वाराणसी स्थित उदय प्रताप कॉलेज (यूपी कॉलेज) की संपत्ति पर यूपी सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड के दावे ने एक संवेदनशील और विवादित मुद्दे को जन्म दिया है। वक्फ बोर्ड के इस दावे के बाद कॉलेज प्रबंधन, शिक्षक, और छात्र सभी में भारी आक्रोश देखा गया है।
विवाद का मुख्य बिंदु:
- वक्फ बोर्ड का दावा:
- वक्फ बोर्ड का कहना है कि कॉलेज की जमीन वक्फ संपत्ति है और इसे बोर्ड में पंजीकृत किया जाना चाहिए।
- यह दावा वक्फ एक्ट 1995 के तहत किया गया है और 2018 में नोटिस के माध्यम से कॉलेज प्रबंधन को सूचित किया गया।
- कॉलेज प्रबंधन का पक्ष:
- कॉलेज प्रबंधन ने दावा खारिज करते हुए कहा कि यूपी कॉलेज की स्थापना 1909 में हुई थी और इसकी संपत्ति इंडाउमेंट ट्रस्ट की है।
- चैरिटेबल इंडाउमेंट एक्ट के तहत ट्रस्ट की संपत्ति पर कोई बाहरी दावा वैध नहीं है।
- वक्फ का नोटिस:
- वक्फ बोर्ड ने कहा कि यह संपत्ति एक विशेष क्षेत्र से जुड़ी है और इसे सुन्नी वक्फ बोर्ड में पंजीकृत किया जाना चाहिए।
- बोर्ड ने 15 दिनों के भीतर जवाब देने का समय दिया था, अन्यथा मामले में प्रबंधन की बात नहीं सुनी जाएगी।
- कॉलेज का जवाब:
- तत्कालीन सचिव यूएन सिन्हा ने स्पष्ट रूप से कहा कि यह जमीन ट्रस्ट की संपत्ति है और वक्फ का कोई अधिकार नहीं बनता।
- उन्होंने वक्फ के दावे को अवैध और अनुचित ठहराया।
मामला क्यों गंभीर है?
- शैक्षिक संस्थान पर दावा:
- यूपी कॉलेज वाराणसी का एक प्रमुख शैक्षिक संस्थान है और इस पर किसी भी प्रकार का बाहरी दावा न केवल संस्थान बल्कि छात्रों और शिक्षकों के हितों पर भी प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है।
- कानूनी और ऐतिहासिक पहलू:
- वक्फ संपत्तियों पर विवाद भारत में अक्सर देखा जाता है, लेकिन शैक्षिक संस्थानों पर इस तरह के दावे आम नहीं हैं।
- यह मामला कानूनी और ऐतिहासिक दस्तावेजों पर आधारित होगा, जिससे दोनों पक्षों को अपनी दलीलें साबित करनी होंगी।
- समाज में प्रभाव:
- इस विवाद का सांप्रदायिक प्रभाव हो सकता है, क्योंकि यह वक्फ बोर्ड और एक प्रतिष्ठित गैर-सांप्रदायिक शैक्षणिक संस्था के बीच का मामला है।
राजा उदय प्रताप सिंह जूदेव ने 115 साल पहले किया था स्थापित
यूपी कॉलेज करीब 500 एकड़ में फैला है। इसके द्वारा प्रदेश में डिग्री कॉलेज, इंटर कॉलेज, रानी मुरार बालिका स्कूल, राजर्षि शिशु विहार, राजर्षि पब्लिक स्कूल संचालित किया जाता है। इन सबमें करीब 20,000 विद्यार्थी पढ़ाई करते हैं। उदय प्रताप कॉलेज की स्थापना लगभग 115 साल पहले सन 1909 में भिनगा (बहराइच, उत्तर प्रदेश) के राजा उदय प्रताप सिंह जूदेव ने की थी।
सन 1886 में संघ लोक सेवा आयोग के सदस्य रहे राजा उदय प्रताप सिंह जूदेव ने 25 नवम्बर 1909 को वाराणसी में ‘हेवेट क्षत्रिय हाई स्कूल’ की स्थापना की। आगे चलकर यह उदय प्रताप सिंह स्वायत्त महाविद्यालय के रूप में विकसित हुआ। उन्होंने 1909 में ही ‘उदय प्रताप कॉलेज एंड हेवेट क्षत्रिय स्कूल इंडाउमेंट ट्रस्टट का गठन किया था, जिसके तहत यह कॉलेज संचालित है।
कॉलेज के प्रिंसिपल का जवाब
यूपी कॉलेज के प्रिंसिपल डॉक्टर डीके सिंह ने बुधवार (27 नवंबर) को IANS को बताया कि नोटिस 6 दिसंबर 2018 को भेजा गया था। इसका 21 दिसंबर 2018 को जवाब दिया गया था कहा गया था कि यह ट्रस्ट द्वारा संचालित है। इसलिए इस पर किसी का मालिकाना हक समाप्त हो जाता है। डीके सिंह ने कहा कि इसके बाद वक्फ बोर्ड की तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई।
प्रिंसिपल के रूप में 1 नवंबर 2001 को कार्यभार सँभालने वाले डॉक्टर डीके सिंह ने कहा कि इस मामले का उन्होंने संज्ञान लिया था। उन्होंने कहा था, “कार्यभार सँभालने के बाद हमारे छात्रों ने बताया किया कि कुछ लोग मस्जिद में निर्माण कार्य कर रहे है। वे लोग निर्माण करने के लिए रात में बालू और सीमेंट लेकर जबरदस्ती आ रहे थे। हालाँकि, सुरक्षाकर्मियों ने इसका विरोध किया था।”
प्रिंसिपल ने आगे बताया कि उन्होंने इसकी सूचना तुरंत पुलिस-प्रशासन को दी और निर्माण सामग्री को मस्जिद से बाहर निकाला गया। उन्होंने बताया कि इसके कुछ दिनों के बाद सूचना मिली कि कॉलेज की बिजली लाइन से मस्जिद में बिजली का इस्तेमाल हो रहा है। इसका बिजली बिल कॉलेज को देना पड़ता था। प्रिंसिपल ने बताया, “लगभग एक साल पहले हमने मस्जिद का बिजली कनेक्शन कटवा दिया।”
रिपोर्ट के मुताबिक, उदय प्रताप कॉलेज परिसर में मस्जिद और मज़ार का निर्माण समाजवादी पार्टी की पिछली सरकार की शह पर किया गया था। कॉलेज प्रशासन का कहना है कि ये निर्माण पूरी तरह अवैध है। कहा जाता है कि परिसर में स्थित मस्जिद में लोग नमाज पढ़ने के लिए भी आते हैं। वहीं, मजार के पास एक व्यक्ति हमेशा रहता है। उसका दावा है कि मस्जिद तो कॉलेज से भी पुरानी है।