कुमार ने कहा कि शिकायतकर्ता ने उस समय केवल एक उभरती हुई अभिनेत्री होने के बावजूद फिल्म प्रीव्यू में शामिल होने का निमंत्रण क्यों स्वीकार किया। उन्होंने सिद्दीकी पर सबूत नष्ट करने और जाँच में सहयोग न करने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा, “सिद्दीकी ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट्स डिलीट कर दिए और जाँच में कोई भी जानकारी देने से इनकार कर दिया। उनके खिलाफ आरोप गंभीर हैं और उनके प्रभाव के कारण गवाहों पर दबाव डाला जा सकता है।”
इससे पहले, केरल हाई कोर्ट ने 24 सितंबर को सिद्दीकी की अग्रिम जमानत याचिका खारिज कर दी थी। हाई कोर्ट ने कहा था कि देरी के बावजूद शिकायतकर्ता के आरोप गंभीर हैं और उनका निपटारा ट्रायल के दौरान होना चाहिए। इसके बाद, सुप्रीम कोर्ट ने 30 सितंबर को सिद्दीकी को अंतरिम जमानत दी थी।
हेमा कमेटी की रिपोर्ट में भी दर्ज है ये मामला
इस मामले का उल्लेख केरल की हेमा समिति की रिपोर्ट में भी किया गया है, जिसने मलयालम फिल्म उद्योग में यौन शोषण और लैंगिक भेदभाव के मामलों को उजागर किया। इस रिपोर्ट के सार्वजनिक होने के बाद, कई महिलाओं ने इंडस्ट्री के कई बड़े नामों के खिलाफ यौन शोषण के आरोप लगाए।
सुप्रीम कोर्ट ने यह कहते हुए सिद्दीकी को अग्रिम जमानत दी कि जाँच प्रक्रिया जारी रहेगी और ट्रायल कोर्ट अन्य शर्तें तय कर सकता है। शिकायतकर्ता की ओर से लगाई गई देरी और परिस्थितियों को जाँच के दौरान पूरी तरह से ध्यान में रखा जाएगा।